10 July 2023

WISDOM ------

   संसार  में  अनेक  धर्म  और  अनेक  जातियाँ  हैं  ,  इन  सभी  में  अनेक  रूढ़िवादी  परम्पराएँ  और  अन्धविश्वास  हैं  l  रूढ़िवादिता  में  जकड़ा  व्यक्ति  सबसे  पहले  अपना  और  अपने  परिवार  का  ही  अहित  करता  है  ,  वक्त  के  साथ  बदलना  नहीं  चाहता  l  ऐसी  रूढ़िवादी  विचारधारा  के  साथ  जब  अहंकार  भी  जुड़  जाए  तब   स्थिति  और  भी  विकट   हो  जाती   है  l   आचार्य श्री  लिखते  हैं  ---- यदि  मान्यता  उचित  है  तो  उसे  करने  में  कोई  परहेज  नहीं  है  लेकिन  यदि  वह  असंगत  और  अनुचित  है   तो  भले  ही  वह  सदियों  से  क्यों  न  चली  आ  रही  हो ,  उससे     परहेज   करना  ही  श्रेयस्कर  है  , परन्तु  इसे  करने  में  विवेक  के  साथ  साहस  की  भी  आवश्यकता  है  l  हमें  उचित  का  वरण  करना  चाहिए   और  दुराग्रही  मान्यताओं  को  द्रढ़ता  के  साथ  त्याग  देना  चाहिए  l  '         भगवान  श्रीकृष्ण  ने   अपनी  बाल -लीला  के  माध्यम  से  बताया  कि  हमें  परंपराओं  और  परिपाटियों  में  बंधना  नहीं  चाहिए  l  ईश्वर  चाहते  हैं  कि  हम  उन  बेड़ियों  से  निकलें  और  विवेक  व  साहस  का  वरण  करें  l -----------  '  नंदबाबा  इंद्र  यज्ञ  की  तैयारी  कर  रहे  थे  l  सभी  गोप  उसी  में  लगे  थे  l  श्रीकृष्ण  ने  नंदबाबा  से  पूछा ---" यह  आप  क्या  कर  रहे  हैं  ?  यह  शास्त्र  सम्मत  है  या  लौकिक  ? '  नंदबाबा  बोले ---- "  बेटा  !  इंद्र  मेघों  के  स्वामी  हैं  l  उन्हें  प्रसन्न  करने  के  लिए   हम  यज्ञ  करते  हैं  l  यह  क्रम  हमारी  कुल  परंपरा  से  चला  आया  है  l "  श्रीकृष्ण  बोले ---- " पिताजी  ! यह  त्रिविध  जगत   ईश्वर  की  स्रष्टि  है  ,  उसी  की  प्रेरणा  से  मेघ  जल  बरसाते  हैं  l  इसमें  भला  इंद्र  का  क्या  लेना -देना  !  हम  तो  सदा  वनवासी  हैं  l  हम  गौ  व  गिरिराज  का  भजन  करें  l  गिरिराज  को  भोग  लगाया  जाए  व  उनकी  प्रदक्षिणा  की  जाए  l  "  नंदबाबा  ने  वही  किया  जो  उनके  लाड़ले  पुत्र  ने   उन्हें  विद्वतापूर्ण  ढंग  से  समझाया  l   स्वर्ग  के  राजा  इंद्र  का  अहंकार   अपनी  चरम  सीमा  पर  पहुँच  चुका  था  ,  उस  पर  चोट  पहुंची  तो   उन्होंने  मेघों  से  कहा ---"  ब्रज  पर  जल  की  अनंत  राशि  बरसाओ , वहां  जल प्रलय  आ  जाए  l "  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  अपनी  योगमाया  से  जल प्रलय  से  ओत -प्रोत  व्रज  की  रक्षा  गोवर्धन  धारण  कर  की  l  इंद्र  का  अहंकार  चूर -चूर  हो  गया  l  ईश्वर  अवतार  लेकर  अपनी  लीलाओं  से  मानव  जाति  को  प्रेरणा  देने , उसे  जीवन  जीने  की  कला  सिखाने   और  अपनी  चेतना  को  विकसित  करने  की  प्रेरणा  देने  के  लिए  ही  इस  धरती  पर  आते  हैं  l