पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है --- ' जिन्हे हम बुरी वस्तुएं समझते हैं , जिन बातों को हम अप्रिय समझते हैं , उनमे हमारी जागरूकता , चेतना और विवेक - बुद्धि को जाग्रत करने की शक्ति होती है l उससे अनुभव बढ़ता है , समझदारी आती है l यदि बुरी बातें दुनिया में न हों तो अच्छी को , श्रेष्ठता को अनुभव करने का अवसर लोगों को न मिले और निष्क्रियता अवं जड़ता बढ़ने लगे l इस प्रकार जब हम गंभीरता पूर्वक विचार करते हैं तो हमें बुराई के गर्भ में भी श्रेष्ठता प्रतीत होती है l उसके कारण हमारी अच्छाइयों को विकसित होने का अवसर मिलता है l इस प्रकार वह बुराई भी हमारी श्रेष्ठता को बढ़ाने का हेतु बनती है l "
23 July 2020
WISDOM -----
" सत्य अकेला नहीं , प्रेम और न्याय को भी साथ लेकर चलता है l इसी प्रकार असत्य के साथ पतन और संकट के सहचरों की जोड़ी चलती है l "
" निर्भय और सबल व्यक्ति हिंसा नहीं करता l वह अहिंसा पर विश्वास करता है , क्योंकि इसके मूल में प्रेम की भावना कार्य करती है l प्रेम में हिंसा का स्थान कहाँ ? "
हजरत उमर ने एक व्यक्ति को किसी प्रदेश का शासक नियुक्त किया l इसके बाद खलीफा एक पड़ोसी के बच्चे को खिलाने लगे l उसे हँसाने के लिए मुँह बिचकाने और तरह - तरह की जानवरों की बोलियाँ बोलने लगे l
नव - नियुक्त शासक आश्चर्य में पड़ गया l उसने कहा ---- " मेरे पांच बच्चे हैं l उनमें से मैंने किसी को भी इतने प्यार से नहीं खिलाया , जितना कि आप पड़ोसी के बच्चे से लिपट रहे हैं l "
खलीफा ने नियुक्ति पत्र वापस ले लिया और कहा ---- " जब तुम अपने बच्चों को प्यार नहीं कर सकते तो मेरी प्रजा को प्रसन्न रखने की बात कैसे सोच सकोगे ? "
" निर्भय और सबल व्यक्ति हिंसा नहीं करता l वह अहिंसा पर विश्वास करता है , क्योंकि इसके मूल में प्रेम की भावना कार्य करती है l प्रेम में हिंसा का स्थान कहाँ ? "
हजरत उमर ने एक व्यक्ति को किसी प्रदेश का शासक नियुक्त किया l इसके बाद खलीफा एक पड़ोसी के बच्चे को खिलाने लगे l उसे हँसाने के लिए मुँह बिचकाने और तरह - तरह की जानवरों की बोलियाँ बोलने लगे l
नव - नियुक्त शासक आश्चर्य में पड़ गया l उसने कहा ---- " मेरे पांच बच्चे हैं l उनमें से मैंने किसी को भी इतने प्यार से नहीं खिलाया , जितना कि आप पड़ोसी के बच्चे से लिपट रहे हैं l "
खलीफा ने नियुक्ति पत्र वापस ले लिया और कहा ---- " जब तुम अपने बच्चों को प्यार नहीं कर सकते तो मेरी प्रजा को प्रसन्न रखने की बात कैसे सोच सकोगे ? "
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