जिंदगी सुख-दुःख का, आपति-संपति का, हर्ष-विषाद का मिला हुआ रूप है | एक रहे, दूसरा न रहे , ऐसा संभव नहीं है | संपूर्ण विकास के लिये प्रसन्नता के क्षण जितने जरुरी है, विषाद के क्षणों की भी उतनी ही आवश्यकता होती है | दोनों ही स्थितियों में हमारे विवेक की परीक्षा होती है |
विषमताओं का यदि समुचित सदुपयोग किया जा सके तो आंतरिक शक्तियों में निखार आता है | इसलिये जीवन में विषम क्षणों के उपस्थित होने पर इनसे घबराने के बजाय इनके सदुपयोग की कला सीखनी चाहिये |
विषमताओं का यदि समुचित सदुपयोग किया जा सके तो आंतरिक शक्तियों में निखार आता है | इसलिये जीवन में विषम क्षणों के उपस्थित होने पर इनसे घबराने के बजाय इनके सदुपयोग की कला सीखनी चाहिये |