' जो अपनी सहायता करता है, परमात्मा सहित सभी दैवी शक्तियां आकर उसकी मदद करती हैं | '
जितने भी व्यक्ति सफलता के शिखर पर पहुंचे हैं, वे सदैव अपनी आत्मशक्ति का आश्रय लेकर, उसे सशक्त बनाकर ही पहुंचे हैं |
यदि हम जितेंद्रिय हैं, इंद्रिय-भोगों की ओर खिंचते नहीं चले जाते, ऊँचे उद्देश्यों में,उच्चस्तरीय प्रयोजनों में रूचि रखते हैं, तो हम अपने निज के, अपने मन के मित्र हैं | उसको ऊँचा उठने में हम मदद कर रहें हैं |
यदि हम भोग-ऐश्वर्य के प्रवाह में खिंच जाते हैं तो हम स्वयं को बिखेर देते हैं, उच्छ्रंखल विचारों में बहते चले जाते हैं, मनोबल कमजोर होने से कोई भी कार्य हाथ में नहीं ले पाते तो हम अपने मन के शत्रु हैं |
हमारा आपा ( मन ) ही हमारा बंधु है और हमारा मन ही हमारा दुश्मन है | जिस दिन हम मन को मित्र बनाकर जीत लेते हैं, तो फिर हम अध्यात्म क्षेत्र के साथ लौकिक जगत में भी एक सफल मानव बनते चले जाते हैं |
जितने भी व्यक्ति सफलता के शिखर पर पहुंचे हैं, वे सदैव अपनी आत्मशक्ति का आश्रय लेकर, उसे सशक्त बनाकर ही पहुंचे हैं |
यदि हम जितेंद्रिय हैं, इंद्रिय-भोगों की ओर खिंचते नहीं चले जाते, ऊँचे उद्देश्यों में,उच्चस्तरीय प्रयोजनों में रूचि रखते हैं, तो हम अपने निज के, अपने मन के मित्र हैं | उसको ऊँचा उठने में हम मदद कर रहें हैं |
यदि हम भोग-ऐश्वर्य के प्रवाह में खिंच जाते हैं तो हम स्वयं को बिखेर देते हैं, उच्छ्रंखल विचारों में बहते चले जाते हैं, मनोबल कमजोर होने से कोई भी कार्य हाथ में नहीं ले पाते तो हम अपने मन के शत्रु हैं |
हमारा आपा ( मन ) ही हमारा बंधु है और हमारा मन ही हमारा दुश्मन है | जिस दिन हम मन को मित्र बनाकर जीत लेते हैं, तो फिर हम अध्यात्म क्षेत्र के साथ लौकिक जगत में भी एक सफल मानव बनते चले जाते हैं |