कामना , वासना और तृष्णा की खाई इतनी गहरी है , जिसे बड़े - बड़े राजा - महाराजा भी नहीं पाट सके l मनुष्य को संतोष नहीं है l अपनी इन्ही कमजोरियों के कारण लोग इधर से उधर भागते रहते हैं , सुख - शान्ति तो मिल नहीं पाती , तनाव से और घिर जाते हैं l एक छोटा सा प्रसंग है ----
प्रख्यात पत्रकार , लेखक एवं विचारक पाल ब्रंटन भारत आये l उन दिनों वे वाराणसी में थे , वहीँ की घटना है जिसका उन्होंने उल्लेख किया ----- एक दिन वे गंगा तट पर बैठे हुए थे l उन्होंने देखा , एक व्यक्ति बड़ी तेजी से गंगा जी की ओर भागा गया और फिर हताश होकर वापस लौट आया l
अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए पाल ब्रंटन उस व्यक्ति के पास गए और उससे पूछा ---- " वह गंगा तट के पास भागा हुआ क्यों गया और फिर वापस हताश होकर क्यों लौटा ? "
इस पर उस व्यक्ति ने थोडा शरम और संकोच के साथ कहा --- " मैं गंगा तट के नजदीक एक स्त्री के सौन्दर्य से अभिभूत हो गया था l मैंने सोचा था कि कोई सुन्दर स्त्री गंगा में स्नान कर रही है l मुझे उसके खुले केश बहुत सुन्दर लगे l '
इस पर पाल ब्रंटन ने पूछा --- " तब फिर वापस क्यों भाग कर आये ? "
इस पर उसने बताया -- " दरअसल मुझे धोखा हुआ था l दूर के कारण मैं सही से नहीं देख सका l पास जाने पर पता चला कि वहां कोई स्त्री ही नहीं है l वहां तो एक साधु महाराज बाल खोले नहा रहे हैं l मुझे तो बस बालों को देखकर भ्रम हुआ था l "
पाल ब्रंटन ने यह बात पं. गोपीनाथ कविराज को बताई l उन्होंने बताया --'- व्यक्ति को भगाने वाली व दौड़ाने वाली उसकी स्वयं की वासना थी l साधु को तो इस बात का पता भी नहीं कि वह व्यक्ति क्यों इधर से उधर भाग रहा है l गंगा तट पर जाते समय वह खुश था , उसे सुख की अनुभूति थी , लेकिन पास पहुँचने पर निराशा से भर गया और वापस आते समय दुःख व निराशा से भर गया l
मनुष्य इसी तरह अपनी कमजोरियों के कारण भटकता रहता है l "
प्रख्यात पत्रकार , लेखक एवं विचारक पाल ब्रंटन भारत आये l उन दिनों वे वाराणसी में थे , वहीँ की घटना है जिसका उन्होंने उल्लेख किया ----- एक दिन वे गंगा तट पर बैठे हुए थे l उन्होंने देखा , एक व्यक्ति बड़ी तेजी से गंगा जी की ओर भागा गया और फिर हताश होकर वापस लौट आया l
अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए पाल ब्रंटन उस व्यक्ति के पास गए और उससे पूछा ---- " वह गंगा तट के पास भागा हुआ क्यों गया और फिर वापस हताश होकर क्यों लौटा ? "
इस पर उस व्यक्ति ने थोडा शरम और संकोच के साथ कहा --- " मैं गंगा तट के नजदीक एक स्त्री के सौन्दर्य से अभिभूत हो गया था l मैंने सोचा था कि कोई सुन्दर स्त्री गंगा में स्नान कर रही है l मुझे उसके खुले केश बहुत सुन्दर लगे l '
इस पर पाल ब्रंटन ने पूछा --- " तब फिर वापस क्यों भाग कर आये ? "
इस पर उसने बताया -- " दरअसल मुझे धोखा हुआ था l दूर के कारण मैं सही से नहीं देख सका l पास जाने पर पता चला कि वहां कोई स्त्री ही नहीं है l वहां तो एक साधु महाराज बाल खोले नहा रहे हैं l मुझे तो बस बालों को देखकर भ्रम हुआ था l "
पाल ब्रंटन ने यह बात पं. गोपीनाथ कविराज को बताई l उन्होंने बताया --'- व्यक्ति को भगाने वाली व दौड़ाने वाली उसकी स्वयं की वासना थी l साधु को तो इस बात का पता भी नहीं कि वह व्यक्ति क्यों इधर से उधर भाग रहा है l गंगा तट पर जाते समय वह खुश था , उसे सुख की अनुभूति थी , लेकिन पास पहुँचने पर निराशा से भर गया और वापस आते समय दुःख व निराशा से भर गया l
मनुष्य इसी तरह अपनी कमजोरियों के कारण भटकता रहता है l "