28 January 2020

WISDOM ------ शक्ति का सदुपयोग जरुरी है

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है --- ' समर्थ  होने , शक्तिसम्पन्न  होने  से  अधिक  जरुरी  है   सद्गुण संपन्न  होना  , क्योंकि  सद्गुणों  के  अभाव  में  शक्ति  के  दुरुपयोग  की  संभावना  हमेशा  बनी   रहती  है   l   गुणहीन   व्यक्तियों  के  पास   जो  भी  शक्ति  आती  है  ,  वो  हमेशा  दुरूपयोग  करते  हैं  ,  फिर  चाहे  यह  शक्ति  सामाजिक  हो , राजनीतिक   हो   या  फिर  वैज्ञानिक    अथवा  आध्यात्मिक   हो  l   इसलिए   पहले  सद्गुण  , फिर  शक्ति  l  व्यक्ति  का  व्यक्तित्व  समर्थ - बलशाली   होने  से  भी  ज्यादा  महत्वपूर्ण  है   उसका  सदगुणसम्पन्न  होना  ,  गुणवान  होना  ,  मानवीय  मूल्यों  के  प्रति  सचेष्ट    एवं    समर्पित  होना  l  '
    रामचरितमानस  में  दो  व्यक्तित्व  हैं ---- एक  हैं  वानरराज  बालि   और  दूसरे  अंजनी पुत्र  हनुमान  l   इन  दोनों  में  हनुमानजी  का  ज्ञान  बालि   से  कहीं  अधिक  था   l
 बालि   को  बल  पर  संयम  करने  की  असाधारण  क्षमता  प्राप्त  थी  ,  इस  वजह  से   जो  भी  प्रतिपक्षी  उसके  सामने  आता  ,  बालि   उसकी  समस्त  शक्तियों   को  स्वयं    में  आत्मसात  कर  लेता  था  l  उसका  स्वयं  का  बल  तो  उसके  पास   था  ही   l   इस  तरह   उसके  सामने  प्रतिपक्षी  योद्धा  का  बल  घटकर  आधा  रह  जाता  था   और  बालि   का  स्वयं  का  बल  ड्योढ़ा - दूना  हो  जाता  l  इस  तरह  बालि   की  विजय  सुनिश्चित  होती  और  प्रतिपक्षी  की  पराजय  सुनिश्चित  l   इस  शक्ति  ने  बालि   को  अहंकारी  और  दम्भी  बना  दिया  था   l  उसने  अपने  छोटे  भाई  सुग्रीव  का  उससे  सब  कुछ  छीन  लिया   l   प्रकृति  किसी  के  अहंकार    को  बर्दाश्त  नहीं  करती  l   प्रकृति  के  दंडविधान  के  अनुरूप  बालि    को  दण्डित  होना  पड़ा  l   हनुमानजी  की  सहायता  से  भगवान   श्रीराम  ने  उसे  दण्डित  किया  l   बालि   की  उस  शक्ति  की  वजह  से  भगवान   को  भी  उसे  छिपकर  मारना  पड़ा  ,  क्योंकि  प्रत्यक्ष  होने  पर  संभावना  यही  थी  कि  बालि   के  पास  उनका  भी  आधा  बल  चला  जाता  l
  बालि   के  स्वभाव   के  ठीक  विपरीत   हनुमानजी  भगवान   के  परम   भक्त  एवं   विनम्र  थे  l   जन  - सेवा , ईश्वर - सेवा  उनका  ध्येय  था  l   प्रकृति  के  सभी  देवी - देवताओं  का  उन्हें  आशीर्वाद  प्राप्त  था , असाधारण  क्षमता संपन्न  थे  l  परन्तु  हनुमानजी  को  अपने   बल  पर  कोई  अभिमान  नहीं  था   इसलिए  वे  प्रभु  की  योजना  व  कार्य  में  उनके  सहयोगी  बने  l   उनसे  सभी  का  कल्याण  हुआ  l   आज  भी  वह  अपने  सद्गुणों  व  शक्ति  के  कारण  अनगिनत  जनों   के  आराध्य  हैं  l
 आचार्य श्री  लिखते  हैं ---  संयम  की  योग्यता , शक्ति  और  उसके  सदुपयोग  के   आदर्श  हैं -  हनुमान जी  , जिन्होंने  अपनी  शक्तियों  का  उपयोग  सदा  ही  लोक - कल्याण  में  किया  l   उनके  जीवन  का  एक  ही  
ध्येय   वाक्य  था ---- ' राम  काजु   कीन्हें   बिनु  मोहि  कहाँ  बिश्राम  l