25 August 2021

WISDOM ----

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----- " मनुष्य  में  अच्छाइयां  भी  होती  हैं  और  बुराइयां  भी  होती  हैं  ,  न  कोई  पूर्ण रूपेण  अच्छा  है  ,  और  न  कोई    बिलकुल  बुरा   l   गुण , कर्म  स्वाभाव  में  हर  मनुष्य  दूसरे  से  भिन्न  होता  है   किन्तु  यदि  सामाजिक   हित   पर  व्यक्तिगत  इच्छाओं , आकांक्षाओं  को   वारे  जाने  का  दृष्टिकोण  अपनाने  पर   उसका  यह  मिश्रित  स्वरुप  भी  उपयोगी  और  चिरस्मरणीय  बन  सकता  है   l  l  "     स्टालिन  उसका  सटीक  उदाहरण  है   l   मार्क्स  की  पुस्तक  ने  स्टालिन  को  क्रांतिकारी   बना  दिया  l   उन  दिनों  रूस  की  सामाजिक  दशा   बहुत  बिगड़ी  हुई  थी   l   जार  के  अत्याचारों  से  जनता    त्रस्त   थी    l  जार  के  निरंकुश  शासन  से   मुक्ति  दिलाने  के  लिए    स्टालिन  ने  अपने  जीवन  के  स्वर्णिम  20  वर्ष   समर्पित  किए  l  इस  दौरान  स्टालिन  को  गालियाँ, चाबुक ,   मार ,   यंत्रणाएँ    सभी  कुछ  सहना  पड़ा   l  इस  अवधि  में  उसे   उत्तरी  ध्रुव  से  लगी  रूस  की  सीमा  के  एक   गाँव  में  जेल   में  रखा  गया   l   इस  गाँव  के  दो  सौ   मील   तक  कोई  बस्ती  नहीं  थी  ,  कड़ाके  की  ठण्ड  पड़ती  थी   l   ऐसी  भयंकर  जेल  में  स्टालिन  ने  चार  वर्ष  गुजारे   l     जारशाही  का  अंत  हुआ  ,  फिर  लेनिन  की  मृत्यु  के  बाद  शासन  सत्ता  स्टालिन  के  हाथ  में  थी   लेकिन  उसने  अपने  कष्ट , त्याग   और  बलिदान  का  मुआवजा  सुख -  वैभव    के  रूप  में  नहीं  लिया  ,  वह  नौकरों  के  रहने   वाले   क्वार्टर  में  ही  रहते  थे  ,  उन्ही  के  जैसा  खाना   खाते    थे    l   आत्मप्रशंसा  और  आत्म विज्ञापन  से  वह  कोसों  दूर  था  l