24 March 2023

WISDOM ------

  इस  संसार  में  आदिकाल  से  ही  देवासुर  संग्राम  रहा  है  l  आकृति  से  तो  सभी  मनुष्य  हैं  लेकिन  अपनी  दुष्प्रवृतियों  के  कारण  ही  कोई  असुर  कहलाता  है  जैसे  रावण  -- इसके  दोष , दुर्गुणों  ने   इसकी  विद्वता  को  धूमिल  कर  दिया  था   इसलिए  ब्राह्मण  कुल  में  पैदा  होकर  भी  राक्षसराज  रावण  कहलाया  l  प्रश्न  यह  है  कि  भगवान  ने  इतने  अवतार  लिए  फिर  भी   अच्छाई और  बुराई  के  बीच , देवताओं  और  असुरों  के  बीच  यह  संघर्ष  समाप्त  क्यों  नहीं  होता   इसका  कारण  यही  है   कि   संघर्ष  या  युद्ध  करने  वाला  पुरुष  समाज  है   और  इसमें  वीर ,  आन -बान और  शान  वाले   बहुत  कम  हैं  ,  लोग  अपने  सुख -वैभव  के  लिए  अन्याय  और  अधर्म  से  समझौता  कर  लेंगे ,  सत्य  का  साथ  नहीं  देते  हैं  l  उन  पर  स्वार्थ  और  लालच  हावी  है   ल   श्रीराम  स्वयं  भगवान  थे  ,  लेकिन  धरती  पर  मनुष्य  रूप  में  जन्म  लिया  l  जब  उन  पर  संकट  आया  , रावण  से  युद्ध  हुआ   तब   किसी  भी  राजा  ने ,  उनके  किसी  भी  रिश्तेदार  ने  उनकी  मदद  नहीं  की  l  रावण  जैसे  शक्तिशाली  से  युद्ध  उन्होंने  रीछ  और  वानरों  की  मदद  से  लड़ा  l  सेतु  बन  गया  था  लेकिन  किसी  राजा  ने  उनके  लिए  सेना  तो  क्या   रथ  भी  नहीं  भिजवाया  l   जब  भगवान  के   वनवास  के  बाद  सुख  के  दिन  आए   तब  ईर्ष्यालुओं  ने  उनका  सीता जी  से  बिछोह  करा  दिया  l  चाहे  भगवान  राम  हों  या  कृष्ण  , इस  धरती   पर   उन्हें  चैन  से  जीने  नहीं  दिया  l  मनुष्य  का  अपने  प्रति  ऐसे  व्यवहार  पर  भगवान  को  भी  क्रोध  आता  है  l  इतने  युग  बीत  गए  लेकिन  मनुष्य  ने  इतिहास  से  भी  कुछ  नहीं  सीखा , अपनी  चेतना  का  परिष्कार  नहीं  किया  ,  अपनी  दुष्प्रवृतियों  को  भी  दूर  करने  का  कोई  प्रयास  नहीं  किया   इसलिए  संसार  में  अशांति  है , प्राकृतिक  प्रकोप  हैं   l  केवल  आडम्बर  करने , कर्मकांड  करने   से  भगवान  प्रसन्न  नहीं  होते  , भगवान  की  कृपा  पाने  के  लिए  सन्मार्ग  पर  चलना  जरुरी  है  l  

WISDOM ---

     लघु -कथा -----  बहुत  पुरानी  बात   है  l  दो  मित्र  थे  l  एक  का  नाम  था  सत्य  और  दूसरे  का  नाम  था   असत्य  l  सत्य  जहाँ  भी  जाता  वहां  उसका  सम्मान  होता   लेकिन   असत्य   का  सब  तिरस्कार  करते  l  इस  कारण  उसे  सत्य  से  बहुत  ईर्ष्या  होती  थी  l  ईर्ष्या  इतनी  प्रबल  हो  गई  कि  उसने  एक  चाल  चली  l  उसने  सत्य  से  कहा  -- आज  बहुत  गर्मी  है  चलो  नदी  में  स्नान  कर  आएं  l   सत्य जब  स्नान  कर  रहा  था ,  उस  समय  असत्य  चुपचाप  नदी  से  निकला  और  सत्य  के  श्वेत  धवल  वस्त्र  पहनकर  भाग  गया  l  बाहर  निकलने  पर  सत्य  को  विवश  होकर  असत्य  के  वस्त्र  पहनने  पड़े  l  उस  दिन  से  अब   लोग  असत्य  को  ही  सत्य  समझने  लगे  और  हर  जगह  असत्य  को  पूजा  जाने  लगा  l    श्वेत  वस्त्र  धारण  करने  से  असत्य  के  मन  की  मलिनता  नहीं  गई   l  अहंकार  लोभ , बदले  की  भावना  और  प्रबल  होती  गई  l   त्रेतायुग , उसके  बाद  द्वापरयुग  फिर  कलियुग  आ  गया   l  हर  युग  में  अत्याचारी , अन्यायी  जो  असत्य  पर  थे  , अत्याचारी  व  अन्यायी  थे  वे  राज  करते  रहे  औए  सत्य  व  न्याय  पर  चलने  वाले   वनों  में  भटके , अत्याचार  व  अन्याय  को  सहते  रहे  l  जब  अति  हो  गई  तब  सत्य  और  धर्म  पर  चलने  वाले  सब  एकत्रित  होकर  विधाता  के  पास  गए   और  कहा ---- प्रभु  !  यह  कैसा  न्याय  है  !  हम  आपकी  शिक्षा  के  अनुसार  सत्य  के  मार्ग  पर  हैं   लेकिन  छल , कपट  और  षड्यंत्र  करने  वाले  असुर  हम  पर  अत्याचार  कर  रहे  हैं  l  विधाता  ने  कहा --- "  अत्याचार    व  अन्याय  का  अंत  करने  के  लिए   ईश्वर  ने  समय -समय  पर  अवतार  लिया  है   l  कलियुग  में  असुरता  के  तार  सम्पूर्ण  पृथ्वी  पर  फैले  हुए  हैं  l  चाहे  वह  परिवार  हो , समाज , संस्थाएं  , राष्ट्र   और  सम्पूर्ण  संसार  में  छल , कपट  और  षड्यंत्र  अपने  चरम  पर  है  , मनुष्य  का  मनुष्य  पर  से  विश्वास  उठ  गया  है , बच्चे  जो  ईश्वर  का  रूप  हैं  वे  भी  सुरक्षित    नहीं  हैं  l  पृथ्वी  , जल , वायु   सभी  कुछ  प्रदूषित  हो  गया  है  l  '  विधाता  ने  मनुष्यों  को  आश्वासन  दिया  कि ----"  कलियुग  में  वह  समय  अति  शीघ्र  आने  वाला  है  जब  हर   छोटे -बड़े  षडयंत्रकारी   का  पर्दाफाश  होगा  ,  लोगों  का  नकाब  उतरेगा ,  उनकी  असलियत  संसार  के  सामने  आएगी  ,  यह  दैवी  विधान  है  , इसे  कोई  नहीं  रोक  सकता  l