24 August 2018

WISDOM ----- संस्कृति की रक्षा के लिए राष्ट्रीय चेतना का जागरण अनिवार्य है

   दशानन   रावण    एक  व्यक्ति  नहीं  विचारधारा  है    ---- कैसे  उसने  छल - कपट  से  सीताजी  का  अपहरण  किया ,  अपने  राक्षसों  को  भेजकर  ऋषि - मुनियों  के   यज्ञ ,  हवन   आदि  पवित्र  स्थल  को  अपवित्र  किया ,  धन  का  एकत्रीकरण   कर  सोने  की  लंका  खड़ी   कर  ली ,  अपने  धन ,  अपनी  शक्ति  और  अपनी  विद्वता ,  अपने  ज्ञान  का  दुरूपयोग  किया   l      l  यह  विचारधारा  विकृत  थी   ,  दुर्भाग्य  से  वर्तमान    में  इसी  विकृत   विचारधारा  का  प्रसार  हो   चुका     है  और  होता  जा  रहा  है   l 
               इस  विकृति  से  निपटने  के  लिए  जरुरी  है    देश  में   वैसा  ही  स्वाभिमान  और  राष्ट्रीय  चेतना  जाग्रत  हो  जैसी  कि  1857  के  स्वाधीनता  संग्राम  के  समय  थी   l   अंग्रेज  1857  की  हिन्दू - मुस्लिम  एकता  को  देखकर  हैरान  और  परेशान  हो  गए  थे   l  सभी  ने  उस  समय  मुग़ल  बादशाह  बहादुरशाह  जफर  को  बादशाह  माना  था   l  यह  वर्ष  भारत  की  एकता   और  राष्ट्रीयता  के  नए  मानकों  से  गढ़ा  था  l   उस  समय  छोटी  कही  जाने  वाली  जाति  के  लोगों  ने  बड़े  काम  किये  l 
 एक  वीरांगना  थीं --झलकारी  बाई ,  जो  जाति  की  कोरी  थीं ,  लेकिन  महारानी  लक्ष्मीबाई  उन्हें  अपनी  सहेली  का  मान  देती  थीं  ,  उन्होंने  रानी  के  साथ  अंग्रेजों  के  विरुद्ध  संग्राम  में  कदम - से - कदम  मिलाकर  युद्ध  किया   l
 ऐसे  ही  एक  वीरनायक  थे --- मातादीन  भंगी  ,  जिन्होंने  बैरकपुर  विद्रोह  में  महत्वपूर्ण  भूमिका  निभाई  l   कानपुर - बिठूर  के  आसपास  एक  क्रांतिवीर  थे --- गंगू  बाबा ,  जो  हरिजन  थे  और  नाना  साहब  की  सेना  में  नाकड़ची   थे  ,  ये  पहलवान  थे  और  अपने  पहलवानों  के  साथ   इस  संग्राम  में  अंग्रेजों  के  खिलाफ  भीषण  युद्ध  किया  ,  पकड़े  जाने  पर  अंग्रेजों  ने  इन्हें  फांसी  दे  दी  l 
  इस  स्वाधीनता संग्राम  के  बाद  देशवासियों  को   यह  भरोसा  हुआ  कि  गुलामी  की  बेड़ियाँ  तोड़ी  जा  सकती  हैं   l  इस  संग्राम  के  बाद  अंग्रेजों  ने  भारतीयों  पर  कठोर  नियंत्रण  कर  दिया   किन्तु  भारत  को  स्वाधीन  कराने  वाली  मानसिकता  को  नहीं  बदल  सके   l  

WISDOM ------ संगठन की शक्ति अपार है

    पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने   अखण्ड  ज्योति  में  लिखा  है  कि ---- दुर्भाग्य  से  आज  संगठन  कुचक्र  का  पर्याय  बन  गए  हैं   l  जिसमे  फंसकर   मानवीय  शक्ति  ही  नहीं   स्वयं  मानवता  भी  रो - तड़पकर   नष्ट  होने  के  लिए   विवश  हो  रही  है   l  '  उन्ही  के  शब्दों  में ----- "   खेद  इस  बात  का  है  कि  मानव  जाति  ने   छुट - पुट  संगठन  बनाने  के  अस्त - व्यस्त  प्रयत्न  तो  किये   पर   जन  समाज  की  एकता  और  संघ   बद्धता  पर  ध्यान  नहीं  दिया  l   आधार  और  स्वार्थ  अलग - अलग  होने  से   वे   वर्ग , वर्ण , देश , सम्प्रदाय   आदि  के  आधार  पर    परस्पर  टकराते  रहे  और    संकट  उत्पन्न  करते  रहे   l   किसी  तरह    निजी  स्वार्थों  के  लिए   मानवीय    शक्ति  के  शोषण  का   षड्यंत्र   है    l  जिसमे  लिप्त  कुछ  चालाक  और  तिकड़मबाज  व्यक्ति     दूसरों  की  बुद्धि , श्रम ,  एवं  धन  का    निजी  महत्वाकांक्षा    की     पूर्ति  के  लिए   बेरहमी  से  दुरूपयोग  करते  हैं   l  इसके  परिणाम  में  घ्रणा  और  विद्वेष  ही  पनपते  हैं    और  मानवीय  समस्याएं   समाप्त  होने  के  स्थान  पर    बढ़ती  ही  जाती  हैं    l    सच्चा  और  स्थिर  लाभ   तभी  हो  सकता  है    जब  वे  समग्र  रूप  से  एक  आधार  पर  संगठित  हों   l "