20 August 2019

WISDOM------

 एक  बार  एक  राज्य  में  एक  राजा ने   धन  संचय  के  उद्देश्य  से  प्रजा  पर बहुत   सारे  कर  लगा  दिए  , जिससे  प्रजा  की  आर्थिक  स्थिति  खराब  हो  गई  l  कुछ  समय  बाद  राज्य  में  सुखा  पड़ा  , लोग  भूखों  मरने  लगे  ,  किन्तु  राजा  का मन  तब  भी  द्रवित  नहीं  हुआ  l  वह  अपने  संचित  धन  में  से  कुछ  भी  खर्च  करना  नहीं  चाहता  था  l उन्ही  दिनों  एक  महात्मा  उस  राज्य  में  पहुंचे  l  प्रजा  की  दुर्दशा  देखकर  वे  राजमहल  में  राजा  से  मिलने  पहुंचे  l  महात्मा  को  देखकर  राजा  बोला --- महात्मन  ! मैं  आपकी  क्या  सेवा  कर  सकता  हूँ  ? " 
 महात्मा  बोले ---- "राजन  ! मेरा  अंतिम  समय  निकट  आ  गया  है  और  मेरी  इच्छा  है  कि  परलोक  जाकर  वैभवपूर्ण  जीवन  व्यतीत  करूँ  l "  राजा  बोला --- " महात्मन  !  आप  इतना  भी  नहीं जानते  कि  परलोक  में  कुछ  भी  नहीं  लेकर  जाया  जा  सकता  है  ? "
 महात्मा  मुस्कराते  हुए  बोले  --- " आप  ठीक  कहते   हैं  राजन  !  वहां  खाली  हाथ  ही  जाना  पड़ता  है  , परन्तु  फिर  आप  क्यों  धन  संचय  कर  रहे  हैं   ?  आप  प्रजापालक  हैं  , प्रजा  भूखों  मर  रही  है  l  यदि  यह  धन  उसके काम  न  आ  सका   तो  इसे  धन  का  क्या  लाभ  ? "
 साधु  की बात  सुनकर  राजा  को  अपनी  भूल का   एहसास  हो  गया  l  उसने   महात्मा  से  क्षमा  मांगी   और  धन - सम्पदा  को  प्रजा  के  कल्याण  में  खर्च  करना  आरम्भ  कर  दिया   l