11 January 2018

प्रतिज्ञा को जीवन - भर निभाया ---- लालबहादुर शास्त्री

  महात्मा  गाँधी   शास्त्रीजी  की  सिद्धांत निष्ठा,  आदर्शवादिता   और  लोकसेवा  भावना  से  बहुत  प्रभावित   हुए   l  एक  दिन  उन्होंने  उन्हें  बुलाकर  कहा --- देखो , लालबहादुर   तुम  में  लोकसेवा  की  भावना  है  ,  परन्तु  इस  मार्ग  में  धन - सम्पति  ऐसी  बाधा  है  कि  उसकी  चकाचौंध  में  व्यक्ति  लोकसेवा  की  बात  भूल  जाता  है  और  उसे    संचय ,  परिग्रह  ही  सूझता  है  l  इसलिए  लोकसेवी  को    अपरिग्रह   का  व्रत  लेना  चाहिए   l   शास्त्रीजी  ने  तत्काल  प्रतिज्ञा  की  कि  मैं   गृह  और  सम्पति  अर्जित  नहीं  करूँगा   और ईश्वर  पर  विश्वास  रखते  हुए  जीवन  बीमा  भी  नहीं    कराऊंगा  l 
  इस  प्रतिज्ञा  को  उन्होंने  जीवनभर   निभाया  l   उन्हें  इस  व्रत  से  विचलित  करने  के  कई  अवसर  आये ----   1936  में  वे  इलाहाबाद  म्युनिसिपल  बोर्ड  के  सदस्य  बने  ,  इस  नाते  वह   इम्प्रूवमेंट  ट्रस्ट  के  भी  सदस्य  बने  l   यह  ट्रस्ट  जमीनों के  प्लाट  बना  कर  बेचा  करता  था  l  एक  बार  ट्रस्ट  ने     टैगोर   टाउन  मोहल्ले  में    निर्माण  के  लिए    आधा  एकड़  के  प्लाट  बनाये   और  कम  कीमत  पर   बेचना   तय  किया  l     शास्त्रीजी  कुछ  दिनों  के  लिए  इलाहाबाद  से  बाहर  थे  तो  उनके  एक  मित्र  ने   कमिश्नर  से  संपर्क  कर  के   दो  प्लाट-- एक  शास्त्रीजी  के  लिए  और  एक  स्वयं  के  लिए   ले  लिया  l  उन्होंने  सोचा  कि  यह  सुनकर  शास्त्रीजी  बहुत  खुश  होंगे    लेकिन  जब  शास्त्रीजी   को  उन्होंने  इस  बारे  में  बताया  तो  वे  बहुत  दुःखी   हुए   l   शास्त्रीजी  ने  कहा   --- तुम्हे   ऐसा  नहीं  करना  चाहिए  था  l   नियमों  और  सिद्धांतों  को  तोड़ना  सर्वथा  अनुचित  है   और  इसके  प्रायश्चित  के  रूप  में    तुम  मेरे  प्लाट  सहित  अपना  प्लाट  भी  वापिस  कर  दो  l '    उन्होंने  प्लाट  वापिस  करा  कर  ही  चैन  लिया  l  
  शास्त्रीजी  की   इस  आदर्शवादिता  से  सब  लोग  बहुत  प्रभावित  हुए  और  उनकी  बहुत  प्रशंसा  की   l 
  शास्त्रीजी  ने  कहा ---- " आप  प्लाट  वापस  करने  में  कौनसा  आदर्शवाद  मानते  हैं   l  मैंने  तो  बापू  को  जो  वचन  दिया  था ,  उसे  ही  पूरा  किया  है   l  "