' सेवा कर्म ही सर्वकालीन युग धर्म है । अध्यात्म का मर्म यही है । '
ईसा को भक्त जनों की एक बड़ी सभा में प्रवचन करने जाना था । जाते समय रास्ते में एक बीमार मिला । वे उसकी सेवा में लग गये । देर होते देख कर उपस्थित लोग उन्हें खोजने निकले तो उन्हें पीड़ित की सेवा में संलग्न पाया । सभा के लोग वहीँ एकत्रित हो गये । ईसा ने कहा --" कथनी से करनी श्रेष्ठ है । तुम सेवा धर्म अपनाओ , तो वह आनंद सहज ही प्राप्त कर सकोगे , जिसे पाने के लिये यहां आये हो ।
ईसा को भक्त जनों की एक बड़ी सभा में प्रवचन करने जाना था । जाते समय रास्ते में एक बीमार मिला । वे उसकी सेवा में लग गये । देर होते देख कर उपस्थित लोग उन्हें खोजने निकले तो उन्हें पीड़ित की सेवा में संलग्न पाया । सभा के लोग वहीँ एकत्रित हो गये । ईसा ने कहा --" कथनी से करनी श्रेष्ठ है । तुम सेवा धर्म अपनाओ , तो वह आनंद सहज ही प्राप्त कर सकोगे , जिसे पाने के लिये यहां आये हो ।