8 February 2024

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  ' प्रज्ञा  पुराण ' में  लघु  कथाओं  और  प्रसंग  के  माध्यम  से  हमें  जीवन  जीने  की  कला  सिखाई   है  l  --- संसार  में    विभिन्न  धर्मों  के  लोग  अपने -अपने  धर्म  के  कर्मकांड , उपासना   करते  हैं  l  हर  धर्म  के  अलग  तरीके  हैं  l  मनुष्य  पूजा -उपासना  करने  में  निश्चित  रूप  से  अपना  कुछ  समय  भी   देता  है  l   यह  सब  भी  जरुरी  है  अपने  धर्म  और  संस्कृति  को  जीवित  रखने  के  लिए   l   लेकिन  मन  चंचल  है  ,  केन्द्रित  नहीं  होता  , हर  समय  कुलांचे  भरता  रहता  है   l  यही  कारण  है  कि  संसार  में   विभिन्न  तरीकों  से   उस  परम  सत्ता  को  पूजने  और    धर्म  के  नाम  पर  विभिन्न  कार्य  करने  के  बावजूद  भी  संसार  में  शांति  नहीं  है  l   आचार्य श्री  लिखते  हैं --- ' केवल  माला  घुमाते  रहना  जप  नहीं  है  l  भगवान  की  सच्ची  पूजा   कर्तव्यपालन   और  दुःखियों  की  सेवा  है  l  यदि  कोई  व्यक्ति  बड़े -बड़े  व्रत -उपवास  रखता  है  , पूजा -पाठ  करता  है , किसी  इच्छापूर्ति  के  लिए  यज्ञ -अनुष्ठान  करता  है  ,  लेकिन  गरीबों  का  शोषण  करता  है , किसी  का  हक  छीनता  है  ,  लोगों  का  दिल  दुखाता  है  तो  उससे  भगवान  कभी  प्रसन्न  नहीं  हो  सकते   l  -------- एक  बार  रामलीला  खेलने  के  लिए   दो  गरीब  बच्चों  को  चुना  गया  l  उन्हें  राम -लक्ष्मण  बना  दिया  गया  l  सबने  उनकी  आरती  उतारी   l  खूब  पैसे  इकट्ठे  हुए  l  तीन  दिन  तक  इसी  प्रकार  कार्यक्रम  चलता  रहा  l  उन  बच्चों  ने  सोचा  था  कि  उन्हें  भी  कुछ  रूपये -पैसे  मिलेंगे  l  लेकिन  अंतिम  दिन  प्रसाद   बंटा  , सबने  खूब  मौज -मस्ती  की  , ठर्रा  पिया   किन्तु  उन  दोनों  बच्चों  को  जिन्हें  राम लक्ष्मण  बनाया  गया  था  , किसी  ने  खाने  के  लिए  भी  नहीं  पूछा   और  उन  बच्चों  से  कहा --- "  अभी  पैसे  नहीं  मिले  हैं  , बाद  में  तुम्हे   कपड़े  देंगे , अभी  जाओ  l  "  वे  दोनों  बेचारे  रोते  हुए  चले  गए  l    यह  सोचने  का  प्रश्न  है   क्या  ऐसे  धार्मिक  कार्य  से  ईश्वर  प्रसन्न  होंगे  ?  '      एक  प्रसंग  है ---- एक  बार  गुरु  नानकदेव जी  किसी  खां  साहब  से  मिलने  गए   l  वे  उस  समय  नमाज  पढ़  रहे  थे  l  गुरूजी  को  हँसी  आ  गई  l  नमाज  से  उठकर  खां  साहब  ने  नानकजी  से  पूछा  ---- "  आप  क्यों  हँस  रहे  थे  , मेरी  नमाज  देखकर  l "  नानकदेव जी  ने  कहा ---- " मैं  हँस  रहा  था  इसलिए  कि  तुम  नमाज  नहीं  पढ़  रहे  थे  ,  अरब  में  घोड़े  खरीद  रहे  थे   l "  यह  सुनकर  खां  साहब  शर्मिंदा  हुए   क्योंकि  वे  नमाज  पढ़ते  समय  अरब  में  घोड़े  खरीदने  की  बात   सोच  रहे  थे  l    इसलिए  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी   ने  पूजा -उपासना  के  साथ    नि:स्वार्थ  सेवा  के  कार्यों  को  करना  अनिवार्य  बताया  है   तभी  वह  पूजा   सार्थक  है  l  उनका  कहना  है --- 'यदि  भक्ति  में  कटौती  कर  के  सेवा  में  समय  लगाना  पड़े   तो  उसे  घाटा  नहीं  समझना  चाहिए   l '