पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी अपनी पुस्तक 'संस्कृति -संजीवनी श्रीमद् भागवत एवं गीता ' में लिखते हैं ---- "भगवान चाहते हैं कि हम ' जियो और जीने दो ' के सिद्धांत के अनुसार स्वयं भी सुख पूर्वक जीवन यापन करें और दूसरों को भी जीने दें l किन्तु जब हम मोहवश इस व्यवस्था को भंग कर अपने और दूसरों के लिए पतन और पीड़ा का सृजन करते हैं तब अपनी स्रष्टि व्यवस्था में संतुलन स्थापित करने के लिए प्रभु अवतरित होते हैं l भगवान के अवतार कार्यों में दुष्टों को दंड देना एक प्रधान कार्य होता है l भगवान की द्रष्टि में शत्रु और पुत्र का कोई भेदभाव नहीं है l भगवान जो किसी को दंड देते हैं , वह उसके पापों का प्रायश्चित कराने और उसका परम कल्याण करने के लिए ही होता है l " जब महाभारत समाप्त हो गया तब पांडव तो भगवान के निर्देश के अनुसार मर्यादित जीवन जीने लगे किन्तु भगवान कृष्ण का ही वंश ' यदुवंशियों ' में अहंकार तथा स्वच्छंदता पनपने लगी l श्रीकृष्ण ने सोचा कि मेरे रहते तो ये नियंत्रित हैं किन्तु बाद में ये सब स्वच्छंद होकर अनर्थ पैदा करेंगे l भगवान सोच रहे थे कि ये यदुवंशी मेरे आश्रित हैं और धनबल , जनबल आदि विशाल वैभव के कारण स्वच्छंद हो रहे हैं l अन्य किसी से इनकी पराजय नहीं हो सकती l जैसे बांस के वन परस्पर रगड़ से उत्पन्न अग्नि से ही जलकर समाप्त होते हैं , इसी तरह परस्पर संघर्ष से ही इन्हें समाप्त कर के ही शांति संभव है l श्रीमद् भागवत में लिखा है कि भगवान अपने कर्तव्यों का पालन बड़ी कठोरता से करते हैं l उनके अपने कहलाने वाले भी उनके आदर्शों की उपेक्षा करने का उचित दंड पाते हैं l भगवान श्रीकृष्ण के कृष्णावतार की अंतिम लीला शेष थी --- उन्होंने द्वारिकावासी स्त्री , बच्चों व बूढ़ों को शंखोद्वार क्षेत्र भेज दिया तथा अन्य सब को लेकर प्रभास क्षेत्र समुद्र तट पर गए l वहां उन्होंने सबको मंगल कृत्य एवं स्नान करने के लिए कहा l सबने उनकी आज्ञानुसार स्नान व पूजन किया l इसके बाद मैरेयक नामक मदिरा का पान करने लगे l यह पीने में तो मीठी होती है परन्तु इसके नशे से बुद्धि भ्रष्ट और सर्वनाश करने वाली हो जाती है l शराब के नशे में वे यदुवंशी एक दूसरे से लड़ने लगे l रथ और अस्त्र -शस्त्र का प्रयोग करने लगे l श्रीकृष्ण और बलराम के रोकने पर भी नहीं रुके और उन्हें भी अपना शत्रु मानने लगे l गांधारी के शाप का फलित होने का समय आ गया था , वे सब समुद्र तट पर परस्पर लड़-कटकर मर गए l जब भगवान ने देखा कि समस्त यदुवंशियों का संहार हो चुका , तब उन्होंने यह सोचकर संतोष की साँस ली कि पृथ्वी का बचा -खुचा भार भी उतर गया l
29 February 2024
28 February 2024
WISDOM -----
हमारे धर्म ग्रंथों के विभिन्न प्रसंगों में मनुष्य के सुखी और सफल जीवन के लिए विभिन्न सूत्र हैं , लेकिन जब वातावरण में नकारात्मकता होती है , दुर्बुद्धि का प्रकोप होता है तब व्यक्ति अच्छाई को नहीं देखता , अच्छाई में से भी बुराई ढूंढ लेता है जैसे शिशुपाल और दुर्योधन को भगवान श्रीकृष्ण में कोई गुण नहीं दीखते थे , शिशुपाल ने तो भगवान को सौ गालियाँ दीं , दुर्योधन ने उन्हें बंदी बनाने का प्रयत्न किया l इसी तरह रावण कितना विद्वान् और शक्तिशाली था l रावण के गुणों को किसी ने नहीं सीखा l रावण ने जो पापकर्म किए वे ही लोगों के मन -मस्तिष्क पर हावी हो गए l कितनी ही पीढ़ियाँ गुजर गईं लेकिन आततायी , अत्याचारी , अहंकारी , ऋषियों को सताने वाला रावण लोगों के मन -मस्तिष्क पर से हटा नहीं , वह आज भी जिन्दा है l ईश्वर धरती पर मनुष्य रूप में अवतार लेते हैं और अपने आचरण से शिक्षा देते हैं l जब युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया , उसमें सबके लिए काम बांटे जा रहे थे l श्रीकृष्ण ने भी अपने लिए काम माँगा l लेकिन पांडवों ने कहा ---- " भगवन ! आपके लिए तो हमारे पास कोई काम नहीं है l " बहुत ज्यादा जोर देने पर उनसे कह दिया गया कि वे अपनी पसंद का काम स्वयं ढूंढ लें l सभी ने देखा कि भगवान श्रीकृष्ण यज्ञ में आदि से अंत तक अतिथियों के चरण धोने , झूंठी पत्तलें उठाने तथा सफाई रखने का काम स्वयं करते रहे l भगवान ने कहा ---- कोई काम छोटा नहीं होता पर बड़ों को छोटे काम भी करने चाहिए ताकि उनमें अहंकार न हो और छोटों में हीनता की भावना उत्पन्न न होने पाए l
27 February 2024
WISDOM
लघु -कथा ----- 1 . एक दिन पंडित जी की कथा सुनने एक डाकू भी आया l पंडित जी समझा रहे थे ' क्षमा और अहिंसा ' मनुष्य के आभूषण हैं l इनका परित्याग नहीं करना चाहिए l कथा समाप्त हुई l पंडित जी दान -दक्षिणा लेकर गाँव की ओर चल पड़े l बीच में जंगल पड़ता था l जंगल में पहुँचते ही डाकू आ धमका और पंडित जी को सारा धन रख देने को कहा l पंडित जी निडर थे , पास में लाठी थी , उसे लेकर डाकू को मारने दौड़े l अचानक प्रहार से डाकू घबरा गया और विनय पूर्वक बोला ---" महाराज आप तो कह रहे थे ' क्षमा और अहिंसा ' मनुष्य के भूषण हैं , इन्हें नहीं त्यागना चाहिए l " पंडित जी बोले --- " वह तो सज्जनों के लिए था , तेरे जैसे दुष्टों के लिए यह लाठी ही उपयुक्त है l " पंडित जी का रौद्र रूप देखकर डाकू वहां से भाग गया l
2 . एक लकड़हारा अपनी योग्यता के कारण राजा का दोस्त बना और एक दिन वह राज्य मंत्री के पद पर जा पहुंचा l रिश्वत लेने वाले भ्रष्ट कर्मचारी उससे ईर्ष्या करते थे और राजा से उसकी शिकायत करते थे l किसी ने कहा कि उसके पास बहुत सा धन उसके एक बक्से में है l इस शिकायत के आधार पर राजा ने उससे वह संदूक दिखाने को कहा l राजा के आदेश से वह संदूक खोला गया तो उसमें थोड़े से मैले -कुचैले वस्त्र रखे थे l राजा ने पूछा --- 'यह क्या है ? मंत्री ने कहा ---- 'महाराज ! ये वह कपड़े हैं जिन्हें मैं आपकी मित्रता से पहले पहना करता था l इन्हें सुरक्षित इसलिए रखा है ताकि मुझे अपनी पूर्व स्थिति याद रहे , कभी अहंकार न आए और कभी किसी तरह का अन्याय मुझसे न हो l ईश्वर की कृपा से ही मुझे आपकी मित्रता और यह पद मिला , अपनी पूर्व स्थिति को याद रख मैं इसका सदुपयोग करूँ l
26 February 2024
WISDOM -----
वर्तमान समय में संसार में जो भी विकट परिस्थितियां हैं उसके लिए हम कलियुग को दोष देते हैं लेकिन श्रीमद् भागवत में शुकदेव जी परीक्षित से कहते हैं ---- कलियुग में अनेक दोष हैं , फिर भी सब दोषों का मूल स्रोत हमारा अन्त:करण ही है l हमारे दोष -दुर्गुण ही कलियुग के रूप में हमें पीड़ा और पतन में झोंक देते हैं l लेकिन जिस समय हमारा मन , बुद्धि और इन्द्रिय सतोगुण में स्थित होकर अपना -अपना काम करने लगती हैं उस समय सतयुग समझना चाहिए l श्रीमद् भागवत में अपने भीतर सतयुग की स्थापना का रहस्य बताया गया है ---- यदि हम चाहते हैं कि हमारे अन्दर और बाहर सतयुग आ जाये तो हमें विवेकी बनना चाहिए l अपनी भावना , विचार और क्रियाओं को विवेक की कसौटी पर कसना चाहिए , जो सही हो उसे अपनाना और जो गलत हो उसे छोड़ देने का साहस करना चाहिए l ' पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " अविवेकी व्यक्ति थोड़े से काम में ढेरों शक्ति व समय लगा देता है किन्तु विवेक संपन्न व्यक्ति थोड़े का भी बड़ा सार्थक उपयोग कर लेते हैं l ढेरों संपत्ति के बीच लोग फूहड़ जिन्दगी जीते हैं और थोड़े साधनों में भी व्यक्ति व्यवस्थित और शानदार ढंग से रह लेता है l यह विवेक का ही अंतर है l जीवन भी एक संपदा है l निरर्थक कार्यों में सारा जीवन लगा देने से कुछ हाथ नहीं आता , किन्तु विवेकपूर्ण थोड़ा सा भी समय श्रेष्ठ कार्यों में लगता रहे तो मनुष्यों का यश चारों दिशाओं में फ़ैल जाता है l" पांडवों ने अपने वनवास के कष्टपूर्ण समय को नियम , संयम और शक्ति अर्जित करने में बिताया l अर्जुन ने तपस्या कर के शिवजी और देवराज इंद्र से दिव्य अस्त्र -शस्त्र प्राप्त किए l जबकि कौरवों ने अपना समय छल , कपट और षडयंत्र करने , पांडवों को हर समय नीचा दिखाने में ही गँवा दिया l
25 February 2024
WISDOM -----
WISDOM ----
दरभंगा में शंकर मिश्र नमक बहुत बड़े विद्वान् थे l जब वे छोटे थे तो किसी कारण से माँ का दूध न मिल पाने के कारण धाय रखनी पड़ी l दाई ने माता के समान प्रेम से बालक को अपना दूध पिलाया l शंकर मिश्र की माता दाई से कहा करती थीं कि बच्चा जो पहली कमाई लायेगा वो तेरी होगी l बालक बड़ा होने पर किशोर अवस्था में ही संस्कृत का विद्वान् हो गया l राजा ने उसकी प्रशंसा सुनकर उसे दरबार में बुलाया और उसकी काव्य रचना पर प्रसन्न होकर उसे अत्यंत मूल्यवान हार उपहार में दिया l शंकर मिश्र हार लेकर अपनी माता के पास पहुंचे l माता ने वह हार अपने वचन का पालन करते हुए तुरंत ही दाई को दे दिया l दाई ने उसका मूल्य जंचवाया तो वह लाखों रूपये का था l इतनी कीमती चीज वह लेकर क्या करती ? लौटाने आई l पर शंकर मिश्र और उनकी माता के लिए दिए गए वचन का पालन करना गौरव की बात थी इसलिए वह हार वापस लेने को तैयार नहीं हुए l बहुत दिन देने , लौटाने का झंझट बना रहा l अंत में दाई ने उस धन से एक बड़ा तालाब बनवा दिया जो आज भी दाई का तालाब के नाम से अब भी मौजूद है l शंकर मिश्र का वचन पालन और दाई का नि:स्वार्थ प्रेम प्रशंसीय है l
24 February 2024
WISDOM -----
संत तिरुवल्लुवर के पास एक व्यक्ति पहुंचा , बहुत परेशान था वह l उसने संत से कहा ---- "भगवन ! मुझे मन की शांति दें l भारत का कोई ऐसा मठ , आश्रम , मंदिर नहीं , जहाँ मैं न गया होऊं l ऐसे कोई संत नहीं , जिनके चरणों में मैंने माथा न टेका हो , पर मुझे शांति न मिल सकी l " संत तिरुवल्लुवर ने उत्तर में पास में पड़ा हुआ एक सिक्का उठाया और उसे अपनी मुट्ठी में रख लिया और फिर उस व्यक्ति से कहा ---- " क्या तुम इस सिक्के को बाहर बाग़ से ढूंढ कर ला सकते हो l ' वह व्यक्ति आश्चर्य से बोला --- " भगवन ! जो आपके हाथ के भीतर है , वह मुझे बाहर कैसे मिलेगा ? " संत तिरुवल्लुवर बोले ---- " ! पुत्र ! तुम शांति भी बाहर क्यों ढूंढ रहे हो , अपने मन को स्थिर करो l जब मन स्थिर हो जायेगा तो यही शांति तुम्हारे भीतर मिल जाएगी l " आज संसार की सबसे बड़ी समस्या यही है लोगों के मन में शांति नहीं है l जिसके पास जितना सुख , वैभव , और शक्ति है , वह उतना ही अशांत है l जब व्यक्ति स्वयं अशांत होता है तब वह अपने आसपास के वातावरण को भी अशांत कर देता है l
23 February 2024
WISDOM -----
लघु -कथा ----- नदी किनारे चार सहेलियां रहती थीं --- छिपकली , चुहिया , लोमड़ी और बकरी l चारों साथ -साथ रहतीं और आपस में हँसती -हँसाती l एक दिन उनका मन नदी के पार जाने और सैर करने का हुआ l कछुआ भी वहीँ रहता था l चारों ने कछुए से कहा ----" हम सच्ची सहेलियां हैं l तुम हम चारों को पीठ पर बैठाकर नदी पार करा दो तो बड़ी कृपा होगी l कछुए ने पहले तो आनाकानी की फिर उनका सच्ची सहेलियां होने की बात सुनकर वह राजी हो गया l उसने कहा --- " तुम चारों मेरी पीठ पर बैठ जाओ , नदी पार करा दूंगा l " वे चारों बैठ गईं और कछुआ चल पड़ा l कुछ दूर चलने पर उसने कहा --- " वजन तो बहुत हो गया है , तुम में से एक को उतरना होगा l मुझसे ढोया नहीं जा रहा l " चुहिया ने छिपकली को पानी में धकेल दिया l कुछ दूर चलने पर एक और के उतरने की बात कही गई तो लोमड़ी ने चुहिया को पानी में धक्का दे दिया l कुछ दूर और चलने पर एक और के उतरने की बात हुई तो बकरी ने लोमड़ी को बीच धार में धकेल दिया l अकेली बकरी शेष रह गई l कछुए ने कहा --- " तुम चारों सच्ची सहेलियां बनती थीं l तब साथ ही सबको पार होना था l जब सबल द्वारा निर्बल को धकेले जाने का सिलसिला चल रहा है तो तुम्हारी मित्रता झूठी हुई l मैंने तो सच्ची सहेलियों को पार करने का वायदा किया था l " यह कहकर कछुए ने गहरी डुबकी लगाईं और बकरी को भी पानी में डुबो दिया l
22 February 2024
WISDOM ------
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " वासना और तृष्णा की खाई इतनी चौड़ी और गहरी है कि उसे पाटने में कुबेर की संपदा और इंद्र की समर्थता भी कम पड़ती है l " घटना रूस के साइबेरिया क्षेत्र के एक गाँव की है l उस गाँव के लिए यह विख्यात था कि गाँव वाले अपनी जमीन बिना किसी मूल्य के किसी भी आगंतुक को दे दिया करते थे , यदि वह उनके द्वारा रखी गई शर्त को पूर्ण कर दे l शर्त भी बहुत सरल थी , केवल दौड़ना भर था l यह सुनकर एक व्यक्ति उस गाँव के प्रधान से मिला l गाँव का प्रधान उस व्यक्ति को देखकर जोर से हँसा और बोला --- " लो एक और आ गया l " वह व्यक्ति आश्चर्य चकित हुआ और बोला --- " आप हँसे क्यों ? " गाँव का प्रधान बोला ---- " हँसने की बात यह है कि यहाँ तो लगभग हर दिन कोई न कोई शर्त सुनकर आता है , पर आज तक उसको जीतकर कोई वापस नहीं लौटा l किसान ने पूछा --- " शर्त क्या है ? " ग्राम प्रधान बोला --- " सारी जमीन तुम्हे नि:शुल्क उपलब्ध है l इसके लिए मात्र एक शर्त है कि तुम यहाँ खींची रेखा से सूर्योदय से दौड़ना शुरू करोगे और सूर्यास्त होने तक जितनी जमीन नापकर तुम इसी रेखा तक आ जाओगे , उतनी जमीन तुम्हारी हो जाएगी , पर यदि नहीं आ पाए तो तुम्हे आजन्म गुलाम बनकर यहीं रहना पड़ेगा l " उस व्यक्ति को लगा कि यह तो बड़ी आसान शर्त है और उसने तुरंत हाँ भर दी l सूर्योदय पर उसने भागना शुरू किया और दोपहर तक सात -आठ मील जमीन नाप ली तो उसका लालच बढ़ने लगा l उसने साथ लाया भोजन और पानी वहीँ छोड़ा और सोचा कि एक दिन नहीं भी खाया तो क्या , आज ज्यादा से ज्यादा जमीन नाप लेते हैं l भागते -भागते दोपहर के तीन बज गए l ज्यादा जमीन का लालच तो उसे दूसरी ओर खींच रहा था , पर मन मार कर वह वापस लौटा तो खींची रेखा से आधा मील दूर जमीन पर गिर पड़ा l ग्राम प्रधान वहीँ पास खड़ा था और उससे बोला ---- " शर्त आसान है , परन्तु मनुष्य के लालच का अंत नहीं है l इसीलिए आज तक इस शर्त को पूरा करने वाला कोई मिला नहीं और जितने गाँव वाले दिखाई पड़ते हैं , ये सब शर्त हारे हुए गुलाम ही हैं l "
20 February 2024
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं ( प्रवचन का अंश--27. 05.77 )---- " हम और आप ऐसे वक्त में रह रहे हैं , जिसमें इनसान का स्वार्थ बेहिसाब रूप से बढ़ता जा रहा है l आदमी समझदार तो बहुत होता जा रहा है , लेकिन आदमी पत्थर का , निष्ठुर बनता जा रहा है ----- इसके अन्दर से दया , करुणा , ममता , स्नेह , दुलार और आदर्शवाद के सारे सिद्धांत खतम होते चले जा रहे हैं l पैसा , काम - वासना , तृष्णा के अलावा और कोई दूसरा लक्ष्य नहीं है l जब आदमी के ह्रदय से मुहब्बत , स्नेह , सहकारिता, ईमानदारी , भलमनसाहत चली जाएगी तब आदमी के बराबर खौफनाक जानवर दुनिया के परदे पर कोई नहीं होगा l शेर मारकाट में तो बहुत ताकतवर होता है , पर बेअक्ल होता है l हाथी भी ताकतवर बहुत होता है , पर वह भी बेअक्ल होता है लेकिन आदमी इतना समझदार है कि इसको किसी के पेट में मुंह खंगाल कर के खून पीने की जरुरत नहीं है l किसी के पेट में बिना दांत गड़ाए ही वह दूसरों का खून पी सकता है और आदमी को मुरदा बना कर के छोड़ सकता है l यह कला मनुष्य को आती है l आदमी बड़ा खौफनाक और खतरनाक है l पहले आदमी को देखकर हिम्मत बंधती थी कि वह हमारी सहायता करेगा , हम एक से दो हो गए l लेकिन अब हमको भय मालूम पड़ता है कि कहीं ऐसा न हो कि हमारे साथ -साथ जो व्यक्ति चलता है , वही हमारे लिए पिशाच न सिद्ध हो l यह तरक्की मुझे बड़ी खौफनाक मालूम पड़ती है l यदि तरक्की इसी हिसाब से होती चली गई तो आदमी को देखकर आदमी डरेगा और कहेगा कि देखो , आदमी जा रहा है , होशियार रहना l " ------- विकास की अंधी दौड़ में भावनाएं समाप्त हो गई है , संवेदनहीनता के कारण ही युद्ध , अपराध , अन्याय, अत्याचार होता है l यह एक पक्षीय विकास सम्पूर्ण मानवजाति के लिए खतरा है l
19 February 2024
WISDOM -----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' इस संसार में दैवी और आसुरी दोनों ही शक्तियां काम करती हैं l यह देवासुर संग्राम सदा जारी रहता है l इसमें देव पक्ष का समर्थन करने के लिए , उसकी सुरक्षा के लिए यह आवश्यक है कि असुर पक्ष का विरोध किया जाये , उससे सावधान रहा जाये और उसे नष्ट किया जाये l जैसे खेत को पशु -पक्षियों से सुरक्षित न रखा जाये तो वे उसे खा जाएंगे l इसी तरह यदि आसुरी शक्तियों से न बचा जाए, उनका प्रतिरोध न किया जाए तो वे धीरे -धीरे दैवी शक्तियों पर अपना कब्ज़ा करती जाती हैं l बुराई छोटी है , यदि यह समझकर उसकी उपेक्षा की जाए तो वह क्षय रोग की तरह चुपके -चुपके अपना कब्ज़ा जमाती है और एक दिन उसका पूरा आधिपत्य हो जाता है l ' महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन अपने सामने गुरु द्रोणाचार्य , भीष्म पितामह और अपने सभी बंधुओं को देखता है तो युद्ध करने से इनकार कर देता है , अपने धनुष -बाण नीचे रख देता है l तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसे गीता का उपदेश दिया और समझाया कि ये कौरव अन्याय और अधर्म के मार्ग पर हैं l यदि अत्याचार और अन्याय को हम नहीं मिटाएंगे तो वे हमें मिटा डालेंगे l इसलिए अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना के लिए युद्ध करो , कायर नहीं बनो l यह महाभारत तो धरती पर लड़ा गया , एक महाभारत मनुष्य का अपनी ही दुष्प्रवृत्तियों से है , अपने भीतर की बुराइयों का ही अंत करना है क्योंकि मनुष्य की तृष्णा , लालच , ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार , महत्वाकांक्षा ----ये सब दुष्प्रवृत्तियाँ ही धरती पर महाभारत को जन्म देती हैं l
18 February 2024
WISDOM ----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते है ---- जब तक व्यक्ति स्वयं न चाहे , उसके संस्कारों में परिवर्तन कठिन है l अनेक बातों को सुनने , समझने और जानने के बावजूद भी वह वही करता है जहाँ उसके संस्कार खींचते हैं , जिसके लिए उसकी वृत्तियाँ उसे वशीभूत करती हैं l ' जब व्यक्ति संकल्प ले और श्रेष्ठ गुरु के बताए मार्ग पर चले तब कठोर साधना और गुरु की कृपा से ही रूपांतरण संभव होता है l प्रवचन और रटी -रटाई बातों से संस्कार परिवर्तित नहीं होते l इस संबंध में वे बहेलिया और पक्षियों की कथा कहते हैं ----- अनेक ज्ञानीजनों ने पक्षियों को समझाया था कि बहेलिया किसी भी तरह भरोसेमन्द नहीं है l वह बड़ा चालाक , धूर्त व मक्कार है l वह जंगल में आएगा , अपना जाल बिछाएगा , उसमें दाने डालेगा , लेकिन तुम में से किसी को इसमें फंसना नहीं है l कहते हैं कि सबने यह बात पक्षियों को इतनी ज्यादा बार समझाई कि उन्हें रट गई l बहेलिया जब जंगल में आया तो ज्ञानीजनों द्वारा पढ़ाये गए पक्षी बड़े उच्च स्वर में अपने पढ़े हुए पाठ को दोहरा रहे थे l बहेलिया आएगा , अपना जाल बिछाएगा , दाने डालेगा , लेकिन इन दानों को चुगना नहीं है l किसी भी कीमत पर बहेलिए के जाल में फँसना नहीं है l बहेलिए ने पक्षियों की यह पाठ -रटन सुनी , वह चालाकी से मुस्कराया l फिर उसने हँसते हुए अपना जाल फैलाया , उसमें दाने डाले और दूर खड़ा हो गया l अपनी प्रवृत्ति के वशीभूत पक्षी अपना पाठ रटते -दोहराते उसके जाल पर आ बैठे l वे दाने चुगते गए और जाल में फँसते गए l उनकी प्रवृत्ति और संस्कारों पर इस पाठ -रटन का कोई प्रभाव नहीं पड़ा l मानव मन की स्थिति भी यही है l
17 February 2024
WISDOM ------
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- 'मानव मन की स्थिति ऐसी है कि अनेक बातें जानने , सुनने और समझने के बावजूद वह वही करता है , जिधर उसके संस्कार खींचते हैं , जिसके लिए उसकी वृत्तियाँ उसे वशीभूत करती हैं l मन में संसार की आसक्ति और कर्म बंधन ऐसे होते हैं कि वह इन जटिल संस्कारों से मुक्त नहीं हो पाता l प्रवचन , पुस्तकें सब मन को समझाने में नाकाम रहती हैं l ' अपने संस्कारों के वशीभूत होकर व्यक्ति छल , कपट , षड्यंत्र करता है , धोखा देता है और अपने किए जाने वाले हर कार्य को सही साबित करने के लिए अनगिनत तर्क भी देता है l कहते हैं अच्छी संगत हो तो व्यक्ति का कल्याण होता है लेकिन यदि संस्कार जटिल हों , कुटिल हों तो श्रेष्ठ संगत का भी कुछ असर नहीं होता l महाभारत में दुर्योधन का चरित्र ऐसा ही था l दुर्योधन को पितामह भीष्म , गुरु द्रोणाचार्य और कुलगुरु कृपाचार्य का संरक्षण मिला लेकिन इस संगत का उस पर कुछ असर नहीं हुआ , उसे तो कुटिल , कुमार्गगामी शकुनि ही पसंद आया l जब व्यक्ति के संस्कार ही षड्यंत्र और धोखा देने के होते हैं तब साक्षात् भगवान भी समझाने आएं , तो व्यक्ति समझता नहीं है l भगवान श्रीकृष्ण स्वयं दुर्योधन को समझाने गए कि तुम पांडवों को केवल पांच गाँव दे दो , हिंसा और युद्ध के उत्तरदायी न बनो l लेकिन दुर्योधन नहीं माना और कहने लगा --- धर्म को मैं भी जानता हूँ लेकिन धर्म में मेरी कोई प्रवृत्ति नहीं है l जिसे आप अधर्म कहते हैं , उसे भी मैं जानता हूँ लेकिन उसे मैं छोड़ नहीं सकता l भगवान की बात को समझना तो बहुत दूर की बात , वह उन्हें ही बन्दी बनाने चला l इस प्रसंग से यही स्पष्ट होता है कि कुसंस्कार इतने जटिल होते हैं उनमें परिवर्तन और सुधार संभव नहीं होता l इसलिए यदि जीवन में हमारा पाला ऐसे लोगों से पड़े जो धोखा देते हैं , हमारे विरुद्ध छल , कपट और षड्यंत्र रचते हैं तो यथासंभव उनका सामना अवश्य करें लेकिन अपने मन पर बोझ न आने दें क्योंकि उनके संस्कार ही ऐसे हैं वे ऐसे अनैतिक कार्य करने से कभी नहीं चूकेंगे , कभी नहीं सुधरेंगे l दुर्योधन तो वीर था , युद्ध में वीरगति प्राप्त हुई तो उसे स्वर्ग मिला लेकिन तृष्णा , कामना और वासना में डूबा प्राणी जन्म -जन्मान्तर तक कर्म -बन्धनों में उलझकर भटकता ही रहता है l
16 February 2024
WISDOM ------
लघु कथा ---- ' मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है l ' सुबह -सुबह एक लोहार घर से बाहर निकला l रास्ते में उसे लोहे के दो टुकड़े मिल गए l उसने उन्हें उठा लिया l घर लौटने पर लोहार ने एक टुकड़े से तलवार बनाई और दूसरे टुकड़े से ढाल बना दी l कुछ दिनों के बाद एक योद्धा आकर तलवार और ढाल खरीद कर ले गया l उस योद्धा ने कई युद्धों में उस तलवार और ढाल का उपयोग किया l एक युद्ध में तलवार टूट गई और ढाल ज्यों की त्यों सलामत रही l टूटी तलवार को योद्धा घर ले आया और एक कोने में उसे रख दिया l ढाल भी पास ही पड़ी थी l रात में जब सब सो गए तो तलवार कराहती हुई ढाल से बोली ----- " बहन ! देखो मेरी कैसी दुर्दशा हो गई और एक तू है जो ज्यों की त्यों सुरक्षित है l " ढाल ने कहा ---- " हम दोनों में एक ही फर्क है , तू सदैव किसी को मारने -काटने का काम करती है और मैं बचाने का काम करती हूँ l मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है l " यह सत्य ईर्ष्या , द्वेष और अहंकार से पीड़ित लोगों की समझ में आ जाये तो संसार में शांति और सुकून आ जाये l जन्म और मरण विधाता के हाथ में है , ईश्वर की इच्छा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता l संसार में आज यही दुर्बुद्धि व्याप्त है , अहंकारी स्वयं को भगवान समझने लगा है l
WISDOM -----
श्रीमद भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --- जो मान -अपमान , निंदा -प्रशंसा में सम रहता हैं , इनसे विचलित नहीं होता , ऐसा भक्त मुझे प्रिय है l ' ऐसी स्थिति तभी संभव है जब व्यक्ति में अहंकार न हो l यदि अहंकार होगा तो मान -सम्मान मिलने पर व्यक्ति के अहंकार को पोषण मिलेगा , वह और अहंकारी हो जायेगा l इसके विपरीत यदि निंदा और अपमान मिलता है तो अहंकार पर चोट पहुँचती है और पोषण न मिलने पर यही अहंकार घाव की भांति रिसने लगता है l इसलिए भगवान हमें समझाते हैं कि यदि हम अपने अहंकार को छोड़ दें तो मान -अपमान स्वत: ही समाप्त हो जाएंगे अर्थात लोग अपना काम करते रहेंगे , हमें अपमानित करें या प्रशंसा करे , हमारा मन विचलित नहीं होगा l अहंकार समाप्त होते ही हम में न तो मान पाने की लालसा रहेगी और न ही अपमानित होने का भय सताएगा l -------- ----------------स्वामी रामतीर्थ अमेरिका प्रव्रज्या हेतु गये थे l उनका उद्बोधन प्रसिद्द चिंतकों व विचारकों के मध्य हुआ तो सभी ने एक स्वर से उनके अद्भुत व्यक्तित्व और प्रकांड पांडित्य की प्रशंसा की l उद्बोधन के पश्चात् वे जिस महिला के घर रुके हुए थे , उनके घर पहुंचे और उस महिला से बोले ---- " बहन ! आज ईश्वर ने इस नाचीज को अन्यथा ही बहुत प्रशंसा दिलवाई l " कुछ दिनों उपरांत वे न्यूयार्क के ब्रौंक्स क्षेत्र से गुजर रहे थे कि उनकी वेशभूषा को देखकर कुछ अराजक तत्वों ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया , उन पर छींटाकशी करने लगे l घटना की खबर जब उस महिला को लगी तो वो कुछ साथियों को लेकर स्वामीजी को लेने पहुंची l स्वामी रामतीर्थ उसी निर्विकार भाव से बोले ---- " बहन ! आप हस्तक्षेप न करो l आज ईश्वर का अपने इस भक्त को अपमान से भेंट कराने का मन है l भगवान के भक्त के लिए मान क्या और अपमान क्या ? " श्रीमद् भगवद्गीता में जिस स्थितप्रज्ञ का वर्णन है , उस स्वरुप का दर्शन उनमें सबको उन क्षणों में हुआ l
14 February 2024
WISDOM ----
लघु कथा ---- मगध नरेश ने कौशल नरेश पर चढ़ाई कर दी l मगध सेना का दबाव देखकर कौशल नरेश ने नागरिकों को नगर खाली करने का आदेश दिया l मगध की सेना नगर पर कब्ज़ा करे , इसके पहले नागरिकों सहित सारा सामान सुरक्षित निकल गया किन्तु कौशल नरेश थोड़े से व्यक्तियों और अंगरक्षकों सहित मगध सेना के घेरे में आ गए l कौशल नरेश ने मगध के सेनानायक को सन्देश दिया कि यदि हमारे साथ के दस व्यक्तियों को सकुशल निकल जाने दें तो वे अपने अंगरक्षकों सहित बिना प्रतिरोध के समर्पण कर देंगे l सेनानायक ने शर्त स्वीकार कर ली और बिना खून खराबी के कौशल नरेश को बंदी बनाकर मगध नरेश के सामने प्रस्तुत किया l मगध नरेश ने सारा विवरण सुना तो कौशल नरेश से पूछा कि जिन व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए आपने स्वयं को कैद कर दिया वे कौन थे ? कौशल नरेश ने उत्तर दिया कि वे हमारे राज्य के लोकसेवी संत थे l वे सुरक्षित हैं तो राज्य में आदर्शनिष्ठ , कर्तव्यनिष्ठ व्यक्तियों का निर्माण बराबर होता रहेगा तथा उपयुक्त शासक भी पुन: पैदा कर लिए जाएंगे l राष्ट्र की सच्ची संपत्ति उसके श्रेष्ठ व्यक्तित्व संपन्न नागरिक होते हैं और उन्हें बनाने वाले होते हैं ऐसे आदर्शनिष्ठ संत l उनकी रक्षा के लिए कोई भी मूल्य चुकाया जाना उचित है l मगध राजा ने यह सुनकर कौशल नरेश को बंधन मुक्त कर के सम्मान सहित उनका राज्य उन्हें लौटा दिया l वे बोले जिस राज्य में , जहाँ जन -कल्याण में लगे हुए सत्पुरुषों को इतना महत्त्व दिया जाता है , वहां शासन में कोई परिवर्तन लाना आवश्यक नहीं l उनसे तो हमें भी प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए l वास्तव में श्रेष्ठ व्यक्तित्व संपन्न व्यक्ति किसी राष्ट्र सबसे बड़ी संपत्ति होते हैं और राष्ट्र की साधन सम्पन्नता और गौरव वे ही बढ़ा सकते हैं l
13 February 2024
WISDOM ----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " इस संसार में सज्जन को सज्जन और दुष्ट को दुष्ट सलाहकार मिल जाते हैं l यदि हमारा विवेक जागृत नहीं है तो दूसरों की सलाह हमें भटका भी सकती है l " पुराण में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कथा है ---- देवकी कंस की चचेरी बहन थीं , उनका विवाह वसुदेव से हुआ l l विदा के समय स्नेहवश कंस स्वयं रथ हाँक रहा था l उस समय भविष्यवाणी हुई कि देवकी के आठवें पुत्र द्वारा ही उसका वध होगा l यह सुनकर वह तलवार लेकर देवकी को मारने दौड़ा l तब वसुदेव ने उसे समझाया कि मृत्यु तो निश्चित है , तुम स्त्री और वो भी बहन की हत्या का कलंक क्यों लेते हो ? तुम्हे इसके पुत्र से खतरा है तो मैं इसके पुत्र होते ही तुम्हे सौंप दूंगा l जब देवकी के प्रथम पुत्र को लेकर वसुदेव कंस के पास गए तो कंस ने यह कहकर कि आपके आंठ्वे पुत्र से खतरा है , उस पुत्र को वापिस कर दिया l लेकिन जब उसे पता चला कि देवता उसे मारने की योजना बना रहे हैं तब उसने वासुदेव और देवकी को जेल में बंद कर दिया और उसके सभी पुत्रों को मारता गया l उसके पिता उग्रसेन ने विरोध किया तो उन्हें भी बंदी बना लिया l उसने अपने मंत्रियों को बुलाकर उनकी राय मांगी l श्रीमद् भागवत में शुकदेव जी परीक्षित से कहते हैं ---- एक तो कंस की बुद्धि स्वयं बिगड़ी हुई थी l फिर उसे मंत्री ऐसे मिले जो उससे बढ़कर दुष्ट थे l उन्होंने सलाह दी कि जब देवता हमें मारने का प्रयास कर रहे हैं तो हमें भी देवताओं को और देव शक्तियों को पोषण करने वाली सद्प्रव्रत्तियों को ही समाप्त कर देना चाहिए l कंस भी काल के फंदे में फँसा हुआ था , सबने मिलकर निर्णय लिया कि जहाँ भी अच्छे कार्य होते मिलेंगे , उन्हें नष्ट कर दिया जायेगा l कंस को मारने वाला कहाँ पैदा हुआ है यह पता न होने से उन राक्षसों ने सभी नवजात शिशुओं की हत्या करने की योजना बनाई और तरह -तरह के उत्पात करने शुरू कर दिए l कहते हैं जब मौत सिर पर नाचती है तब व्यक्ति की बुद्धि काम करना बंद कर देती है l नवजात शिशुओं का वध और श्रेष्ठ प्रवृत्तियों का अंत आदि अत्याचारों के कारण उनका पाप का घड़ा भर गया और एक -एक कर के सभी राक्षसों और कंस का वध हुआ l विवेक रहित व्यक्ति न अपना हित कर सकते हैं न दूसरों का l
12 February 2024
WISDOM ------
प्रत्येक प्राणी का एक स्वभाव होता है , वह नहीं बदलता जैसे बिच्छू का स्वभाव है डंक मारना , वह हर हाल में डंक मारेगा l गिरगिट रंग बदलता है l मनुष्य को भगवान ने बुद्धि दी है , वह चाहे तो संकल्प लेकर , सतत प्रयास कर के अपनी दूषित प्रवृत्तियों को त्याग कर सन्मार्ग पर चल सकता है लेकिन कामना , वासना , तृष्णा , महत्वाकांक्षा , ईर्ष्या , द्वेष , स्वार्थ , लालच आदि उसके भीतर इतनी गहरी जड़ जमाए हुए हैं कि वह स्वयं को इन दुष्प्रवृत्तियों से अलग कर ही नहीं सकता , उसे इन दुष्प्रवृत्तियों की दुर्गन्ध के बीच रहना ही अच्छा लगता है l एक कथा है ----रास्ते में चलते -चलते रात हो जाने से एक मछली वाली ने एक मालिन के घर का आश्रय लिया l मालिन ने उसे पुष्प गृह के बरामदे में ठहराया और यथायोग्य उसकी सेवा की परन्तु मछली वाली को रात में किसी तरह नींद ही नहीं आ रही थी l अंत में वह समझ गई कि पुष्प गृह में रखे हुए नाना प्रकार के खिले हुए फूलों की महक के कारण ही उसे नींद नहीं आ रही है l तब उसने मछलियों की टोकरी में जल छिड़ककर अपने सिराहने रख लिया और फिर सुख से सो गई l अज्ञानी और दूषित संस्कारों में जकड़ा हुआ व्यक्ति इस मछली वाली की भांति है , इस दुर्गन्ध को छोड़कर उसे कुछ अच्छा नहीं लगता l l
11 February 2024
WISDOM -----
देवता और असुर शुरू से ही इस संसार में हैं l देखने में तो ये दोनों शरीर से मनुष्य ही हैं , केवल उनके गुण -अवगुण के आधार पर उन्हें देव या असुर कहा जा सकता l जो असुर हैं , उनमें गुणों की कोई कमी नहीं होती l बहुत ज्ञानी , तपस्वी ------ अनेक गुणों से संपन्न होते हैं , केवल एक विशेष दुर्गुण ' अहंकार ' उनके सब गुणों पर पानी फेर देता है l इस अहंकार के कारण अनेक दुर्गुण उनमे स्वत: ही खिंचे चले आते हैं l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " गुणवान होना बहुत अच्छी बात है l गुणों से ही संसार में कीर्ति मिलती है , यश फैलता है l सफलता और कुशलता दोनों खिंचे चले आते हैं l लेकिन इन गुणों के साथ यदि अहंकार भी हो तो इन सबका दायरा संसार तक ही सिमट जाता है l अहंकारी व्यक्ति अपने समस्त गुणों, विभूतियों के बावजूद दैवी प्रयोजनों के लिए अनुकूल नहीं रह जाता l " अहंकारी स्वयं को श्रेष्ठ समझता है और अपने अहंकार के पोषण के लिए छल , कपट , षड्यंत्र , कुटिलता , कठोरता ----- आदि का सहारा लेता है l रावण कितना विद्वान् था लेकिन अहंकारी था , अपनी महत्वाकांक्षा के अतिरिक्त वह किसी का सगा नहीं था l बालि से उसकी मित्रता केवल छल और छद्म थी , वह वानरों में फूट डालकर उनकी शक्ति को कम करना चाहता था l इस अहंकार के कारण ही उसने ऋषियों पर अत्याचार किए , सीता -हरण किया l दसों दिशाओं में उसका आतंक था , उसका अहंकार उसे ले डूबा l रावण को युगों से हर वर्ष जलाते हैं , लेकिन यह अहंकार समाप्त नहीं हुआ l आज संसार में जितनी अशांति , युद्ध , अपराध आदि अनेक समस्याएं हैं उनके मूल में किसी न किसी का अहंकार ही है l संसार में जितने भी अहंकारी हैं वे यदि अपने अहंकार को त्याग दें तो संसार में कितनी शांति हो l
10 February 2024
WISDOM ------
1 . दिन का अधिकांश समय एक बच्चा एकांत में बिताता l न खाने में कोई तर्क , न बाहर निकलने की इच्छा l कहीं जाता तो शीघ्र ही अपनी राह लौट आता l पिता को चिंता हुई l एक दिन पूछ ही लिया --- " बेटा ! आजकल काम -धंधा कुछ नहीं करते l कुछ कष्ट रहता है क्या ? " बेटे ने विनीत भाव से उत्तर दिया ---- " पिताजी ! आप ही तो कहते हैं , मनुष्य को शांति का जीवन बिताना चाहिए l " पिता ने हँसकर कहा ---- "बेटे ! चुपचाप पड़े रहने का नाम शांति नहीं है l कैसी भी स्थिति हो धैर्य रखकर , अनिवार्य दुःखों को स्वयं वीरता पूर्वक झेलता हुआ भी उद्विग्न न हो उसे शांति कहते हैं l "
2. राजा भोज ने नगरवासियों को एक सार्वजनिक भोज दिया l लाखों लोग भांति -भांति के पकवानों -मिष्टान्न खाकर तृप्त हुए l अपनी उदारता की चर्चा व प्रशंसा सुनकर राजा का सीना गर्व से फूल गया l शाम को एक लकड़हारा सिर पर लकड़ी का गट्ठर लिए उन्हें नगर के द्वार पर मिला , उन्होंने उससे पूछा ---- " क्या तुम्हे पता नहीं था कि राजा भोज ने आज सार्वजनिक भोज दिया है अन्यथा तुम्हे यह श्रम क्यों करना पड़ता ? " लकड़हारा बोला ---- "नहीं , मुझे पूरी तरह पता था , पर जो परिश्रम की कमाई खा सकता है , उसे राजा भोज के सार्वजनिक भोज से क्या लेना -देना ? परिश्रम की रुखी रोटी का आनंद मुफ्त के पकवानों में कहाँ ? " ' श्रम और पसीने से उपार्जित जीविका से जो आत्मगौरव जुड़ा है , उसका आनंद इन व्यंजनों से अधिक है l
9 February 2024
WISDOM -----
भौतिक प्रगति के साथ नैतिकता और चरित्र की श्रेष्ठता की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया , इसलिए यह विकास अधूरा है l मनुष्य अपनी बुद्धि का उपयोग अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए करने लगा है l जैसे पहले तीर्थ यात्रा का बहुत महत्त्व था , लोगों को तीर्थ स्थान जाकर असीम शांति और ऊर्जा मिलती थी l लेकिन अब तीर्थ भी मनोरंजन के स्थान हो गए हैं l लोगों ने पुरानी मान्यता को दूषित कर दिया l यह मान्यता है कि तीर्थ स्नान से सारे पाप धुल जाते हैं , इसका अर्थ यही था कि ऐसे पवित्र स्थल पर जाने से जीवन में नई चेतना का संचार होता है और बुद्धि सन्मार्ग की ओर प्रेरित होती है l दुर्बुद्धि के कारण लोग इस पवित्र भाव को भूल गए , सोच विकृत हो गई कि ' पाप कमाओ और गंगा में स्नान कर के उनसे छुटकारा पा लो , , ऐसी सोच ने अपराध में और वृद्धि कर दी l आचार्य श्री लिखते हैं ----" यदि इस प्रकार गंगा स्नान से पापों से छुटकारा मिल जाता तो सबसे पहले मछलियाँ और मगरमच्छ स्वर्ग पहुँच जाते जो हर समय गंगाजल में ही रहते हैं l " श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान ने कहा है कि निष्काम कर्म से मनुष्य की बुद्धि निर्मल होती है , जाने -अनजाने जो पाप किए हैं वे कटते हैं l ' नि 'स्वार्थ भाव से सेवा के कार्य करने से घर बैठे ही तीर्थ का पुण्य मिल जाता है l
8 February 2024
WISDOM -----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने ' प्रज्ञा पुराण ' में लघु कथाओं और प्रसंग के माध्यम से हमें जीवन जीने की कला सिखाई है l --- संसार में विभिन्न धर्मों के लोग अपने -अपने धर्म के कर्मकांड , उपासना करते हैं l हर धर्म के अलग तरीके हैं l मनुष्य पूजा -उपासना करने में निश्चित रूप से अपना कुछ समय भी देता है l यह सब भी जरुरी है अपने धर्म और संस्कृति को जीवित रखने के लिए l लेकिन मन चंचल है , केन्द्रित नहीं होता , हर समय कुलांचे भरता रहता है l यही कारण है कि संसार में विभिन्न तरीकों से उस परम सत्ता को पूजने और धर्म के नाम पर विभिन्न कार्य करने के बावजूद भी संसार में शांति नहीं है l आचार्य श्री लिखते हैं --- ' केवल माला घुमाते रहना जप नहीं है l भगवान की सच्ची पूजा कर्तव्यपालन और दुःखियों की सेवा है l यदि कोई व्यक्ति बड़े -बड़े व्रत -उपवास रखता है , पूजा -पाठ करता है , किसी इच्छापूर्ति के लिए यज्ञ -अनुष्ठान करता है , लेकिन गरीबों का शोषण करता है , किसी का हक छीनता है , लोगों का दिल दुखाता है तो उससे भगवान कभी प्रसन्न नहीं हो सकते l -------- एक बार रामलीला खेलने के लिए दो गरीब बच्चों को चुना गया l उन्हें राम -लक्ष्मण बना दिया गया l सबने उनकी आरती उतारी l खूब पैसे इकट्ठे हुए l तीन दिन तक इसी प्रकार कार्यक्रम चलता रहा l उन बच्चों ने सोचा था कि उन्हें भी कुछ रूपये -पैसे मिलेंगे l लेकिन अंतिम दिन प्रसाद बंटा , सबने खूब मौज -मस्ती की , ठर्रा पिया किन्तु उन दोनों बच्चों को जिन्हें राम लक्ष्मण बनाया गया था , किसी ने खाने के लिए भी नहीं पूछा और उन बच्चों से कहा --- " अभी पैसे नहीं मिले हैं , बाद में तुम्हे कपड़े देंगे , अभी जाओ l " वे दोनों बेचारे रोते हुए चले गए l यह सोचने का प्रश्न है क्या ऐसे धार्मिक कार्य से ईश्वर प्रसन्न होंगे ? ' एक प्रसंग है ---- एक बार गुरु नानकदेव जी किसी खां साहब से मिलने गए l वे उस समय नमाज पढ़ रहे थे l गुरूजी को हँसी आ गई l नमाज से उठकर खां साहब ने नानकजी से पूछा ---- " आप क्यों हँस रहे थे , मेरी नमाज देखकर l " नानकदेव जी ने कहा ---- " मैं हँस रहा था इसलिए कि तुम नमाज नहीं पढ़ रहे थे , अरब में घोड़े खरीद रहे थे l " यह सुनकर खां साहब शर्मिंदा हुए क्योंकि वे नमाज पढ़ते समय अरब में घोड़े खरीदने की बात सोच रहे थे l इसलिए पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने पूजा -उपासना के साथ नि:स्वार्थ सेवा के कार्यों को करना अनिवार्य बताया है तभी वह पूजा सार्थक है l उनका कहना है --- 'यदि भक्ति में कटौती कर के सेवा में समय लगाना पड़े तो उसे घाटा नहीं समझना चाहिए l '
7 February 2024
WISDOM ------
युग बदलते हैं , इसके साथ मनुष्य की प्रवृत्ति भी बदलती है , सोचने -विचारने का तरीका भी बदलता जाता है l कलियुग को कलियुग क्यों कहते हैं ? यदि हम इस उदाहरण से देखें तो उत्तर मिल जायेगा ------- त्रेतायुग में ---- सीता का अपहरण रावण कर रहा था l सीताजी की करुण पुकार जब जटायु ने सुनी तो वह उनकी रक्षा के लिए निकल पड़ा l कहाँ रावण जैसा शक्तिशाली राजा और कहाँ वृद्ध , शक्तिहीन गिद्ध जटायु ! किन्तु जटायु अपने को रोक नहीं सका और सीताजी की रक्षा के लिए अपने प्राण दे दिए l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --यदि हनुमान नहीं बन सकते तो गिद्ध और गिलहरी बन जाओ l भगवान राम वन चले गए थे इसलिए अपने पिता दशरथ का अंतिम संस्कार अपने हाथ से नहीं कर सके किन्तु जटायु की दाह -क्रिया अपने हाथ से की , जटायु को वह सम्मान और गति मिली जो दशरथ को भी नहीं मिली l वह जटायु आज भी इतिहास में अमर है l द्वापर युग में ---- द्रोपदी का चीर -हरण हो रहा था और सब वृद्ध धर्म और न्याय के ज्ञाता भीष्म पितामह , द्रोणाचार्य , कृपाचार्य सब सिर झुकाए बैठे रहे l अपनी ही कुलवधू के साथ होने वाले अन्याय के विरुद्ध कोई एक शब्द भी नहीं बोला l हस्तिनापुर के वृद्ध एक गिद्ध की गरिमा को भी नहीं पहुँच सके l अत्याचार , अन्याय तो हर युग में रहा है लेकिन कलियुग में ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार , लालच , छल कपट , षड्यंत्र आदि दुष्प्रवृत्तियाँ मनुष्य पर इतनी हावी हो गईं है कि मनुष्य के ह्रदय की करुणा , संवेदना बिलकुल समाप्त हो गई है l अब किसी की रक्षा करना तो बहुत दूर की बात है , वीडियो बनाना , ब्लैकमेल करना , समाज के सामने शरीफ बनकर अपनी काली -करतूतों को छिपाना ---- आदि ऐसे तथ्य हैं जो इस बात को बताते हैं कि इस युग में चरित्र और नैतिकता का स्तर बहुत गिर गया है l समाज को दिशा देने के लिए जिन अनुभवी लोगों की आवश्यकता है , उनकी इच्छाएं , लालसाएं किसी तरह समाप्त ही नहीं होतीं l सच्चाई को अपमानित किया जाता है और अपराधी समाज में सम्मान पाते हैं l एक वाक्य में यदि कहा जाए तो --- धन , बुद्धि , शक्ति का दुरूपयोग होने के कारण ही यह युग कलियुग है l एक ऐसा युग जिसमें सुख -शांति हो , लोगों में तनाव न हों , अस्पताल बीमारों से भरे न हों , छीना -झपटी न हो ------ यह सब तभी संभव होगा जब धन के स्थान पर व्यक्ति की पहचान उसके गुणों से होगी l कामना , वासना , लालच , महत्वाकांक्षा ही व्यक्ति को जीवन में और जीवन के बाद भी भटकाते हैं और युग को कलियुग बनाते हैं l
6 February 2024
WISDOM ------
लघु कथा ----- एक बार एक घुड़सवार एक बस्ती से होकर जा रहा था l मार्ग में एक चोर का घर पड़ा l उसके बरामदे में एक तोता पिंजरे में बंद था , जो उसे देखकर बोला --- " पकड़ो इसे , इसका सारा माल लूट लो l " थोड़ आगे बढ़ने पर उसने देखा एक झोंपड़ी है , वहां भी एक तोता पिंजरे में बंद है l यह तोता उसे देखकर बोला --- " आओ बन्धु !थक गए होंगे , थोड़ा विश्राम कर लो l " घुड़सवार को बड़ा आश्चर्य हुआ और वह वहीँ बैठ गया l कुछ समय बाद उस झोंपड़ी के अन्दर से साधु निकले और उसकी कुशल -क्षेम पूछने लगे l घुड़सवार ने उन्हें सारा वृतांत कह सुनाया और उनसे दोनों तोते के भिन्न व्यवहार का कारण पूछा l साधु ने कहा --- ' यह साधुओं की वाणी सुनता है , इसलिए भला बोल रहा है और वह तोता चोर -डाकुओं की बातें सुनता है , इसलिए वैसा ही बोलता है l सत्य यही है कि अच्छाई और बुराई संगत से ही उपजती हैं l घुड़सवार को समझ में आ गया कि सत्संग से सज्जन बनते हैं और कुसंग से दुर्जन l
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- 'जीवन उमंग , उत्साह एवं उदेश्य से परिभाषित होता है , उम्र से नहीं l जीवन में उत्साह बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्य सकारात्मक चिंतन बनाए रखे और निराशा को हावी न होने दे l व्यक्ति जितना कार्य अपने शरीर से करता है , उससे कई गुना कार्य वह अपने मन से करता है l यदि मन की शक्तियां ही कमजोर पड़ गईं हैं , तो फिर जरूरत है उन्हें जगाने की l " ------- एक कथा है ------ एक राजा के पास कई हाथी थे , लेकिन एक हाथी बहुत शक्तिशाली था , बहुत आज्ञाकारी , समझदार एवं युद्ध कौशल में निपुण था l बहुत से युद्धों में वह भेजा गया था और वह राजा को विजय श्री दिलाकर वापस लौटा था l इसलिए वह महाराज का सबसे प्रिय हाथी था l उसकी भी जब वृद्धावस्था आ गई तो वह पहले की तरह कार्य नहीं कर सकता था इसलिए अब राजा उसे युद्ध क्षेत्र में नहीं भेजते थे l एक दिन वह सरोवर में जल पीने गया तो वहां कीचड़ में उसका पैर धंस गया l उस हाथी ने बहुत कोशिश की स्वयं को बाहर निकालने की , लेकिन वह धंसता ही जा रहा था l उसके चिंघाड़ने की आवाज सुनकर बहुत लोग वहां आ गए , अनेक पहलवान और सैनिक उसे निकालने का प्रयत्न करने लगे लेकिन कोई सफलता नहीं मिली l राजा ने हाथी के वृद्ध महावत को बुलाया l महावत ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और राजा से कहा ---' सरोवर के चारों ओर युद्ध के नगाड़े बजाएं जाएँ l सुनने वालों को बड़ा विचित्र लगा कि जब व्यक्तियों के शारीरिक प्रयत्न से फँसा हुआ हाथी बाहर नहीं निकला तो भला नगाड़े की आवाज से कैसे बाहर निकलेगा l लेकिन आश्चर्य ! जैसे ही युद्ध के नगाड़े बजने प्रारम्भ हुए , मृतप्राय हाथी के हाव -भाव में परिवर्तन आने लगा और धीरे -धीरे कोशिश कर के वह स्वयं ही कीचड़ से बाहर आ गया l महावत ने बताया कि वह हाथी युद्ध में अनेकों बार गया है और नगाड़े की आवाज से परिचित है , इस आवाज को सुनकर उसकी चेतना जाग गई , वह उत्साह -उमंग से भर गया कि राजा को युद्ध के लिए उसकी जरुरत है और यह विचार आते ही वह जोश के साथ बाहर आ गया l आचार्य श्री लिखते हैं ---- यदि हमारे मन में एक बार उत्साह -उमंग जाग जाए तो फिर हमें कार्य करने की ऊर्जा स्वत: ही मिलने लगती है और कार्य के प्रति उत्साह का मनुष्य की उम्र से कोई संबंध नहीं है l
5 February 2024
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संत हाशिम की गणना प्रसिद्ध सूफी फकीरों में होती है l वे एक बार बगदाद पहुंचे l जब बगदाद के खलीफा हारून को उनके वहां पहुँचने का समाचार मिला तो वे संत हाशिम से मिलने पहुंचे l खलीफा हारून की ख्याति एक पथ भ्रष्ट और विलासी राजा के रूप में थी l संत हाशिम के पास पहुंचकर खलीफा हारून उन्हें अभिवादन करने के लिए नीचे झुकने लगे तो संत हाशिम ने उन्हें रोकते हुए कहा ---- " आप नीचे न झुकें हुजुर ! आप तो बड़े त्यागी और विरक्त इनसान हैं l झुकना तो मुझे आपके सामने चाहिए l " खलीफा हारून को लगा कि संत हाशिम ने उन पर व्यंग्य मारा है l वो थोडा क्रोधित होते हुए बोले --- " ये आप कैसी बाते करते हैं ? संत होकर दूसरों की खिल्ली उड़ाना आपको शोभा नहीं देता l " संत हाशिम बोले ---- " नहीं ! मैं आपका मजाक नहीं उड़ा रहा l सच तो ये है कि मैंने तो केवल दुनिया के ऐशोआराम का त्याग किया है , आप तो अपनी आत्मा और उन परवरदिगार को भुलाकर बैठे हैं , जो सारी दुनिया के रखवाले हैं l तो उसको त्यागने वाला तो दुनिया की सबसे कीमती चीज को त्यागने वाला है l इसलिए आपका त्याग , मेरे त्याग से कई गुना बड़ा हुआ l बताइए अब कौन किसके आगे झुके ? " संत हाशिम की बातें खलीफा हारून के दिल पर चोट कर गईं और वे सब कुछ छोड़कर संत हाशिम के साथ निकल पड़े l
4 February 2024
WISDOM ----
पेट पालने के लिए धन कमाना बहुत जरुरी है और धन कमाने के कई तरीके हैं l जब राजतन्त्र था , बड़ी -बड़ी कम्पनियां नहीं थीं , तब राजा को खुश करने एवं प्रसन्न करने के लिए विशेष रूप से विशेषज्ञ चाटुकारों की व्यवस्था की जाती थी l उनका काम ही था कि वे राजाओं के विभिन्न कार्यों , गुणों और रूप आदि की प्रशंसा करें l ये चाटुकार अपनी कविता , गीतों आदि विभिन्न तरीकों से राजा की प्रशंसा करते थे और राजा प्रसन्न होकर दरबार में सबके सामने उन्हें तोहफे देते , कभी अपने गले से उतार कर हीरे -मोतियों के हार आदि बहुमूल्य तोहफे देते थे l यही इनकी जीविका का साधन था , वे इस कार्य के विशेषज्ञ होते थे l अब वक्त बदल गया , अब अलग से ' चाटुकार ' रोजगार का साधन नहीं है l अब लोग विभिन्न कार्यों में , रोजगार में संलग्न रहते हुए , अपने चाटुकारिता के गुण के कारण अपने वेतन के साथ अतिरिक्त फायदा भी कमा लेते हैं l अपनी प्रशंसा सबको अच्छी लगती है , दिल को छूती है , प्रशंसा सुनकर मन इतना प्रसन्न हो जाता है कि कई दिन तक उसका नशा दिल पर छाया रहता है l इसलिए चाहे कोई छोटी सी संस्था हो , बड़ा संगठन हो , छोटा -बड़ा नेता हो ----, सबको प्रशंसा अच्छी लगती है इसलिए कुशल व्यक्ति चाटुकारिता के गुण से एक सम्पन्नता का जीवन जी लेते हैं l चाटुकारिता करने वाला तो हर तरह से फायदे में रहता है , यह उसका स्वभाव होता है जैसे अधिकारी बदल गया , तो जो नया अधिकारी आता है , वे सुबह से रात तक उसकी खुशामद में लग जाते हैं l हमारे ऋषियों का कहना है ---यह संसार गणित से चलता है , संसार में स्वार्थ और लालच बहुत है इसलिए प्रशंसा से विचलित नहीं होना चाहिए l यह प्रशंसा खतरनाक तब हो जाती है जब प्रशंसा या चाटुकारिता करने वाला इतना सक्षम है , होशियार है कि वह उस चाटुकारिता प्रिय के व्यक्तित्व पर हावी हो जाता है , उसके जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों को प्रभावित करता है , अपने स्वार्थ के अनुरूप निर्णय लेने को विवश कर देता है l यह स्थिति केवल संस्थाओं में , राजनीति में , संगठनों में ही नहीं होती , विभिन्न घर -परिवारों में भी इसी ' गुण विशेष ' के कारण कलह , मुकदमे होते है , परिवार में भेदभाव होता है l इन सबके मूल में यही कारण है कि सद्बुद्धि की , विवेक की कमी है l यह सद्बुद्धि कैसे आए ? पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने कहा है --- ' गायत्री मन्त्र में वह शक्ति है जिससे व्यक्ति को सद्बुद्धि का वरदान मिलता है , वह क्या सही है और क्या गलत है , यह समझकर विवेकपूर्ण ढंग से निर्णय लेता है l श्रद्धा और विश्वास जरुरी है l
3 February 2024
WISDOM -----
महाभारत की कथा है ---- यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न पूछा ---- " इस संसार का परम आश्चर्य क्या है ? " युधिष्ठिर ने कहा ---- " सबसे बड़ा आश्चर्य है कि मृत्यु को सुनिश्चित घटना के रूप में देखकर भी मनुष्य इसे अनदेखा करता है l वह मृत्यु की नहीं , जीवन की तैयारी कुछ इस तरह करता है , जैसे विश्वास हो कि वह कभी मरेगा ही नहीं ,उसे सदा -सदा जीवित रहना है l " यदि मृत्यु के अटल सत्य को व्यक्ति स्वीकार कर ले तो संसार में इतना हाहाकार न हो l लालच , महत्वाकांक्षा , ईर्ष्या , द्वेष और सबसे बढ़कर अहंकार ने मनुष्य की सोच को विकृत कर दिया है l ' जियो और जीने दो ' के बजाय ' मारो -काटो ' की बात करता है l ये दुर्गुण व्यक्ति को क्रूर बना देते हैं , उसके 'मानवीयता ' के गुण को ही समाप्त कर देते हैं l ऐसा व्यक्ति परिवार से लेकर संसार में कहीं भी हो उसे दूसरों को सताने में , उन पर अत्याचार करने में ही आनंद आता है l यह अत्याचार , अन्याय हमेशा अपने से कमजोर पर होता है l ऐसे कार्यों से पूरे वातावरण में नकारात्मकता भर जाती है l विभिन्न असाध्य रोग , महामारी , तनाव आदि इसी का परिणाम हैं l
2 February 2024
WISDOM ----
संत रैदास के प्रवचन सुनने हेतु सैकड़ों लोग एकत्र हुआ करते थे l एक बार एक सेठ जी भी उनका प्रवचन सुनने आए l कथा के उपरांत प्रसाद का वितरण आरम्भ प्रारम्भ हुआ l एक हरिजन का प्रसाद खाने में उन्हें संकोच हुआ तो उन्होंने प्रसाद हाथ में लेकर एक ओर फेंक दिया l वह प्रसाद एक कोढ़ी के शरीर से टकराकर नीचे गिर गया , कोढ़ी ने वह प्रसाद उठाकर खा लिया जिससे वह तो ठीक हो गया परन्तु सेठजी कुष्ठ रोग से ग्रसित हो गए l अपने दुःख से मुक्ति पाने हेतु सेठ जी , संत रैदास की शरण में गए l मन की बात जानने वाले रैदास जी ने सेठ जी से कहा ---- " वह तो मुल्तान गया अर्थात अब वह प्रसाद दोबारा मिलना कठिन है l " परन्तु दयावश उन्होंने सेठ जी को ठीक कर दिया l सेठ जी को अपनी भूल का भान हुआ , उन्हें यह सत्य समझ में आया कि मनुष्य का जन्म किस जाति , किस धर्म में हुआ है , इस पर उसका कोई वश नहीं है l मनुष्य जन्म से नहीं , कर्म से महान होता है l ये भेदभाव तो मनुष्य ने अपने स्वार्थ और अहंकार के पोषण के लिए ही बनाए हैं l