' कर्मों का संपादन करते हुए जीना ही सर्वश्रेष्ठ है , कर्मों का संपादन करते-करते ही सफलता की ओर बढ़ा जाता है | '
हम ऐसे दिव्यकर्मी बने कि हमारे कर्म ही औरों के लिये शिक्षण बन सकें | स्वामी तुरीयानंदजी ( रामकृष्ण मिशन ) कहा करते थे " लिव इन एक्जेम्पलरी लाइफ " अपना जीवन उदाहरण की तरह जियो , अपने कर्मों से , आचरण से औरों को शिक्षण दे सको |
एक गधा पीठ पर अनाज की भारी बोरी लादे चल रहा था | देवर्षि नारद वहां से निकले तो उन्होंने गधे के निकट से गुजर रही चींटी को झुककर प्रणाम किया | गधे को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ | उसने अपनी जिज्ञासा नारद मुनि के समक्ष रखी |
देवर्षि बोले --" वत्स ! ये चींटी बड़ी कर्मयोगी है, निष्ठापूर्वक अपना कार्य करती है | देखो , कितनी बड़ी चीनी की डली लिये जा रही है | इसलिये मैंने इसकी निष्ठा को नमन किया | "
गधा क्रोधित हुआ और बोला --" प्रभु ! ये अन्याय है | इससे ज्यादा बोझ मैंने उठा रखा है , मुझे ज्यादा बड़ा कर्मयोगी कहलाना चाहिये | "
देवर्षि हँसे और बोले --" पुत्र ! कार्य को भार समझकर करने वाला कर्मयोगी नहीं कहलाता , बल्कि वो कहलाता है , जो उसे अपना दायित्व समझकर प्रसन्नतापूर्वक निभाता है |
जो कर्म हम करते हैं उसे पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ करें | यही कर्मयोग है , जीवन जीने की शैली है , इससे आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों ही क्षेत्रों में सफलता प्राप्त होती है |
हम ऐसे दिव्यकर्मी बने कि हमारे कर्म ही औरों के लिये शिक्षण बन सकें | स्वामी तुरीयानंदजी ( रामकृष्ण मिशन ) कहा करते थे " लिव इन एक्जेम्पलरी लाइफ " अपना जीवन उदाहरण की तरह जियो , अपने कर्मों से , आचरण से औरों को शिक्षण दे सको |
एक गधा पीठ पर अनाज की भारी बोरी लादे चल रहा था | देवर्षि नारद वहां से निकले तो उन्होंने गधे के निकट से गुजर रही चींटी को झुककर प्रणाम किया | गधे को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ | उसने अपनी जिज्ञासा नारद मुनि के समक्ष रखी |
देवर्षि बोले --" वत्स ! ये चींटी बड़ी कर्मयोगी है, निष्ठापूर्वक अपना कार्य करती है | देखो , कितनी बड़ी चीनी की डली लिये जा रही है | इसलिये मैंने इसकी निष्ठा को नमन किया | "
गधा क्रोधित हुआ और बोला --" प्रभु ! ये अन्याय है | इससे ज्यादा बोझ मैंने उठा रखा है , मुझे ज्यादा बड़ा कर्मयोगी कहलाना चाहिये | "
देवर्षि हँसे और बोले --" पुत्र ! कार्य को भार समझकर करने वाला कर्मयोगी नहीं कहलाता , बल्कि वो कहलाता है , जो उसे अपना दायित्व समझकर प्रसन्नतापूर्वक निभाता है |
जो कर्म हम करते हैं उसे पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ करें | यही कर्मयोग है , जीवन जीने की शैली है , इससे आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों ही क्षेत्रों में सफलता प्राप्त होती है |