12 January 2018

' निद्रित भारत अब जागने लगा है ,---- स्वामी विवेकानन्द

 स्वामी  विवेकानन्द  ने  अपने  गुरु भाइयों  की  ओर  देखते  हुए  राखाल  महाराज  से  कहा  था ---- " राखाल  !  आज  रात्रि  हमें  दिव्य  दर्शन  हुआ ,  इसमें  हमने  अपने  देश  भारत  के  अभ्युदय  को  देखा  l  सुदीर्घ  रजनी  अब  समाप्त  होती  हुई  जान  पड़ती  है  l   निद्रित  भारत  अब  जागने  लगा  है  l  मानो  हिमालय  के   प्राणप्रद  वायु  स्पर्श  से  शिथिल प्राय  अस्थि -मांस  में  प्राण - संचार  हो  रहा  है  ------- अब  उसे  कोई  रोक  नहीं  सकता  है  l   वह  बोल  रहे  थे ------ ' अपना   नवीन  भारत  निकल  पड़ेगा  ---- झाड़ियों ,  जंगलों ,  पहाड़ों  पर्वतों  से  l  इन  लोगों  ने  हजारों  वर्षों  तक  नीरव  अत्याचार  सहन  किया  है  ,  उससे  पाई  है  , अपूर्व  सहनशीलता   l  सनातन  दुःख  उठाया  है  ,  जिससे  पाई  है ,  अटल  जीवनीशक्ति  l  यही  लोग   अपने  नवीन  भारत  के  निर्माता  होंगे   l   l  "
               स्वामी  विवेकानन्द   का  जीवन   अपार  कष्टों  और   दुःखों  का   आगार   था  l   कष्ट  और  कठिनाइयों  के  भीषण  मंजर  से  गुजरने  वाले  एवं  अपने  जीवन  में   इसे  पल - पल   एहसास   करने  वाले  स्वामी  विवेकानन्द   अमरीकी  प्रवास  के  दौरान  20  अगस्त  1893  को  श्रीयुत  आलासिंगा  को  एक  पत्र  में  लिखते  हैं  ----- " जीवन भर  मैं  अनेक  कष्ट  उठाते  आया  हूँ  l  मैंने  प्राणप्रिय  आत्मीयों    को  एक  प्रकार  से   अनाहार  से  मरते  देखा  है  l  लोगों  ने  मेरी    हँसी  और  अवज्ञा  की  है   और  कपटी  कहा  है  l  ये  सब  वे  ही  लोग  हैं   जिन  पर  सहानुभूति  करने  से  यह  फल  मिला  l  वत्स  !  यह  संसार  दुःख  का  आगार    तो  है ,  पर  यही  महापुरुषों  के  लिए  शिक्षालय   का  स्वरुप  है  l  इस  दुःख  से  ही  सहानुभूति , सहिष्णुता  और  सर्वोपरि  उस  अदम्य  दृढ़  इच्छाशक्ति  का      विकास  होता  है  ,  जिसके  बल  से  मनुष्य  सारे  जगत    चूर - चूर  हो  जाने  पर  भी  रत्तीभर  भी  नहीं   हिलता   l "  एक   अन्य   पत्र  में  उन्होंने  लिखा --- ' मैं  तो   स्वाभाविक  दशा    में  अपनी  वेदना , यातनाओं  को  आनंद  के  साथ  ग्रहण  करता  हूँ  l    ----------- "
     स्वामीजी  के  जीवन  से  हमें  यह  शिक्षा  मिलती  है  कि ---- कभी  भी  न   तो  दुःख  से  घबराना  चाहिए  और  न  इनसे  पलायन  करना  चाहिए   तथा  न  ही  कष्टों  के  कारणों  को   किसी  अन्य   पर  आरोपित  करना  चाहिए   l  अपने  कष्टों  को  शान्त  और  धैर्य पूर्वक  झेल  जाना  चाहिए  और  विश्वास  रखना  चाहिए  कि  रात  के  बाद  दिन  का  उदय  होता  है  l  एक  दिन  दुःख  अवश्य  तिरोहित  होगा  और  जीवन  में  सुख  का  सूर्य  उदय  होगा   l