महाराज जसवंत सिंह जोधपुर के राजा ही नहीं थे वे मुगल सम्राट औरंगजेब के प्रधान सेनापति
भी थे , अनेक युद्धों में उनकी वीरता से औरंगजेब को विजय प्राप्त हुई । किन्तु औरंगजेब को महाराज जसवंत सिंह सहय नहीं थे । उसने धोखे से उनके पुत्र को मरवा दिया l महाराज जसवंत सिंह की म्रत्यु के बाद उसने जोधपुर पर कब्ज़ा कर लिया , उस समय महाराज की रानी गर्भवती थीं , समय पाकर उनके पुत्र हुआ जिसका नाम अजीतसिंह रखा गया , इससे औरंगजेब बड़ा चिन्तित हो गया ।
लोभी और दुष्ट के लिए कोई भी घात अकरणीय नहीं होती l उसने कहलवा भेजा कि महाराज जसवंत सिंह हमारे वफादार दोस्तों में से थे , अत: राजकुमार को दिल्ली ले आओ हम उसकी हिफाजत व परवरिश करेंगे ।
औरंगजेब की इस सहानुभूति में कौन सा घातक मंतव्य छिपा है , सन्देश पाते ही दुर्गादास ने समझ लिया कि नवजात राजकुमार को अपने पास बुलाकर औरंगजेब अवसर पाकर उसे नष्ट कर देना चाहता है ताकि उत्तराधिकारी न होने से जोधपुर पर उसका कब्ज़ा बना रहे ।
वीर दुर्गादास ने बुद्धि से काम लिया और कहा --- " बादशाह सलामत का ख्याल बड़ा नेक है किन्तु रानी का कहना है की एक वर्ष तक बच्चे को माँ का दूध जरुरी है , जब उसका दूध छूट जायेगा तो उसे बादशाह को सौंप देंगे । " औरंगजेब मन मसोस कर रह गया
दुर्गादास ने सैनिकों को समझाया कि निश्चिन्त होकर रहने की जरुरत नहीं है , अभी एक वर्ष का समय है । इस अवधि के बाद जब औरंगजेब राजकुमार को मांगेगा तभी संघर्ष का सूत्रपात हो जायेगा । उसने विचार किया कि ----- " इस एक वर्ष के मूल्यवान समय को यों ही प्रमाद अथवा प्रतीक्षा में बिता देना बुद्धिमानी न होगी । इसका एक - एक क्षण भविष्य की तैयारी में लगाया जाना चाहिए । जो लोग वर्तमान में ही भविष्य की तैयारी नहीं करते वे अदूरदर्शी होते हैं और एक तरह से जीवन - पथ पर असफलता के बीज बोने जैसी भूल करते हैं ।
दुर्गादास ने सबको समझाया ---- " औरंगजेब कभी भी फन मार सकता है । अपने कर्तव्यों तथा सावधानी में प्रमाद करने वाले बड़े - बड़े धीर - वीर और बुद्धिमान व्यक्ति भी शत्रु के चंगुल में फंस जाते हैं । इसलिए हम सबको प्रबुद्ध एवं सन्नद्ध रहकर आते और जाते हुए समय का अध्ययन करते रहना चाहिए । " ठीक एक वर्ष बाद औरंगजेब ने मारवाड़ पर आक्रमण किया किन्तु उसमे वह बुरी तरह पराजित हुआ और मारवाड़ स्वतंत्र हो गया ।
भी थे , अनेक युद्धों में उनकी वीरता से औरंगजेब को विजय प्राप्त हुई । किन्तु औरंगजेब को महाराज जसवंत सिंह सहय नहीं थे । उसने धोखे से उनके पुत्र को मरवा दिया l महाराज जसवंत सिंह की म्रत्यु के बाद उसने जोधपुर पर कब्ज़ा कर लिया , उस समय महाराज की रानी गर्भवती थीं , समय पाकर उनके पुत्र हुआ जिसका नाम अजीतसिंह रखा गया , इससे औरंगजेब बड़ा चिन्तित हो गया ।
लोभी और दुष्ट के लिए कोई भी घात अकरणीय नहीं होती l उसने कहलवा भेजा कि महाराज जसवंत सिंह हमारे वफादार दोस्तों में से थे , अत: राजकुमार को दिल्ली ले आओ हम उसकी हिफाजत व परवरिश करेंगे ।
औरंगजेब की इस सहानुभूति में कौन सा घातक मंतव्य छिपा है , सन्देश पाते ही दुर्गादास ने समझ लिया कि नवजात राजकुमार को अपने पास बुलाकर औरंगजेब अवसर पाकर उसे नष्ट कर देना चाहता है ताकि उत्तराधिकारी न होने से जोधपुर पर उसका कब्ज़ा बना रहे ।
वीर दुर्गादास ने बुद्धि से काम लिया और कहा --- " बादशाह सलामत का ख्याल बड़ा नेक है किन्तु रानी का कहना है की एक वर्ष तक बच्चे को माँ का दूध जरुरी है , जब उसका दूध छूट जायेगा तो उसे बादशाह को सौंप देंगे । " औरंगजेब मन मसोस कर रह गया
दुर्गादास ने सैनिकों को समझाया कि निश्चिन्त होकर रहने की जरुरत नहीं है , अभी एक वर्ष का समय है । इस अवधि के बाद जब औरंगजेब राजकुमार को मांगेगा तभी संघर्ष का सूत्रपात हो जायेगा । उसने विचार किया कि ----- " इस एक वर्ष के मूल्यवान समय को यों ही प्रमाद अथवा प्रतीक्षा में बिता देना बुद्धिमानी न होगी । इसका एक - एक क्षण भविष्य की तैयारी में लगाया जाना चाहिए । जो लोग वर्तमान में ही भविष्य की तैयारी नहीं करते वे अदूरदर्शी होते हैं और एक तरह से जीवन - पथ पर असफलता के बीज बोने जैसी भूल करते हैं ।
दुर्गादास ने सबको समझाया ---- " औरंगजेब कभी भी फन मार सकता है । अपने कर्तव्यों तथा सावधानी में प्रमाद करने वाले बड़े - बड़े धीर - वीर और बुद्धिमान व्यक्ति भी शत्रु के चंगुल में फंस जाते हैं । इसलिए हम सबको प्रबुद्ध एवं सन्नद्ध रहकर आते और जाते हुए समय का अध्ययन करते रहना चाहिए । " ठीक एक वर्ष बाद औरंगजेब ने मारवाड़ पर आक्रमण किया किन्तु उसमे वह बुरी तरह पराजित हुआ और मारवाड़ स्वतंत्र हो गया ।