8 March 2023

WISDOM ------

   काल  की  महिमा ----- विद्वानों  ने  काल  को  दुरितक्रम   कहा  है  l  बड़े  वेग  से  दौड़ने  पर  भी  कोई  काल  को   लाँघ  नहीं  सकता  l    हम  सब  काल  के  आधीन  हैं  ----इस  सत्य  को  समझाने  वाली  पुराण  की  एक  कथा  है  ----   भगवान  वामन  ने   तीन  पग  में    राजा  बलि   से   पृथ्वी  और  स्वर्ग  का  राज्य   छीनकर    इंद्र  को  दे  दिया  l  साम्राज्य  पाकर   इंद्र  को  अहंकार  हो  गया  l  उनके  पास  सब  कुछ  था  ,  लेकिन  मन  से    बलि  के  प्रति  द्वेष    न  गया  l  कहीं  न  कहीं  उनके  मन  में  अपने  सिंहासन  को  खोने  का  भय  भी  था  l  वे  अपने  वज्र  के  प्रहार  से  बलि  का  वध  करना  चाहते  थे  l  उन्होंने  ब्रह्मा जी  से  उनका  ठिकाना  जानना  चाहा  l  ब्रह्मा जी  ने  कहा --- "  तुम्हारा  उदेश्य  ठीक  नहीं  है  l  तुम  उनका  वध  करने  की   कोशिश  भी  नहीं  करना  l  राजा  बलि  भगवान  नारायण  के  भक्त  हैं   और  उन्हें  उनका  संरक्षण  प्राप्त  है  l  इस  समय  वे  विभिन्न  पशु  रूप  में  वनों  में  भ्रमण  कर  रहे  हैं  l  उनका  अहित  करने  की  चाह  में  तुम  स्वयं  का  अहित  कर  लोगे  l  "  लेकिन  अहंकारी  को  किसी  की  सलाह  समझ  में  नहीं  आती l   देवराज  इंद्र  ने  अपने  सम्पूर्ण  वैभव  को  प्रदर्शित  करने  वाला  वेश  धारण  किया   और  ऐरावत  पर  चढ़कर  बलि  की  खोज  में  निकल  पड़े  l  एक  वन  में  एक  गधे  के  लक्षणों  को  देखकर  उन्होंने  अनुमान  लगा  लिया  कि  यही  राजा  बलि  है  l  इंद्र  ने  कहा --- " दानवराज  !  आज  ना  तो  तुम्हारे  पास  राज्य  है , न  ही  ऐश्वर्य  l  क्या  तुम्हे  अपनी  इस  दुर्दशा  पर  दुःख  नहीं  होता  l "  इस  पर  बलि  ने  कहा --- "  देवेन्द्र  !  मुझे  ज्ञात  है  कि  तुम  यहाँ  पर  मेरा  उपहास  करने   आए  हो   क्योंकि  तुम  जीवन  के  रहस्य  को  नहीं  जानते  l  जीवन  में  कुछ  भी  स्थिर  नहीं  है  l  तुम  जिस  ऐश्वर्य , वैभव  तथा  राजलक्ष्मी  का  प्रदर्शन  करने  आए  हो  ,  वह  अभी  कल  तक  मेरे  पास  थी  l  देवता , पितर , गन्धर्व , मनुष्य , नाग , राक्षस  सब  मेरे  आधीन  थे   l  पर  काल  के  प्रभाव  से   आज  न  तो  मेरे  पास  कोई  प्रभुता  है  और  न  कोई  प्रभुत्व  l  संभव  है  यह  ऐश्वर्य  , वैभव  कल  तुम्हे  छोड़कर  कहीं  और  चला  जाये  l  काल  के  इस  रहस्य  को  जानकर  ,  मैं  तनिक  सा  भी  दुःखी  नहीं  होता  l  "  बलि  कहते  हैं --- " हे  इंद्र  ! तुम  इस  सत्य  के  साक्षी  हो  कि  रणभूमि  में   मेरे  एक  ही  घूँसे  के  प्रहार  से   तुम्हारा  यह  ऐरावत  और  स्वयं  तुम  भाग  खड़े  हुए  थे  l  लेकिन  यह  समय  पराक्रम  दिखाने  का   नहीं  सहन  करने  का  है  l  इस  अवस्था  में  भी  मैं  बहुत  निश्चिन्त  हूँ  और  गधे  के  रूप  में  भी  अध्यात्म  में  निरत  हूँ  l  "   राजा  बलि  के   अपार   धैर्य  और  सहनशीलता  को  देखकर  इंद्र  को  अपनी  कुटिलता  पर  पछतावा  हुआ  , वे  बोले --- " दानवराज  ! तुम्हारे  वचनों  ने  मुझे  जीवन  का  मर्म  सिखाया  ,  तुम्हारा  जीवन  जीवमात्र  के  लिए  सीख  है  l