महाभारत में एक प्रसंग है ---- महारथी कर्ण के पास जन्मजात कवच और कुण्डल थे , जिनके रहते उसे परास्त करना असंभव था l अर्जुन की सुरक्षा के लिए देवराज इन्द्र ने कर्ण से दान में उसके कवच - कुण्डल मांगने का निश्चय किया l कर्ण महादानी और सूर्यपुत्र था l अत: रात्रि में सूर्यदेव कर्ण के पास आये और कहा -- पुत्र ! प्रात: देवराज इंद्र वेश बदलकर तुम्हारे पास कवच - कुण्डल मांगने आएंगे , तुम उन्हें मना कर देना , इनके रहते तुम्हे कोई पराजित नहीं कर सकता , इसलिए तुम उन्हें कवच - कुण्डल नहीं देना l " लेकिन कर्ण ने उनकी बात नहीं मानी और अर्जुन के साथ युद्ध में पराजित हो वीरगति को प्राप्त हुआ l
आज भी ईश्वर हमें समय - समय पर विभिन्न रूपों में समझाने आते हैं , सचेत करने आते हैं लेकिन मनुष्य अपने अहंकार , लालच , तृष्णा में इतना डूबा हुआ है कि प्रकृति के संदेश को , उसकी चेतावनी को नहीं समझ रहा और स्वयं अपना अंत करने पर उतारू है l
महामारी का कहर , दो बार समुद्री तूफान , कई बार भूकंप , फिर टिड्डी दल का आक्रमण --- यह सब बड़े खतरे की चेतावनी है , प्रकृति हमें समझा रही है कि विज्ञान अपनी मर्यादा में रहे , प्रकृति को जीतने का प्रयास न करे l मनुष्य अपने लोभ - लालच पर नियंत्रण रखे l अति हर चीज की बुरी है , धन का अति लालच , गुलाम बनाने की प्रवृति , अत्याचार - अन्याय -- इन सब की अति प्रकृति को बर्दाश्त नहीं है l मनुष्य जागे , अन्यथा शिवजी के तीसरे नेत्र को खुलने से कोई नहीं रोक सकता l
आज भी ईश्वर हमें समय - समय पर विभिन्न रूपों में समझाने आते हैं , सचेत करने आते हैं लेकिन मनुष्य अपने अहंकार , लालच , तृष्णा में इतना डूबा हुआ है कि प्रकृति के संदेश को , उसकी चेतावनी को नहीं समझ रहा और स्वयं अपना अंत करने पर उतारू है l
महामारी का कहर , दो बार समुद्री तूफान , कई बार भूकंप , फिर टिड्डी दल का आक्रमण --- यह सब बड़े खतरे की चेतावनी है , प्रकृति हमें समझा रही है कि विज्ञान अपनी मर्यादा में रहे , प्रकृति को जीतने का प्रयास न करे l मनुष्य अपने लोभ - लालच पर नियंत्रण रखे l अति हर चीज की बुरी है , धन का अति लालच , गुलाम बनाने की प्रवृति , अत्याचार - अन्याय -- इन सब की अति प्रकृति को बर्दाश्त नहीं है l मनुष्य जागे , अन्यथा शिवजी के तीसरे नेत्र को खुलने से कोई नहीं रोक सकता l