17 January 2019

WISDOM ---- सत्कर्मों से अपने लिए सुन्दर दुनिया बना सकते हैं

  इस  स्रष्टि  में  सबसे  महत्वपूर्ण  मनुष्य  के  कर्म  हैं  l किये  गए  कर्मों  के  आधार  पर  ही   वह  अपनी  गति  प्राप्त  करता  है  l  यह  मनुष्य  की  अदूरदर्शिता   है  कि  वह  क्षणिक  लाभ के  लिए  वर्तमान  में बुरे  कर्म  करने  के  लिए  तैयार  हो  जाता  है  l  कर्मों  का फल  तुरंत  नहीं  मिलता  है    इसलिए  मनुष्य  को  भी  अपने  किये  गए  कर्मों  का  कोई  एहसास  नहीं  होता  l  उसे लगता  है  कि  इतने  सारे  लोग  गलत  कार्य  कर  रहे  हैं   और  जीवन  में  सुख - भोग  कर  रहे  हैं  ,  सफल  हैं    तो  वह  भी  क्यों  न  करे   ? 
  कर्म  की  गति  बड़ी  गहन  है  l  इसे  समझने   के  लिए  हमें  इतिहास  से  ,   समाज  से   उदाहरण  देखना  चाहिए   l  व्यक्ति  के  सम्पूर्ण  जीवन  को  देखना  चाहिए ,  थोड़े  से  जीवन  को  नहीं  l  समाज  के  अच्छे   और  बुरे    व्यक्तियों  के   सम्पूर्ण  जीवन  का  गहराई  से  अध्ययन  कर  के  ही    प्रकृति  की    कर्मफल   व्यवस्था  समझ  आएगी   l  व्यक्ति  का विवेक  जाग  जायेगा  तब  वह  गलत  कर्म  करने  से  डरेगा   l 
     कर्म  के  दर्शन  को  समझाने वाली  एक  कथा   है  ------   एक  बार  एक  राजा ने  अपने  मंत्री  से  कहा --- " मुझे इन  चार  प्रश्नों  के  जवाब  दो  --- 1. जो  यहाँ  है , वहां  नहीं  l  2.  वहां  हो ,  यहाँ  नहीं
3. जो  यहाँ  भी  नहीं  हो , वहां  भी  न  हो  l  4.  जो  यहाँ  भी  हो  और  वहां  भी  हो  l  "
  मंत्री ने  उत्तर देने  के  लिए  दो  दिन  का  समय  माँगा  l  दो  दिन  बाद  चार  व्यक्तियों  को  लेकर  वह  दरबार  में  उपस्थित  हुआ   और  बोला  --- "  राजन  !  हमारे  धर्मग्रंथों  में   अच्छे  और  बुरे  कर्मों   के  अनुसार  स्वर्ग  और  नरक  की  अवधारणा  प्रस्तुत  की  गई  है  ----
1.  यह  पहला व्यक्ति  भ्रष्टाचारी  है  l  यह  गलत  काम  कर  के  यद्दपि  यहाँ  सुखी  व  संपन्न  है   किन्तु  इसकी  जगह  वहां  स्वर्ग  में  नहीं  है  l
2.  दूसरा  व्यक्ति  सद्गृहस्थ  है  l  यह  यहाँ  ईमानदारी  से  रहते  हुए  कष्ट    में   जरुर  है  ,  पर  इसकी  जगह  वहां  जरुर  होगी  l 
3.  तीसरा  व्यक्ति  भिखारी  है  ,  यह  पराश्रित  है   l यह  न  तो  यहाँ  सुखी  है  , न  वहां  सुखी  रहेगा  l
4.  यह  चौथा  व्यक्ति  एक  दानवीर  सेठ  है   जो  अपने  धन  का  सदुपयोग  करते  हुए  भलाई  भी  कर  रहा  है   और  सुखी - संपन्न  भी  है  l  अपने  उदार  व्यवहार  के  कारण  यहाँ  भी  सुखी  है   और   सत्कर्म  करने  से इसका  स्थान  स्वर्ग  में  भी  सुरक्षित  है   l
  मनुष्य  कर्म  करने  के  लिए  स्वतंत्र  है   लेकिन  उन  कर्मों  का  फल  कब  मिलेगा  , यह  काल  ( समय )  निश्चित  करता  है  l