29 November 2017

WISDOM

 एक  संत  के  त्याग  से  प्रभावित  होकर  एक  राजा  ने  भी   उनसे   गुरुदीक्षा   ली  l  पहले  भी   हजारों  लोग  उनसे  दीक्षा  ले  चुके  थे  l  उन्होंने  राजा  को  भी  दीक्षित  देखा  तो  सबने  जाकर  कहा ----- महाराज  !  अब  तो   आप  हमारे  गुरुभाई  हैं  , अब  हमसे  राज्य - कर  नहीं  माँगना  l  राजा  ने  दुविधावश  सबका  कर  माफ  कर  दिया  l परिणाम  यह  निकला  कि   राज्य - व्यवस्था  के  लिए  पैसा  मिलना  बंद  हो  गया ,  सारी  व्यवस्था  नष्ट - भ्रष्ट  हो  गई  l  यह  देखकर   संत  ने  राजा  को  बुलाया  और  कहा ----- " राजन  ! धर्म  की  सार्थकता  कर्म  से  है  l  आलसी  लोग  दीक्षा  भी  ले  लें  तो  क्या  !  इनमे  मेरा  एक  भी  शिष्य  नहीं  है   l "
  राजा  ने  भूल  समझी   और  टैक्स  लगा  दिया  ,  तब  कहीं  बिगड़ती  शासन व्यवस्था  संभली  l  

28 November 2017

WISDOM ----- अन्याय सहना अन्याय करने से कई गुना बड़ा अपराध है l

  कितने  ही  व्यक्ति  अनीति  को  देखकर  उदास  तो  होते  हैं ,  पर  उसके  प्रतिकार  के  लिए  कुछ  नहीं  करते   l  बंगाल  के  राजा राममोहन  राय उनमे  से  न  थे  l   उनकी  भाभी  को  बल पूर्वक  सती  करा  दिया  गया  था  l  वह  करुण  द्रश्य  वे  कभी  नहीं  भूल  पाए  l  उन्होंने  प्रतिज्ञा  कि  कि  वे  इस   कुप्रथा  का  अंत  कर  के  ही  रहेंगे  l  राजा  राममोहन  राय  ने  सरकार  की  सहायता  से   सती  प्रथा  विरोधी  कानून  पास  कराया  l    इसी  तरह   नाना  साहब  पेशवा  को  अंग्रेजों  की  अनीति  अच्छी  नहीं  लगी  l  उस  समय  अंग्रेजों  के  मुकाबले  उनकी  स्थिति  बहुत  साधारण  थी  ,  तब  भी  उन्होंने  संकल्प  लिया  कि  वे  इस  अन्याय  का  प्रतिकार  करेंगे   l    नाना साहब  पेशवा   1857   की   क्रांति  के  सूत्रधार  बने  l  इसके सूत्र  संचालन  के  लिए  उन्होंने  दिन - रात  एक  कर  दिए ,  जनता  और  राजाओं  को  जागरूक  किया  l  उनके  प्रयासों  से  सारे  देश  में  क्रांति  की  आग  भड़क  गई  थी  l 

27 November 2017

शान - ए - अवध ------- बेगम हजरत महल

 वर्ष  1857  देश  में  स्वाधीनता  का बिगुल  बज  चुका   था  l  अवध  के  बहादुर  सिपाहियों  का   नेतृत्व  स्वयं  बेगम  हजरत महल  कर  रही  थीं  ,  जबकि  अंग्रेज  फौज  की  कमान  लार्ड  कैनिंग  ने  सम्हाल  रखी  थी  l
  उनके  कई   वफादारों  ने  सलाह  दी  कि  आप   जंग  से  दूर  रहें ,  किसी  सुरक्षित  स्थान  पर  छुप  जाएँ  किन्तु  बेगम  हजरत महल  ने  कहा --- " झाँसी  की  रानी  लक्ष्मीबाई, कानपुर  में  तात्यां  टोपे  और  पेशवा  नाना   साहब  इस  आजादी  की  लड़ाई  में  कूद  पड़े  हैं  l  ऐसे  में  हमारा  लखनऊ  पीछे  रहे ,  यह  उचित  न  होगा  l  "   अहमदुल्ला  ने  कहा --- " आपकी  बातें  वाजिब  हैं  बेगम  साहिबा  !  पर  यह  न  भूलें  कि  आप  औरत  हैं  ? "  इस  बात  को  सुनकर  बेगम  हजरत महल  हंस  दीं  और  बोलीं ---- " क्या  झाँसी  की  रानी  औरत  नहीं है  ?  अहमदुल्ला  ने  टोकना  चाहा --- " लेकिन  वह  तो  हिन्दू  हैं  l "  इस  पर  बेगम  के  माथे  पर  बल  पड़  गए  ,  उनकी  आवाज  तेज  हो  गई ,  वह  कहने  लगीं ---- " यह  किसी  को  नहीं  भूलना  चाहिए   कि  यह  देश  हिंदू - मुसलमानों  का  नहीं , मर्दों  या औरतों  का  नहीं  ,  सभी  देशवासियों  का  है  l  इसकी  आन - बान  और  शान  के  लिए  मर - मिटने  का  सबको  बराबर  का  हक  है   और  मुझसे मेरे  इस  हक  को  कोई  नहीं  छीन  सकता  l  सबसे  पहले  मैं  हिन्दुस्तान  की  बेटी  हूँ  ,  बाद  में  अवध  की  बेगम  l " 
     उनकी  भावनाओं   को  देखकर  सभी  एक  साथ  बोल  पड़े --- " बेगम  साहिबा  !  हम  सभी  आपकी  कमान  में  आजादी  की  यह  जंग  लड़ेंगे   और  जीतेंगे  भी  l  "  हिन्दुस्तान   आखिरी  शहंशाह  बहादुरशाह  जफर  को  यह  खबर  मिली  तो  फूले  न  समाये ,  उन्होंने  बेगम  साहिबा  के  पास  पैगाम  भेजा --- '  हमें  फक्र  है  तुम  पर  l  जब  तक  बेगम  हजरत  महल   और  रानी  लक्ष्मीबाई  जैसी  बेटियां  हमारे  मुल्क  में  हैं  ,  कोई  भी  विदेशी  ताकत  इसका  कुछ  नहीं  बिगाड़  सकती  l  इंशाअल्लाह ! हम  रहें  या  न  रहें  हिन्दुस्तान  को  आजादी  जरुर  मिलेगी  l  हम  तुम्हे  शुक्रिया  अदा  करते  हैं   और  तुम्हारे  बेटे  को  अवध  का  नवाब  घोषित  करते  हैं  l "    बूढ़े  बादशाह   के  इस  पैगाम  को  बेगम  हजरत महल  ने  अपने  सिर  से  लगाया  और  अपनी  फौज  के  साथ   पहुँच  गईं---- चिनहट  के  मैदान  में  l  जितने  दिन  यह  जंग अली  , उतने  दिन  बेगम  हजरत महल  खुद  हाथी  पर  बैठकर  अपनी  फौज  का  हौसला  बढ़ाती  रहीं   l  उनके  साहस , शौर्य , शस्त्र - संचालन,   व्यूह  रचना   ने  अंगरेजी  फौज  को  मैदान  छोड़कर  भागने  पर  मजबूर  कर  दिया  l  जनरल  आउटरम  एवं    कॉलिन   कैम्पबेल  को  भी  मानना  पड़ा  कि  बेगम  हजरत  महल  ने  अंग्रेजी  फौज  में  खौफ  पैदा  कर  दिया  था  l   इतिहासकार  ताराचंद  ने   लिखा  है  कि --- "  30  जून  1857  से   21 मार्च  1858     तक  बेगम  हजरत महल  ने  लखनऊ  में  नए  सिरे  से  शासन  सम्हाला  और  आजादी  की  लड़ाई  का  नेतृत्व  किया  l  "  हिन्दुस्तान  की  बेटी  बेगम  हजरत महल  की  ये   जंग   इतिहास  के  पन्नों  में   सदा  अमर  रहेगी   l 

24 November 2017

WISDOM ----

  खलील  जिब्रान  की  एक  कथा  है ----- उनका  एक  मित्र  अचानक  एक  दिन  पागलखाने  में  रहने  चला  गया  l  जब  वह  उससे  मिलने  गया  तो  उसने  देखा   उसका  वह  मित्र  पागलखाने  में  बाग़  में  एक  पेड़  के  नीचे  बैठा  मुस्करा  रहा  है  l  पूछने  पर  उसने  कहा --- " मैं  यहाँ  बड़े  मजे  से  हूँ  l  मैं  बाहर  के  उस  बड़े  पागलखाने  को  छोड़कर  इस  छोटे  पागलखाने  में  शांति  से  हूँ   l  यहाँ  पर  कोई  किसी  को  परेशान  नहीं  करता  l  किसी  के  व्यक्तित्व  पर  कोऊ  मुखौटा  नहीं  है  l  जो  जैसा  है  वह  वैसा  है  l  न  कोई  आडम्बर ,  न  कोई  ढोंग   l "  उसने  कहा --- " मैं  यहाँ  पर  ध्यान  सीख  रहा  हूँ   क्योंकि  ध्यान  ही  सभी  तरह  के  पागलपन  का  स्थायी  इलाज  है   l "  

WISDOM ----- ईश्वर पर अटूट विश्वास व्यक्ति को निडर व निश्चिन्त बना देता है l

 आत्मविश्वास  और  ईश्वर विश्वास  एक  ही  सिक्के  के  दो  पहलू  हैं  l  ईश्वर  पर  विश्वास  कर  के  व्यक्ति  संसार  के  किसी  भी  भय  एवं  प्रलोभन  से  विचलित  नहीं  होता  l  सुद्रढ़  विश्वास  किसी  भी  चुनौती  से  घबराता  नहीं  है  ,  बल्कि  उससे  पार  पाने  के  लिए   अपनी  राह  निकाल  कर  आगे  अग्रसर  हो  जाता  है  l 
               इस  संबंध  में  एक  घटना   मुगलकालीन  भारत  के  महान  कवि  श्रीपति  के  जीवन  की  है  l  श्रीपति  माँ  भगवती  के  परम  उपासक  थे  l  अपनी  बुद्धिमता  और  माँ  की  कृपा   वे  मुगल  बादशाह  अकबर  के  अति  प्रिय  थे  ,  उन्होंने  श्रीपति  को  दरबार  में  अपना  सलाहकार  बना  रखा  था   l  इस  कारन  अनेक  दरबारी  उनसे  ईर्ष्या  करते  थे  l  एक  दिन  दरबारियों  ने  भक्त   श्रीपति   नीचा   दिखाने  के   लिए   एक   तरकीब  निकली  l  एक  दिन  दरबार  में  श्रीपति  को  छोड़कर   अन्य   कवियों  व  दरबारियों  ने  एक  प्रस्ताव  रखा  कि   अगले  दिन  सभी  कवि  स्वरचित  कविता  सुनायेंगे  जिसकी  अंतिम  पंक्ति  में   यहय  रहे ---- " करौं  मिलि  आस   अकबर  की  l "  दरबारियों को  अनुमान  था  कि  श्रीपति  तो  माँ    भवानी  के  भक्त  हैं ,  वे   बादशाह  की  प्रशंसा  नहीं   करेंगे     बादशाह  उनसे  नाराज  हो  जाये ,  संभव  है  कोई  दंड  दे  l 
   अगले  दिन  दरबार  में  भारी  भीड़  थी   l  सभी  अपनी  स्वरचित  कवितायेँ    सुनाकर  अकबर  की  प्रशंसा  कर  रहे  थे   और  श्रीपति  जी  मन  ही  मन   ईश्वर  का  स्मरण  करते  हुए  निडर  व  निश्चिन्त  थे  ,  उन्हें  भरोसा  था  कि  संकट  की  इस  घड़ी  में   माँ   भगवती  उनकी  चेतना  में  प्रकट  होकर  अवश्य  मार्ग  दिखाएंगी  l  अंत  में  उनकी  बारी  भी  आ  गई ,  वे  आसन  से  उठे   और  माता  का  स्मरण  करते  हुए    अपनी  स्वरचित  कविता  पढ़ी ------  अबके  सुलतान  फरियांन  समान  है  .
                                                         बांधत  पाग  अटब्बर   की ,
                                                         तजि  एक  को  दूसरे  को  जो  भजे ,
                                                       कटी  जीभ  गिरै  वा  लब्बर  की
                                                      सरनागत  ' श्रीपति ' माँ  दुर्गा  कि
                                                       नहीं  त्रास  है  काहुहि  जब्बर  की
                                                     जिनको  माता  सो  कछु  आस  नहीं ,
                                                      करौं  मिलि  आस  अक्ब्बर  की  ll 
  इस  कविता  को  सुनकर  सभी  षड्यंत्र कारियों  के  मुख  पर  कालिमा  छा  गई  l  बादशाह  अकबर  बहुत  प्रसन्न  हुआ   l  उसने  भक्त  श्रीपति  को  यह  कहते  हुए   गले  लगा  लिया  कि  तुम्हारी  भक्ति  सच्ची  है ,  सचमुच  जगन्माता   तुम्हारी  चिंतन , चेतना  में  विराजती  हैं   l 

22 November 2017

WISDOM ----- यदि अंत:करण मलिन और अपवित्र है तो ईश्वर की उपासना भी फलवती नहीं होती

अधिकतर  व्यक्ति  ईश्वर  को  याद करते  हैं  ,  पूजा -पाठ ,  उपासना  ,   -  आदि  कर्मकांड करते  हैं   परन्तु   फिर    भी  गई - गुजरी     स्थिति  में   रहते    हैं   l  कारण  है --- अन्दर  के  पाप कर्म     और  दुष्प्रवृत्तियों  में  लिप्त  रहना   l  फिर  यह  ढोंग  हुआ  ,  इसके  बदले  ईश्वर  की  कृपा  कैसे  मिले   ?   प्रभु  कृपा  की  एक  ही   शर्त  है ------ पवित्रता   l  

21 November 2017

WISDOM ------ जागरूकता जरुरी है

  प्रजातंत्र  जब  असफल  होता  है  तो  उसका  स्थान  तानाशाही  लेती  है  l  इस  दुर्भाग्य  का  कारण  है --- दुर्बल  सरकारें  l  प्रजातंत्र  में  सफल  सरकार  वह  है   जो  भय  और  गरीबी  से  जनता  को  बचा  सके   अन्यथा  लोग  सब्र  खो  बैठेंगे   और  गृह युद्ध  जैसी  स्थिति  में  तानाशाही  उठ  खड़ी  होती  है  l
  प्रजातंत्र  की  सफलता  ऐसी  सशक्त  सरकार   पर  निर्भर  है   जो  जनता  के  हितों  की  रक्षा  कर  सके   l  ऐसी  सरकार  बना  सकने  के  लिए  सशक्त  और  सजग  जनता  का  होना  आवश्यक  है   l   वस्तुतः  जाग्रत  जनता  ही   प्रजातंत्र  सफल  बनती  है   और  वही  उसका  लाभ  लेती  है   l  

20 November 2017

WISDOM ---- अतीत के अनुभवों से सीखें और आगे बढ़ चलें

    विद्वानों  का  मत  है  कि   पुराने  अनुभवों  को  बोझा  नहीं  बनने  देना  चाहिए  l  अनुभवों  को  वर्तमान  की  कसौटी  पर  परखते  रहना  चाहिए  l  अर्जित  ज्ञान  में  जो  आज   भी    प्रासंगिक  है  , उसे  ग्रहण  करना  चाहिए  और  जो  प्रासंगिक  नहीं  रहा  उसे  सुखद  स्मृतियों  के  लिए  छोड़  देना  चाहिए  l  ज्ञान    को       व्यवहार  की   कसौटी  पर  निरंतर  परिष्कृत    करने  से  ही  वह  सजीव  रहता  है  l   बीते  हुए  का  शोक  छोड़ें  और  भविष्य  के  समुज्ज्वल  जीवन  की   ओर   बढ़ें  l  आकाश  में  कितने  तारे  रोज  टूटते  हैं  --- इस  संबंध  में  हरिवंशराय  बच्चन  ने  लिखा  है ----  ' जो  छूट  गए  फिर  कहाँ  मिले ,  पर  बोलो   टूटे  तारों  पर  ,  कब  अम्बर  शोक  मनाता  है  l 

19 November 2017

जिन्होंने चीन को विकसित और शक्तिशाली देश बनाने का प्रयत्न किया ----- माओत्से तुंग

   बीसवीं  सदी के   प्रारंभ  में  जब   चीन  की  चर्चा  होती  थी   तो  सभी  उसे   अफीमची  और  आलसियों  का  देश  कहते  थे   l  स्वाभिमानी  चीनियों  ने  जब  भयंकर   अकाल  में  भी   बाहर  से  आई  मदद  को  नकार  दिया  और  विदेशी  सहायता  अस्वीकार  कर  दी  ,  तब  लोगों  ने  जाना  कि   एक  दिलेर ,  जाँबाज  माओत्से -तुंग  वहां  उठ  खड़ा  हुआ  है  l  बीहड़  जंगलों  में  मुक्ति  संघर्ष  के  दौरान   नेतृत्व   करने  वाले  माओ  ने  बुर्जुआ वादी   शासन तंत्र  से  मोर्चा  लिया  l  क्रांति  का  सफल  संचालन  किया   l  राष्ट्र  के  गाँव - गाँव  की   सात  हजार  मील  की  पैदल  यात्रा  संपन्न  की   l  संसार  में  सबसे  ज्यादा  आबादी  वाला   यह  देश  आज  इतना  आधुनिक ,  तकनीकी  से  संपन्न और  विकसित  बन  गया  है   तो  उसका  श्री  माओत्से तुंग  को  ही  जाता  है  l 

18 November 2017

WISDOM ------ काल बड़ा बलवान है

'  काल  की  बड़ी  महिमा  है  l  काल  की  महिमा  से  जो  अवगत  होते  हैं  ,  वे  उसको  प्रणाम  कर  के  उसके  अनुकूल  स्वयं  को  ढाल  लेते  हैं  l  काल  बड़े - बड़ों  को  धराशायी  कर  देता  है  l  बड़े - बड़े  साम्राज्य  जिनकी  कहीं  कोई  सीमा   तक   नजर  नहीं  आती  है  , जिनका  सूर्य  कभी  ढलता  तक  नहीं  है  ,   इतने  बड़े  एवं  व्यापक  साम्राज्य  को  भी  काल  क्षण  भर  में   धूल - धूसरित  कर  देता  है   l
  ' काल  उठाता  है  तो  एक  तिनका  भी  पहाड़  बन  जाता  है  l  एक  असहाय  निर्बल  भी  बलशाली   बन  जाता  है    l
  पुराणों  में  एक  कथा  है  कि ------   विष्णु  भगवन  ने   वामन  रूप  धरकर    राजा  बलि  से  दान  में  तीन  पग  जमीन  मांग  ली   और  इन  तीन  पग  में   तीनो  लोकों  को  नाप   कर  राजा  बलि  को   पाताल  लोक  पहुंचा  दिया  l   महाराज  बलि  ने  कहा ------  "    आज  काल  हमारे  साथ  नहीं  खड़ा  l  ऐसे   विपरीत  समय  में   कोई     ज्ञान ,  कोई   तप ,   कोई  साधान   काम  नहीं  आता  है  l    काल  की  इस  विपरीत  दशा  में   हमें  शांत  एवं  स्थिर  बने  रहना  चाहिए  l  प्रभु  द्वारा  निर्धारित  स्थान  पर  रहकर   और  अपनी  भक्ति  के  सहारे   आने  वाले  अनुकूल  समय  की   प्रतीक्षा   के  अलावा  और  कोई  विकल्प  नहीं  है   l  इस  समय  कोई  प्रयास - पुरुषार्थ  काम  नहीं  आता ,  कोई  अपना  भी  साथ  नहीं  देता   l  केवल  ईश्वर  ही  सुनते  हैं  और  साथ  देते  हैं   l   यही  सत्य  है  l  

17 November 2017

WISDOM ----- जो उदार हैं , वही इनसान हैं

 मनुष्य  को  जो  सम्पदाएँ  मिली  हैं   वह  सिर्फ  इसलिए  मिली  हैं  कि  अपनी  आवश्यकताएं  पूरी  करने  के  बाद  जो  शेष  बच    जाता  है   उसका  उपयोग  संसार  में  सुख - शान्ति  और  समृद्धि  बढ़ाने  के  लिए  करें  l
       भेड़ों  से  हमें  नसीहत  लेनी  चाहिए  l  भेड़  अपने  बदन  पर  ऊन  पैदा  करती  है     और  वह  उसे  लोक  हित  के  लिए  मनुष्यों  को  देती  है  l  उस  ऊन  से  कम्बल , गर्म  कपडे  बनते  हैं  ,  जिससे  लोगों  को  ठण्ड  से   बचाव  होता  है  l  जितनी  बार  ऊन   काटी  जाती  है  उतनी  ही  बार  नयी  ऊन  पैदा  होती  चली  जाती  है  ,  प्रकृति  उस  ऊन  का  मुआवजा  बार - बार  देती  है  l   मनुष्य  को  रीछ  जैसा  नहीं  होना  चाहिए  l  वह  अपनी  ऊन  किसी  को  नहीं  देता   इसलिए   जितनी  ऊन   भगवान  से  लेकर  आया  था  ,  कुदरत  ने  उससे  एक  अंश  भी  अधिक  उसे  नहीं  दी   l 

16 November 2017

WISDOM

   श्रवणकुमार  के  माता -पिता  अंधे  थे  ,  पर  उनकी  इच्छा   तीर्थ यात्रा  की  थी  l  श्रवणकुमार  ने  आश्चर्य  से  पूछा ,  जब  आप  लोगों  को  दीखता  ही   नहीं  है  और  देव दर्शन  कर  नहीं  सकेंगे  ,  तो  ऐसी  यात्रा  से  क्या  लाभ   ?  पिता  ने  कहा ,  तात ! तीर्थयात्रा  का  उद्देश्य  देव दर्शन  ही  नहीं  है ,  वरन  लोगों  के  घर - घर  गाँव - गाँव  जाकर  जन संपर्क  साधना और  धर्मोपदेश  करना  है  l  यह  कार्य  हम  लोग  बिना  नेत्रों  के  भी  कर  सकते  है  l  इनसे  इन  दिनों  जो  निरर्थक  समय  बीतता  है  ,  उसकी  सार्थकता  बन  पड़ेगी  l  

14 November 2017

WISDOM ----- जिन्हें दैवी सत्ताओं का अनुग्रह प्राप्त होता है , उन्हें लोक - प्रतिष्ठा प्रभावित नहीं करती

   भारत  की  सर्वोच्च  उपाधि  ' भारत  रत्न '  उसका  विधान  पं. गोविन्द वल्लभ  पन्त  के  समय  से  चला  था   l  प्रथम  व  द्वितीय    के  बाद  जब  अगले  की  बारी  आई तो  सर्व सम्मति  से  भाई जी  श्री  हनुमान  प्रसाद  पोद्दार  का  नाम  चुना  गया  l  वे  गीता  प्रेस  गोरखपुर  के  संस्थापक --- गीता  आन्दोलन  के  प्रणेता  थे   l  उन  तक  बात  पहुंची  l  उन्होंने  पन्त  जी  से  कहा ---- " हम  इस  योग्य  नहीं  हैं  l  देश  बड़ा  है  l  कई  सुयोग्य  व्यक्ति  होंगे  l  हमने  अगर  कुछ  किया  भी  है  तो  किसी  पुरस्कार  की  आशा  से  नहीं  किया  l  आप  किसी   और  को  दे    दें   l "     नेहरु  जी  को  पता  चला   तो  उन्होंने  पंत  जी  से  कहा ---- " जाओ  और  मिलो  l  आदर - सत्कार  से  बात  करो  l   कोई  बात  हो  सकती  है  l  पता  लगाओ  l  "
  पन्त  जी  ने  जाकर  बात  की   l  पुन:  भाई  जी  बोले ----- "  हम  स्वयं  को  इस लायक  मानते  ही  नहीं  l  हमने  भक्ति भाव  से   परमात्मा  की  आराधना  मानकर  ही  सब  कुछ  किया  है   l  "
  ऐसा  ही  हुआ  l  सरकार  को  अपना  इरादा  बदलना  पड़ा  l
  वस्तुतः  भाई  जी  जिस  भाव  और  भूमिका  में  जीते  थे  ,  वह  लोक  की  प्रतिष्ठा  से  परे ---- और  भी  ऊपर   था  l  उन्हें  दैवी  सत्ताओं  का  अनुग्रह  सहज  ही  सदैव  प्राप्त  था   l  

13 November 2017

WISDOM ----- यदि हम समय का सदुपयोग नहीं करेंगे तो समय ही हमें बरबाद कर देगा l

  वृहत  भारत  के  विश्वकर्मा  श्री  विश्वेश्वरैया   कहा  करते  थे --- ' यदि  हम  जीवन  में  सफलता  प्राप्त  करना  चाहते  हैं  , तो  उसका  मूल  मन्त्र  है ----- समय  का  सदुपयोग   l '   अति - परिश्रम  के  साथ  समय पालन  का  उनमे  अद्भुत  गुण  था  l  विद्दार्थी  जीवन  से  ही  वे  समय  के  अत्यंत  पाबंद  थे  l  उनके  पढ़ने - लिखने ,  सोने - जागने  का  समय  नियत  था  l  आरम्भ  से  ही  टाइमटेबिल   बनाकर  कार्य  करने  कि  उनकी  आदत  थी  l  उनकी  महानता  का ,  उपलब्धियों  का  यही  रहस्य  था  l  उन्हें   ' भारत  रत्न ' से  सम्मानित  किया  गया  था   l
  श्री  विश्वेश्वरैया  प्रथम  श्रेणी  के  डिब्बे  में  सफर  कर  रहे  थे  l उसी  में  कुछ  अंग्रेज  भी  थे  l  अचानक  वे  हड़बड़ा कर  उठे  और  गाड़ी  खड़ी  करने  के  लिए  जंजीर  खींचने  लगे  l  अंग्रेजों  के  मना  करने  पर  भी  वे  न   माने  और  जंजीर  खींचकर  गाड़ी  खड़ी  कर  दी  l  गार्ड  सहित  रेल - कर्मचारी  आये  और  गाड़ी  रोकने  का  कारण  पूछा  तो  श्री  विश्वेश्वरैया  ने  कहा --- "कुछ  ही  आगे  रेल  की  पटरी  ख़राब  हो  गई  है  ,  गाड़ी  उलट  जाने  का  खतरा  है  l "  किसी  को  उनके  इस  कथन  पर  विश्वास  नहीं  हुआ  तो  उन्होंने  कहा ---- " मैं  हर  बात  को  बहुत  गंभीरता    से  सोचने  और  परखने  का  अभ्यस्त   रहा  हूँ    l  रेल  के  पहिये  और  पटरी   के  घिसने  से  जो  आवाज  निकलती  है  ,  वह  बताती  है  कि  आगे  पटरी  खराब  पड़ी  है  l  "  उन्होंने  कहा  कि  इस  कारन  गाड़ी  बहुत  धीरे  और  सावधानी  से  चलानी  चाहिए  l 
  उस  समय  तो  किसी  ने  उनकी  बात  का  भरोसा  नहीं  किया   किन्तु  थोड़ी  दूर  जाने  पर  जब  पटरी  उखड़ी   पाई  गई  तो  सब  अवाक  रह  गए   और  यात्रियों  की  जान   बचाने   का  धन्यवाद  देते  हुए  उन्हें  भविष्यवक्ता  कहने  लगे  l  विश्वेश्वरैया  यही  कहते  रहे कि --- "   गंभीरता  पूर्वक  सामान्य  बातों  को    भी  ध्यान  से  समझने   और  जानने  का  प्रयत्न  करने  वाला  हर   व्यक्ति   भविष्य वक्ता  हो  सकता  है   l  '                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        

11 November 2017

WISDOM ------ सामाजिक मूल्य एवं आदर्श श्रेष्ठ व्यक्तित्व संपन्न महान व्यक्तियों के माध्यम से ही सुरक्षित रहते हैं l

वर्तमान  समय  में  श्रेष्ठ  व्यक्तित्व  संपन्न  मनीषियों  और  विचारकों  के  अभाव  के  कारण  समाज  रुग्ण और  जर्जर  हो  चुका  है  l  यदि  वातावरण   मूल्यहीनता  रूपी  प्रदूषण  से  ओत-प्रोत  हो  तो  समाज  में  अनैतिक  और  स्वार्थी  व्यक्तियों  की  भरमार  होती  है  l  आज  स्वार्थ  सर्वोपरि  हो  गया  है  और  मूल्य ,  नीति,  आदर्श  व  परम्पराएँ   बीते  दिनों  की  बातें  बन  गई  हैं   l   ऐसे  श्रीहीन  समाज में  अनीति ,  आतंक  और  अत्याचार  पनपते  हैं   l  समाज  में  शूरवीरों  की  संख्या  घटने  लगती  है   और  लोगों  में  कायरता  बढ़ने  लगती  है  l   इस  जर्जर  समाज  को  पुनर्जीवित  करने  के  लिए  समर्थ  मार्गदर्शकों  की  आवश्यकता  है  l 

10 November 2017

WISDOM ------ दुःख को सकारात्मक भाव से लिया जाये तो मन सशक्त होता है

    यदि  दुःख  को  सकारात्मक  भाव  से  लिया  जाये  तो  मन  धुलता  है , सशक्त  होता  है  l  महर्षि  अरविन्द  पांडिचेरी  तो  पहुँच  गए  ,  पर  वहां  उनकी  21  दिन  तक  खाने  की  कोई  सही  व्यवस्था  नहीं  हो  पाई  l  कई  बार  तो  मात्र  पानी  पीकर  ही  रह  जाते  थे  l  उनने  मोतीलाल  राय  को  उन  दिनों  एक  पत्र  में  लिखा  था ---- " भगवान  को  अंतिम  समय  में  मदद  करने  की  आदत  पड़  गई  है  l  मेरे  साथ  आये  सभी  कष्ट  में  हैं  ,  पर  यह  भी  तप  है  ,  यह  मानकर  सभी  मेरे  साथ  प्रसन्न  भाव  से  रह  रहे  हैं  l "  उन  दिनों  भी  श्री  अरविन्द  अपनी  दिनचर्या  के  अंतर्गत  नित्य  चार  मील  टहलते  थे  l  छ:  घंटे  साधना  करते  थे  l
    सोच  सकारात्मक  हो  और  ईश्वर  पर  अटूट  विश्वास  हो   तो  दुःख  को  ईश्वरीय  विधान  मानकर  खुशी  से  स्वीकार  करने  से  मन  शान्त  रहता  है  l 

8 November 2017

WISDOM ----- कृपण नहीं उदार बने

  कृपणता  एक  ऐसी  बुद्धिहीनता  है  कि  व्यक्ति  सारी  सुविधाएँ  होते  हुए  भी  स्वयं  क्षुद्रता  के  साथ  जीता  है   और  साथ  ही  किसी  अन्य  का  भी  कोई  लाभ  नहीं  कर  पाता ,  संसाधनों  के  होते  हुए  भी   कृपण  व्यक्ति  अभाव  के  मार्ग  का  चयन  करता  है   l  कृपणता  एक  ऐसी  मानसिकता  है  जो  धन  का  संग्रह  तो  करवाती  है  ,  लेकिन  उसका  उपयोग  करना  नहीं  सिखाती  l
  इस  सम्बन्ध  में  एक  कथा  है ---- एक  गाँव  में  एक  वृद्ध  महिला  थी  जो  अपने  छोटे  से  परिवार  के  साथ  रहती  थी  l  उसके  पास  इतना  खेत  था  कि  एक  वर्ष  की  फसल  तैयार  हो  जाती  थी  l   एक  बार  उसने  धान  का  चावल  करवाया  तो  ज्ञात  हुआ  कि  वर्ष  के  365  दिनों  में  से  364  दिन   का  ही  चावल  है ,  एक  दिन  के  लिए  चावल  कम  पड़  रहा  है  l  उसे  बड़ी  चिंता  हो  गई  कि  इस  एक  दिन  की  कमी  कैसे  पूरी  करे  l बहुत  सोच  कर  उसने  तय  किया  कि    आज  पहले   दिन  भूसी  खा  लें  ,  ताकि  शेष  364  दिन  सुख पूर्वक  कट  जाएँ  l  यह   सोचकर  वह  भूसी  खाकर ,  पानी  पीकर  सो  गई  l  वृद्ध  महिला  के  पेट  में  भूसी  इतनी  फूल  गई  कि  वह  पचा  न  सकी  और  वहीँ  मर  गई   l   
      संग्रहकर्ता  की  सोच  बहुत  संकीर्ण  होती  है    लेकिन  जिन्हें  ईश्वर  पर  विश्वास  है  वे  उदार  बनकर  जीते  हैं   l  जो  कुछ  अपने  पास  है  उसे  जरुरतमंदों  को  देना   उदारता    है  l  उदार रहने  पर  व्यक्ति  को  आंतरिक  संतोष  प्राप्त  होता  है   और  वह  बाहरी  सम्पदा  से  ओत-प्रोत  रहता  है   l 

7 November 2017

WISDOM ---- दुष्कर्म और अहंकार का परिणाम भीषण और भयावह होता है l

  ' सत्ता  होती  ही  ऐसी  है  कि  व्यक्ति  को  यथार्थ  से  परे   सांतवें  आसमान  में  पहुंचा  देती  है  , परन्तु  जब  वह  वहां  से  गिरता  है   तो  उसके  अस्तित्व  का  भी  पता  नहीं   चलता  है   l '
  औरंगजेब  के  क्रूर  अत्याचार  से  सर्वत्र  हाहाकार  मचा  हुआ  था  l  वह  स्वयं  खुदा  बन  बैठा  था  l  जो  कोई  उसकी  खुदाई  को  सलाम  न  करे , उसके  सामने  न  झुके  , वह  उसका  समूल  नाश  कर  देता  था  l  वह  अपने  बड़े  भाई  दाराशिकोह  को  अपना  सबसे  बड़ा  दुश्मन  समझता  था  l  उसने  दाराशिकोह  तथा  उससे  संबंधित  सभी  फकीरों  को  मृत्यु  या  भीषण  दंड  दिया  था  l  अब  इसी  क्रम  में  वह   लाल  बाबा  के  पास  आया  और  अपने  अहंकार  में  चूर  होकर  बोला ---- " बाबा ! तुम  तो  अपने  आप  को  बड़ा  महान  कहते  हो  , देखो  मैंने  दाराशिकोह  और  उसके  बेटे  की  हत्या  कर  दी  ,  उसके  गुरु  शरमन  को  भी  मार  गिराया   l  सुना  है  शर्मन  के  पास  अपार  शक्ति  थी  फिर  भी  वह  मेरा  बाल  बांका  भी  नहीं  कर  सका  l  अब  तुम्हारी  बारी  है   l "
  लाल  बाबा  फ़क़ीर  थे  और  भगवान  के  भक्त  थे   l  अति  निडर  थे ,  उन्होंने  औरंगजेब  के  सिर  पर  एक  छड़ी   मारी  जिससे  वह  कुछ  क्षणों  के  लिए  दिव्य  और  सतरंगी  दुनिया  में  चला  गया  l  उसने  देखा  कि  दाराशिकोह  एक  ऊँचे  सिंहासन  पर बैठा  है, उसके  चेहरे  पर  दिव्य  प्रकाश  है  l     जन्नत  की  पवित्र  आत्माएं    उसकी (औरंगजेब )  की  और  इशारा  कर  कह  रहीं  हैं  कि  यह  कौन  सा  घिनौना , बदबूदार  इन्सान  यहाँ  आ  गया ,  इसे  यहाँ  से  रुखसत  करो   l  दाराशिकोह  के  सामने  उसे  उपेक्षा ,  अपमान  और   तिरस्कार  की  द्रष्टि  से  देखा  जा  रहा  है  l " बाबा  ने   यह    सब  औरंगजेब   के  गरूर  और  दंभ  को  तोड़ने  तथा  दाराशिकोह  के  सत्कर्मों  के  प्रभाव  को  दिखाने  के  लिए  किया  था  l  यह  सब  देख  औरंगजेब  छटपटाने  लगा   l  बाबा  ने  उससे  कहा --- तुम  षड्यंत्र  रचते  हो ,  हत्या  करते  हो  ,  तुम्हे  दोजख  की  आग  में  जलने  से  कोई  नहीं  रोक  सकता  l                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                             

6 November 2017

WISDOM ------ जो ईश्वर से भय खाता है उसे दूसरा भय नहीं सताता l

   भय  का  सबसे  घ्रणित  पहलू  अपने  स्वार्थ  के  लिए  ,  दूसरों  पर  छाये  रहने   की    भावना  से  अधीनस्थ  लोगों  का  शोषण   करना   है  l   वैराग्य शतक  में   भतृहरि  ने  भय  की  स्थिति  का  बड़ा  सूक्ष्म  विश्लेषण   किया  है ---- ' भोग  में  रोग  का भय  है ,  सत्ता  में  गिरने  का  भय ,  धन  में  चोरी  होने  का  भय ,  सौन्दर्य  में  बुढ़ापे  का  भय ,  शरीर  में  मृत्यु  का  भय  l  इस  तरह  संसार  में  सब  कुछ  भय  से  युक्त  है  l   उनके  अनुसार  त्याग  का  मार्ग  ही  निर्भयता  की  अवस्था  की  ओर  ले  जाता  है   l 

5 November 2017

धर्म की सार्थकता इसमें है कि वह उन्नत और सदाचारी जीवन यापन की पद्धति को दर्शा सके ----- खलील जिब्रान

 उनका  कहना  था  कि  ऐसा  धर्म  जो  गरीब  और  असहाय  लोगों  का  गला  काटता  है  ---- धर्म  नहीं  कुधर्म  है   l  उन्होंने  आडम्बर  का  जमकर  विरोध  किया  l  जिस  पूजा पाठ  में   मानवता  को  विकसित  होने  के  द्वार  ही   बंद  कर  दिए  गए  हों  ,  वहां  भला  ईश्वर  की  अनुभूति  कहाँ  संभव  थी   l  धर्म  का   जो  आडम्बर युक्त  स्वरुप   आज  चल  रहा  है   वह  उस  विनाश  और  धरती  पर  निरंतर  बढ़ते  नारकीय  वातावरण   को  रोक  नहीं  सकता   क्योंकि  उसमे  उस  वैचारिक  सम्पदा  और  अध्यात्म  की  प्रेरणा  शक्ति  का  अभाव  होता  है   l 

4 November 2017

गुरु नानक का व्यवहारिक अध्यात्मवाद

 गुरु  नानक  ने  लोगों  को  समझाया  कि   बाह्य  पूजा ,  कर्मकांड ,  परम्पराएँ    धर्म  नहीं  है  ,  धर्म  का  वास्तविक  तत्व  है ---- अपने  आपको  जीतना ,  इन्द्रियों  को  वश  में  रखना ,  सुख - दुःख ,  हानि - लाभ  में  एक  सा  भाव  रखना   l  धर्म  का  सबसे  बड़ा  लक्षण  है  --- सबके  साथ  सेवा , नेकी   और  सच्चाई  का  व्यवहार  करना    और  इन  सबके  साथ  भगवन  को   याद  करते  रहना   l 
  उस  समय  हिन्दुओं  में    अनगिनत  देवी - देवताओं  की  पूजा   और  छुआछूत  का  जंजाल  बढ़  गया  था  ,  उसका  खंडन  उन्होंने  वाणी  और  कर्म    रूप  में  किया  l  उन्होंने  जातिगत  भेदभाव  और  ऊँच - नीच  का  खंडन  किया   l 

3 November 2017

WISDOM ----- अन्दर से अच्छा बनना ही वास्तव में कुछ बनना है l

 ' मनुष्य  का  आंतरिक  स्तर  ऊँचा  उठे  बिना  उसे  उत्तम  स्थिति  का  लाभ  मिलना    संभव  नहीं   हो  सकता  l  '
संसार  में  अनेक  लोग  हैं    जो  धन , वैभव ,  पद ,  ज्ञान   आदि  विभिन्न    क्षेत्रों  में  उच्च  स्तर  पर  पहुँच  जाते  हैं   किन्तु  आंतरिक  स्तर   निम्न  होने  के   कारण   उनके  क्रिया - कलाप ,  उनका  आचरण  निम्न  कोटि  का  ही  रहता  है  l  इस  संबंध  में  पुराण  की  एक  कथा  है ----------
        कीचड़  में  लोटते  और   गंदगी  चाटते  उस  शूकर  को  घिनौना  जीवन  जीते  देख  कर  नारदजी  को  बड़ी  दया  आई  l  वे  उस   शूकर  के  पास  पहुंचे  और  स्नेहपूर्वक  बोले  --- " इस  घिनौनी  रीति  से  जीवन  जीना  अच्छा  नहीं  है ,  चलो  तुम्हे  स्वर्ग  पहुंचा  दें  l  "
 नारदजी  की  बात  सुनकर  वराह  उनके  पीछे - पीछे  चलने  लगा ,  रास्ते  में  उसे  स्वर्ग  के  बारे  में  जानने  की  जिज्ञासा  हुई  तो  पूछ  बैठा ---- "  वहां  खाने , लोटने  और  भोगने  की  क्या - क्या  वस्तुएं  हैं   ? "
 नारदजी  उसे  स्वर्ग  का  मनोरम  वर्णन   विस्तार  से  बताने  लगे  l  उनकी  बात  पूरी  हो  गई  तो  उसने   दूनी  जिज्ञासा  से  पूछा ---- "  खाने  के  लिए  गंदगी ,  लोटने  के  लिए  कीचड़  और  सहचर्या  के  लिए  वराहकुल   है  या  नहीं  ? "
  नारदजी  ने  कहा ---- " मूर्ख  !  इन  निकम्मी  चीजों  की  वहां  क्या  जरुरत   है  ?  वहां  तो  देवताओं  के  अनुरूप  वातावरण  है   और  वैसे  ही  श्रेष्ठ  पदार्थ  सुसज्जित  हैं  l  "
  वराह  को  नारदजी  के  उत्तर  से  कोई  समाधान  नहीं  मिला  l   वह  कह  रहा  था  -- भला   गंदगी ,  गंधयुक्त  कीचड़   और  वराहकुल   के  बिना  भी  कोई  सुख  मिल  सकता  है   ?
  शूकर  ने  आगे  चलने  से   इनकार  कर  दिया  और  वह  वापस  लौट  पड़ा  l
  ' मनुष्य  जीवन  का   अक्षय  श्रंगार  है ---- ह्रदय  की  पवित्रता ,  आंतरिक  श्रेष्ठता   l '

2 November 2017

WISDOM ------- सद्बुद्धि सबसे बड़ी सामर्थ्य

  बुद्धि  तो  सहज  रूप  में   सभी  मनुष्यों  को  प्राप्त  होती  है  --- किसी  को  कम  किसी  को  ज्यादा  l  बुद्धि  प्राप्त  होने  से  भी   अधिक  महत्वपूर्ण  है  -- सद्बुद्धि  का  प्राप्त  होना  l  बुद्धि  यदि  भ्रष्ट  होकर  कुमार्गगामी  बन  जाये   तो  वह  व्यक्ति  का  स्वयं  का  पतन  तो  करती   ही  है ,  उसके  क्रिया - कलाप  समाज  को  भी  क्षति  पहुंचाते  हैं   l 
  मनुष्य  यदि  सद्बुद्धि संपन्न  हो   तो  वह  अपना   निज  का   कल्याण   करने  के  साथ - साथ   समाज  को  भी  अपनी  विभूतियों  से  लाभान्वित  करता  है  l   सद्बुद्धि  ही  संसार  के  समस्त  कार्यों  में  प्रकाशित  है   l 
                           लार्ड  कर्जन   हिन्दुस्तान  के  वायसराय  थे   l     श्री  आशुतोष  मुखर्जी  ( श्यामा प्रसाद  मुखर्जी  के    पिता )  तब  कलकत्ता  विश्वविद्यालय  के  कुलपति  थे   l     उनके  निजी  संग्रह  की   80,000 किताबें  उनके  आवास  में  थीं  l  बड़े  विद्वान  थे  l  लार्ड  कर्जन   उनसे   बड़े   प्रभावित  थे    l  एक  बार   लार्ड  कर्जन  ने  उनसे  कहा ---- " आपको  फेलोशिप  लेने  इंग्लैंड  जाना  है  l "
 उनकी  माँ  ने  मना  कर  दिया   तो   श्री  आशुतोष    मुखर्जी   ने   वायसराय  को  साफ  मना  कर  दिया   और  कहा  --- " माना,  हिन्दुस्तान  का  वायसराय  कह  रहा  है  ,  पर  मेरे  लिए  महत्वपूर्ण  मेरी  माँ  हैं  l  "  वे  नहीं  गए   l  वसीयत  में  वे  सारी  किताबें   अपने  विश्वविद्यालय  को  दान  में  दे  गए   l 

1 November 2017

WISDOM ------ सभी समस्याओं का एक ही समाधान है ------- ' संवेदना '

   ' हर  उस  तरह  का  व्यवहार  ' संवेदना  ' है ,  जिसमें  सबके  प्रति  सम्मान  और  सदाशयता    का  भाव  व्यक्त  होता  है   l '  संवेदनशील  व्यक्ति जड़  वस्तुओं  के  प्रति  भी  इस  तरह  का  व्यवहार  करता  है  जैसे  वे  उसके  अति  आत्मीय  स्वजन  हों  l 
     स्वामी  विवेकानन्द    से   योग  सीखने  आई  एक   युवती   ने  पूछा ---- " मुझे    सिद्धि     प्राप्त  करने  में  कितना  समय  लगेगा  ?  कितने  महीनों  में    मैं  साधना  पूरी  कर  सकुंगी  ? "
     तब  स्वामीजी  ने  इस  प्रश्न  का  उत्तर  देते  हुए  कहा  था  ----- "  तुम्हे  इस  मार्ग  पर  गतिशील  होने  में  कई  जन्म  लगेंगे  l "  इसका  कारण  भी  उन्होंने  तुरंत  बताया  कि ,  '  कक्ष  में  प्रवेश   करने  से  पहले  तुमने  अपने  जूते  ऐसे  उतारे  जैसे  उन्हें  फेंक  रही  हो  ,  कुर्सी   की  बांह  लगभग  मरोड़ते  हुए  अंदाज  में  खींची  और  उस  पर  धमक कर  बैठ  गईं  l  फिर  बैठे - बैठे  ही  इसे  मेज  के  पास   घसीटते  हुए  से  खींचा  और  व्यवस्थित  किया   l '
   स्वामीजी  ने  कहा  कि ,--- हम  जिन  वस्तुओं  को  काम  में   लाते   हैं  ,  जो  हमारी  जीवन - यात्रा  और  स्थिति  में   सहायक  हैं   और  जो  हमारे  व्यक्तित्व  का  ही  एक  अंग  हैं  ,   उनके  प्रति  क्रूरता   हमारी  चेतना  का    स्तर    दर्शाती  है   l  दैनिक  जीवन  में  काम  आने  वाली  वस्तुओं  , व्यक्तियों  और  प्राणियों   के  प्रति  भी  मन  में  संवेदना  नहीं  है  ,  तो  विराट  अस्तित्व  से  किसी  व्यक्ति  का   तादात्म्य  कैसे  जुड़  सकता  है  ?  अपने   आसपास  के  जगत  के  प्रति  जो  संवेदनशील  नहीं  है  ,  वह  परमात्मा  के  प्रति   कैसे  खुल  सकता  है  l ' 
  संवेदना  भाव  ह्रदय  का  विषय  है  l  यह  संवेदना  ही  है  जिसे  हमारा  ह्रदय  दूसरों  के  दुःख - दर्द  से  विचलित  होता  है   और  उसके  निवारण  में  तत्पर  l 
     संवेदना  के  जाप  से   यह  उत्पन्न  नहीं  होती  l  स्वामी  विवेकानन्द  की  परम्परा  में  आचार्यों  ने   संवेदना  जगाने  के  व्यवहारिक  उपाय  सुझाये    --- जब  क्रोध  आये ,  किसी  को  कोसने  का मन  करे   तो  कम  से  कम  इतना  नियंत्रण  कर  लिया  जाये  कि  सम्बंधित  व्यक्ति  के  सामने  कुछ  न  कहकर    मन  ही  मन  आकाश  की  और  देखते  हुए  जो  कहना  हो  कह  दें   l  ऐसे  अभ्यास  से  धीरे - धीरे  कठोरता  समाप्त  होती  है  और  संवेदना  जगती  है   l