30 September 2018

WISDOM ------ पराधीन सपनेहु सुख नाहीं

     श्रीरामचरितमानस  की  इन  पंक्तियों  से  अंग्रेज  सबसे  ज्यादा  भयभीत  थे   l   रामचरितमानस  कोई  सामान्य  ग्रन्थ  नहीं  है ,  यह  दिव्य  और  अद्भुत  ग्रन्थ  है   l  इसका  जनमानस  पर  व्यापक  प्रभाव  था   किन्तु  ब्रिटिश  साम्राज्यवाद  को  इससे   षड्यंत्र  की गंध  आ  रही  थी   l  तुलसी  बाबा  की  ये  पंक्तियाँ --- 'पराधीन   सपनेहु  सुख  नाहीं  '    और  ' नहिं  दरिद्र  सम  दुःख  जग  माहीं  '      भारत  के  स्वाधीनता  संग्राम  में  आग  में  घी  डालने  का  काम  करती   थीं   l   उत्तर  भारत में    रामलीला  का  उपयोग    राष्ट्रीय  चेतना  जगाने  के  लिए  होता  था   l 
       रामचरितमानस  आज  भी  जनमानस  में  उतनी  ही  लोकप्रिय  है   l    भगवान   राम  का  नाम  लोगों  की    जबान  पर  हैं    और  समाज  को  जाग्रत  करने  वाली  वे  पंक्तियाँ  उसमे  हैं   लेकिन  अब  लोगों  ने  उनसे  प्रेरणा  लेना  बंद  कर  दिया  l   कहने  को  देश  आजाद  है   लेकिन  लोग  अपने  विकारों  के  अपनी  कमजोरियों  के  गुलाम  हैं    l  इसलिए  सब  तरफ  अशांति  है  l   अब  कोई  विदेशी    यहाँ  आकर  दुष्कर्म ,  हत्या ,  लूटपाट  जैसे  अपराध  नहीं  करता   l  ये  सारे  घ्रणित  कार्य  अब  देश  के  ही  लोग   कर  लेते  हैं  और   समाज  में  रौब  से  रहते  हैं   l  यह  पराधीनता  समाज  को    आदिम युग   की  ओर  ले  जा  रही   है   l  मनुष्य  अब  पशु  से  भी  बदतर   राक्षस  बन  रहा  है  l
  अब  सबसे  जरुरी  है  कि  लोग  भगवान  राम  को  अपने  ह्रदय  में   बैठाएं   l