14 January 2020

WISDOM ------ परमात्मा द्वारा प्रदत्त इस मानव जीवन का सदुपयोग ही उसका सम्मान करना है

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है ---- '  वे  सारे  कर्म  जिनसे  आत्मा  का  विकास  हो  , परमात्मा  का  सामीप्य  प्राप्त  हो  और  संसार  का  हित - साधन  हो  ,  जीवन  का  सदुपयोग  है  ---- स्वार्थ   त्याग       कर    परमार्थ   करना  , अभाव  एवं   आवश्यकता  से  पीड़ित  व्यक्तियों  की  सहायता  करना , , दींन - दुःखियों , निरुपाय  एवं   रोगी  जनों  की  सेवा  करना  ,  अपने  धन , अपने  पुरुषार्थ , अपनी  शक्ति , अपनी  योग्यता  को  समाज  की  उन्नति  तथा  विकास  में  लगाना   ही  जीवन  का  सदुपयोग  करना  है   l   संवेदना , सौहार्द , दया , करुणा , प्रेम   तथा  क्षमा  भावों   का  अपनी  आत्मा  में  विकास  करना  ही  मानव  जीवन  का  सम्मान  करना   है  l    इन   सब   सद्गुणों   से  संपन्न  मनुष्य  ही  देवतुल्य  है  l 
    इसके  विपरीत     सारे    कर्म  और  सारे   मंतव्य  जीवन  का  दुरूपयोग  हैं  , उसको  नष्ट  करना  है  l   अपनी  हीन   तथा  निम्न  वृत्तियों  को  तुष्ट  करने  के  लिए   लोग  प्राय:  अहंकार  का  पालन  किया  करते  हैं  ,  उनके  अहंकार  के  नीचे  दबकर  कितने  ही   निरपराध  और  असहाय  लोगों  का  बलिदान  हो  जाता  है  l   दूसरे  की  उन्नति  तथा  प्रगति  देख  जल  उठना  ,  दूसरे  के  विकास  में  बाधा  डालना  ,  अपनी  दुर्बलता  पर  जरा  सा  आघात  पाकर  सर्प  की   तरह  कुपित  होकर   अपना  अथवा  पराया  अनिष्ट  कर  डालने  को  तत्पर  होना --- यह  सब  आसुरी  और  अमानवीय  प्रवृतियां  हैं   l   ऐसे  लोगों  को  न  तो  इस  लोक  में  शांति  व  संतोष  है   और  न  ही  परलोक  में  सद्गति  है  l
  आचार्य  श्री  ने  लिखा  है  --- ईश्वर  ने  प्रत्येक  मनुष्य  को  चयन  की  स्वतंत्रता  दी  है  l   देवता  बनना  अथवा  असुर  बनना   यह  मनुष्य  की  इच्छा  पर  निर्भर  है  l
  मनुष्य  अपने  कर्मों  से  ही  अपना  भाग्य  लिखता  है  ,  कहा  भी  गया  है ---- ' कर्म प्रधान  विश्व  रचि   राखा ,  जो  जस  करहि    सो  तस  फल  चाखा  l '