16 May 2013

बार -बार रंग बदलने की अपनी पटुता का प्रदर्शन करते हुए गिरगिट ने कछुए से कहा -"महाशय !देखा मैं संसार का कितना योग्य व्यक्ति हूं | "कछुए ने धीरे से कहा -"महाशय !दूसरों को धोखा देने की इस योग्यता से तो तुम अयोग्य बने रहते तो अच्छा था | कम से कम लोग भ्रम में तो न पड़ते | 

PRAKHARTA

'नन्ही सी चिनगारी !तुम भला मेरा क्या बिगाड़ सकती हो ,देखती नहीं ,मेरा आकार ही तुमसे हजार गुना बड़ा है ,अभी तुम्हारे ऊपर गिर पडूँ तो तुम्हारे अस्तित्व का पता भी न लगे | '-तिनकों का ढेर अहंकारपूर्वक बोला |
चिनगारी बोली कुछ नहीं ,चुपचाप ढेर के समीप जा पहुंची | तिनके उसकी आंच में भस्मसात होने लगे | अग्नि की शक्ति ज्यों ज्यों बढ़ी ,तिनके जलकर नष्ट होते गये ,देखते -देखते भीषण रूप से आग लग गई और सारा ढेर राख में परिवर्तित हो गया |
यह द्रश्य देख रहे आचार्य ने अपने शिष्यों को बताया  -" बालकों !जैसे आग की एक चिनगारी ने अपनी प्रखर शक्ति से तिनकों का ढेर खाक कर दिया | वैसे ही तेजस्वी और क्रियाशील एक व्यक्ति ही सैकड़ों बुरे लोगों से संघर्ष में विजयी हो जाता है | "