25 July 2019

WISDOM -----

 पुराणों  में  एक  कथा  है -- लवणासुर  दैत्य  की  l  इसके  पिता  का  नाम  था -- मधु ,  यह  दैत्य  होते  हुए  भी   बहुत  दयालु  ,  भगवद भक्त  और  सद्गुण  संपन्न  था  l  उसकी  तपस्या  से  प्रसन्न  होकर   शंकर  भगवान  ने  उसे  वरदान में  अपना  त्रिशूल  दिया   और  कहा  -- जब  तक  यह  त्रिशूल  तुम्हारे  पास  है  तब  तक  कोई  तुम्हे  जीत  नहीं  सकेगा  l  मधु  ने  प्रार्थना  की  कि  यह  त्रिशूल  सदा  उसके  वंश  में  रहे  l  तो  शंकर  जी  ने  कहा --- ऐसा  संभव  नहीं  है  l  यह  तुम्हारे  एक  पुत्र  के  पास  रहेगा  l
  महान  शक्ति  के  प्रतीक  त्रिशूल  को  पाकर  मधु  ने  उसका  सदुपयोग   कमजोरों  की  रक्षा ,  विपत्ति  निवारण   और  राज्य  में  सुख - शांति के  लिए  किया  l  उसकी  मृत्यु  के  बाद  यह  त्रिशूल  उसके  पुत्र  लवणासुर  के  पास आ  गया  l  वह  बहुत  क्रोधी , निर्दयी  और  दुराचारी  था  l  त्रिशूल  पाकर  उसकी  दुष्प्रवृत्तियां  और  बढ़  गईं  l  जब  दुष्ट   व्यक्तियों  के  हाथ  में  सत्ता  एवं    शक्ति   आ  जाये  तो  वे  उसका  दुरूपयोग  ही   करते  हैं  l 
उस  समय  अयोध्या  में  भगवान  श्रीराम  का  राज्य  था  l सभी  ऋषियों  आदि  ने  भगवान  राम  को  यह  करुण  गाथा  सुनाई l  भगवान  राम  ने  कहा -- लवणासुर  के  पास  शिवजी  का  त्रिशूल  है , उसके  रहते  उसे  हराना  असंभव  है  l  ऋषियों व  विद्वानों  ने  कहा -- ' राजा  को  तो  साम , दाम , दंड -भेद  आदि  सभी  नीतियों  से  काम  लेना  चाहिए   क्योंकि  यदि  अनाधिकारी  व्यक्ति  को  सत्ता  एवं  शक्ति  प्राप्त  हो  जाये  और  वह  उसका  दुरूपयोग  करे  तो  उसे  किसी  भी  तरह  रोकने  में  संकोच  नहीं  करना  चाहिए  l '  ऋषियों  ने  बताया  कि  प्रात:काल  जब  लवणासुर  आहार  के  लिए  जाता  है  तब  वह  अपने  साथ  त्रिशूल  नहीं  ले  जाता  , उसी  समय  उसे  मारा  जा  सकता  है  l  
भगवान राम   ने  इस  कार्य  के  लिए  शत्रुध्न  को  आज्ञा  दी  l  जब  लवणासुर आहार  के  लिए  गया  तो  शत्रुध्न  महल  के  दरवाजे  पर  खड़े  हो  गए  , उसके  लौटने  पर  उसे  युद्ध  के  लिए  ललकारा  l  लवणासुर  ने  कहा --- 'नि:शस्त्र  को  युद्ध  के  लिए  ललकारना  नीति  के  विरुद्ध  है  l '  तब  शत्रुध्न  ने  कहा ---'यदि  तुमने  नीति  का  पालन  किया  होता  तो  तुम्हारे  साथ  भी  नीति  से  काम  लिया  जाता  l '  दोनों  में  भयंकर  युद्ध  हुआ  , अंत  में  लवणासुर  मारा  गया  और  त्रिशूल  शिवजी  के  पास  लौट  गया  l  फिर  श्री राम  ने  शिवजी  से  प्रार्थना  की  कि  --आप  भोलेनाथ  हैं   लेकिन  कृपा  कर  के  भविष्य  में  ऐसे  अनुत्तरदायी  व्यक्तियों  तक  शक्ति  और  सत्ता  न  पहुँचने  दे  ,  इससे  शक्ति  व  सत्ता  का  दुरूपयोग  होता  है  l