एक बार एक राज्य में एक राजा ने धन संचय के उद्देश्य से प्रजा पर बहुत सारे कर लगा दिए , जिससे प्रजा की आर्थिक स्थिति खराब हो गई l कुछ समय बाद राज्य में सुखा पड़ा , लोग भूखों मरने लगे , किन्तु राजा का मन तब भी द्रवित नहीं हुआ l वह अपने संचित धन में से कुछ भी खर्च करना नहीं चाहता था l उन्ही दिनों एक महात्मा उस राज्य में पहुंचे l प्रजा की दुर्दशा देखकर वे राजमहल में राजा से मिलने पहुंचे l महात्मा को देखकर राजा बोला --- महात्मन ! मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ? "
महात्मा बोले ---- "राजन ! मेरा अंतिम समय निकट आ गया है और मेरी इच्छा है कि परलोक जाकर वैभवपूर्ण जीवन व्यतीत करूँ l " राजा बोला --- " महात्मन ! आप इतना भी नहीं जानते कि परलोक में कुछ भी नहीं लेकर जाया जा सकता है ? "
महात्मा मुस्कराते हुए बोले --- " आप ठीक कहते हैं राजन ! वहां खाली हाथ ही जाना पड़ता है , परन्तु फिर आप क्यों धन संचय कर रहे हैं ? आप प्रजापालक हैं , प्रजा भूखों मर रही है l यदि यह धन उसके काम न आ सका तो इसे धन का क्या लाभ ? "
साधु की बात सुनकर राजा को अपनी भूल का एहसास हो गया l उसने महात्मा से क्षमा मांगी और धन - सम्पदा को प्रजा के कल्याण में खर्च करना आरम्भ कर दिया l
महात्मा बोले ---- "राजन ! मेरा अंतिम समय निकट आ गया है और मेरी इच्छा है कि परलोक जाकर वैभवपूर्ण जीवन व्यतीत करूँ l " राजा बोला --- " महात्मन ! आप इतना भी नहीं जानते कि परलोक में कुछ भी नहीं लेकर जाया जा सकता है ? "
महात्मा मुस्कराते हुए बोले --- " आप ठीक कहते हैं राजन ! वहां खाली हाथ ही जाना पड़ता है , परन्तु फिर आप क्यों धन संचय कर रहे हैं ? आप प्रजापालक हैं , प्रजा भूखों मर रही है l यदि यह धन उसके काम न आ सका तो इसे धन का क्या लाभ ? "
साधु की बात सुनकर राजा को अपनी भूल का एहसास हो गया l उसने महात्मा से क्षमा मांगी और धन - सम्पदा को प्रजा के कल्याण में खर्च करना आरम्भ कर दिया l