26 January 2014

विषमताओं के प्रति विधेयात्मक द्रष्टि

जिंदगी  सुख-दुःख  का, आपति-संपति  का, हर्ष-विषाद  का  मिला  हुआ  रूप  है  | एक  रहे, दूसरा  न  रहे , ऐसा  संभव  नहीं  है  | संपूर्ण  विकास  के  लिये  प्रसन्नता  के  क्षण  जितने  जरुरी  है, विषाद  के  क्षणों  की  भी  उतनी  ही  आवश्यकता  होती  है  | दोनों  ही  स्थितियों  में  हमारे  विवेक  की  परीक्षा  होती  है  |
       विषमताओं  का  यदि   समुचित  सदुपयोग  किया  जा  सके  तो  आंतरिक  शक्तियों  में  निखार  आता  है  | इसलिये  जीवन में  विषम  क्षणों  के  उपस्थित  होने  पर  इनसे  घबराने  के  बजाय  इनके  सदुपयोग  की  कला  सीखनी  चाहिये  |