31 October 2023

WISDOM ----

     कहते हैं  इस  धरती  पर  जब  भी  कोई  प्राणी  जन्म  लेता  है  तो  विधाता   आते  हैं  और  उसके  माथे  पर  उसका  भाग्य  लिख  कर  जाते  हैं  l  इन  भाग्य  की  रेखाओं  को  मिटाना  असंभव  है  l    अब  वह  व्यक्ति  अपने  पुरुषार्थ  से  अपने  भाग्य  को  कितना  संवार  सकता  है  या  अपने  आलस  से  कितना   बिगाड़  सकता  है  ,  यह  एक   अलग  समस्या  है  l  कलियुग  की  समस्या   कुछ  अजीब  ही  है  ----- अब  लोगों  में  ईर्ष्या , द्वेष , लालच  , महत्वाकांक्षा  इस  कदर  बढ़  गया  है   कि  वे  दूसरे  के  भाग्य  को  चुरा  लेना , छीन  लेना  चाहते  हैं  l  तांत्रिक  और  नकारात्मक  शक्तियों  की  मदद  से  वे  दूसरे  के  सुख  को  छीन  कर  स्वयं  भोगना  चाहते  हैं   l  अपने  धन , शक्ति , अहंकार  और  ज्ञान  के  दुरूपयोग  से  भगवान  को  चुनौती  देते  हैं  l   सर्वशक्तिमान  ईश्वर  के  लेख  को   मिटाने  का  दुस्साहस   करने  का  दुष्परिणाम  यह  होता  है  कि  ऐसे  तांत्रिकों  और  नकारात्मक  शक्तियों  के  साथ  काम  करने  वाले  और  उनका  साथ  देने  वालों  का  जीवन  असहनीय  कष्ट  और   गहन  अंधकार  में  डूबता  जाता  है  l  इसी  सत्य  को  बताने  वाला  एक   प्रसंग  है ----------  महर्षि  वर्ष  तंत्र  विद्या  के  बहुत  बड़े  ज्ञाता  थे  l  उनके  दो  शिष्यों  --व्याडि   और  इन्द्रदत्त  ने  उनसे  निवेदन   और  हठ  किया  वे  यह  गूढ़  विद्या  उन्हें  सिखा  दें  l  महर्षि  ने  उन्हें  बहुत  समझाया  कि   इस  विद्या  के  लिए  अपने  अंत:करण  को  शुद्ध  बनाना  पड़ता  है , सद्गुण  और  सन्मार्ग  पर  चलने  की  साधना  करनी  पड़ती  है  , अन्यथा  दुरूपयोग  की  संभावना  रहती  है  l   लेकिन  दोनों  शिष्यों  के  बहुत  तर्क  और  हठ  करने  पर  महर्षि  ने  सोचा  कि  कहीं  यह  विद्या  लुप्त  न  हो  जाये   और   उन  शिष्यों  के  कहने  पर  कि  वे  इस  विद्या  का  उपयोग  विश्व कल्याण  के  लिए  करेंगे   तब  महर्षि  ने   उन्हें  अनेक  योग , आसन  ,प्राणायाम , हठ  योग , परकाया  प्रवेश , अन्य  लोकों  में  अभिगमन  आदि  अनेक  गूढ़  विद्या  सिखा  दीं  l  दोनों  शिष्य  सब  सीखकर  इनके  बहुत  बड़े   ज्ञानी  बन  गए  l   जब  घर  चलने  का  समय  हुआ   तो  शिष्यों  ने  गुरु  से  कहा कहा  --- 'हम  आपको  गुरु  दक्षिणा    में  क्या  दें  ? '   गुरु  ने  कहा  ---- तुम    देश  , संस्कृति  और  विश्व कल्याण  के  लिए   कार्य  कर   इस  ज्ञान  को  सार्थक  करो  l   लेकिन  शिष्यों  को  तो  अपने  ज्ञान  का  अहंकार  था , उन्होंने  गुरु  से  कोई  भौतिक  वस्तु  मांगने  को  कहा  l  शिष्यों  की  जिद्द  पर  गुरु  ने  कहा ---- "  ठीक  है   तुम  एक  हजार  स्वर्ण  मुद्राएँ  लाकर  दो  , जिनसे  इस  आश्रम  का  जीर्णोद्धार   हो  सके  l "   दोनों  शिष्यों  में  बहुत  अहंकार  था  ,  परिश्रम  और  सही  दिशा   से   धन  कमाने  की  बजाय   वे  कोई  तरकीब  सोचने  लगे  , जिससे  तुरत -फुरत  धन  आ  जाये  l   जिस  दिन  वे  ऐसी  मंत्रणा  कर  रहे  थे  उसी  दिन  मगध  सम्राट  नन्द  की  मृत्यु  हो  गई  l    उन  दोनों  शिष्यों  ने  वररुचि  नामक  व्यक्ति  को  अपना  मित्र  बनाया   और  यह  तय  किया  कि  इन्द्रदत्त   मगध  सम्राट  नन्द  के  शरीर  में  परकाया  प्रवेश  करे  ,  फिर  इन्द्रदत्त  के  शव  की  रक्षा  व्याडि  करे  और  जब  इन्द्रदत्त  की   आत्मा   नन्द  के  शरीर  में  पहुँच  जाये  ,  तब  वररुचि  जाकर  उनसे   एक  हजार  स्वर्ण  मुद्राएँ  मांग  लाए   जिससे  गुरु  दक्षिणा  चुका  दी  जाए   और  अपने  लिए  भी  धन  प्राप्त  हो  जाये  l  सब  व्यवस्था  कर  ली  , फिर  जैसे  ही  इन्द्रदत्त  ने  अपने  शरीर  से  प्राण  निकाल  कर  नन्द  के  शरीर  में  प्रवेश  किया  , मगध  सम्राट  नन्द  जी  उठे   ,  सारी  जनता  चकित  रह  गई  l  इस  रहस्य  को  और  कोई  तो  नहीं  जान  पाया  ,  पर  नन्द  का  मंत्री  शकटारी   बहुत  बुद्धिमान  था  , वह  सारी  स्थिति  समझ  गया  l  उसने  तत्काल  पता  लगाकर   इन्द्रदत्त  के  शव  का   दाह   संस्कार  करा  दिया ,  व्याडि  को  बंदी  बनाकर  कारागृह  में  डाल  दिया  l  अब   इन्द्रदत्त  के  शरीर  का  तो  दाह  हो  चुका  था  इसलिए  इन्द्रदत्त   नन्द  के  शरीर  में  ही  रह रह  गया   और  भोग  वासनाओं  में  डूब  गया   और  चन्द्रगुप्त  के  हाथों  मारा  गया  और   व्याडि   कारागृह  में  यातनाओं  से  मर  गया  l    जो  योग  विद्या  जन  कल्याण  के  उदेश्य  से  सिखाई  गई  थी  वह  अहंकार  के  कारण  अपने  साधकों  को  ही  ले  डूबी  l  ------ ये  गूढ़  विद्या  है  l  व्यक्ति   स्वयं  ऐसा  ज्ञान  प्राप्त  कर  के  या  ऐसी  विद्या  के  जानकार  की  मदद  लेकर    परिवार  , समाज  से  लुक छिपकर   बहुत  अनर्थ  करता  है   लेकिन  अपनी  आत्मा  से  और  ईश्वर  की  निगाह  से  बच  नहीं  पाता   l  काल  के  अनुसार  निर्धारित  समय  पर  वह  अपने  किए  का  घोर  दंड  पाता  है  l