बात उन दिनों की है जब मराठों का दबदबा सारे भारत में माना जाता था l एक बार उनके एक मित्र राज्य ने शत्रु के आक्रमण का मुकाबला करने के लिए सहायता हेतु बुलाया l बालाजी पेशवा के सेनापतित्व में मराठों की सेना मित्र राज्य की सहायता के लिए चल दी l मार्ग में पड़ाव डाला गया l आसपास चारों ओर किसानो के खेत थे l सेनापति ने सचेत कर दिया कि किसानो की फसल को कोई हानि न पहुंचाई जाये l एक दिन सेनानायक कहीं गए थे , कुछ उद्दंड सैनिकों ने कुछ खेतों की फसल काट ली और अपने घोड़ों को खिला दी l
बेचारे किसान रोते हुए शिविर में आये , उस समय सेनापति नहीं थे अत: उन्होंने अपनी व्यथा बाजीराव से कही l किसानों पर हुआ यह अत्याचार बाजीराव से सहन नहीं हुआ और जाँच के लिए वह स्वयं किसानो के साथ उस जगह आये तो देखा कि किसानों की मेहनत से तैयार की गई फसल घोड़ों के सामने पड़ी है l उन्होंने सैनिकों को बुरी तरह फटकारा l
ये सैनिक मल्हारराव होल्कर के थे जो स्वयं को बाजीराव से वरिष्ठ तथा ऊँचा समझते थे l उन्होंने बाजीराव को अपने सैनिकों को फटकार लगाते देखा तो उनसे सहन नहीं हुआ , इसे उन्होंने अपना अपमान समझा और पास ही पड़ा एक बड़ा सा पत्थर बाजीराव पर दे मारा l निशाना चूक गया लेकिन पत्थर सर से रगड़ खाता हुआ निकला इस कारण उनके माथे से खून बहने लगा l
सेनानायक जब शिविर में वापस लौटे तो अधिकारियों के साथ बैठक की --- स्पष्टत: दोष मल्हारराव का था l सैनिकों को दण्डित किया गया और मल्हारराव के संबंध में निर्णय लिया कि वे बाजीराव से क्षमा मांगे l मल्हारराव ने इसे सामूहिक अपमान समझा l उस समय तो उन्होंने क्षमा मांग ली , पर मन में यह गांठ बाँध ली कि इस अपमान का बदला बाजीराव से अवश्य लेना है l उसके मन में प्रतिशोध की आग जल रही थी , जिसे वह बाजीराव को मार कर बुझाना चाहता था l
एक दिन जब बाजीराव टहलने जा रहे थे तो मल्हारराव ने मौका देखकर तलवार निकाल ली और बाजीराव को रोकते हुए कहा ---" आज मैं अपने अपमान का बदला ले कर रहूँगा l"
बाजीराव के पास भी तलवार थी , वे मल्हारराव की अपेक्षा शक्तिशाली भी थे , चाहते तो उहा से दंड दे सकते थे पे उन्होंने मल्हारराव के पास पहुंचकर कहा ---- " मल्हारराव ! तुम वीर हो और हम सब एक लक्ष्य को लेकर निकले हैं l सोचो हम लड़ेंगे तो इससे हम लोगों में फूट पड़ेगी l मुझे मार कर ही तुम शान्त हो सकते हो तो मार डालो पर मराठा जाति के लक्ष्य मार्ग में फूट के कांटे मत डालो l " इस दूरदर्शिता पर मल्हारराव पिघल उठा l उसने एकांत में बाजीराव से सच्ची क्षमा मांगी इस प्रकार दूरदर्शिता से आपसी बैर का नाश हुआ l
बेचारे किसान रोते हुए शिविर में आये , उस समय सेनापति नहीं थे अत: उन्होंने अपनी व्यथा बाजीराव से कही l किसानों पर हुआ यह अत्याचार बाजीराव से सहन नहीं हुआ और जाँच के लिए वह स्वयं किसानो के साथ उस जगह आये तो देखा कि किसानों की मेहनत से तैयार की गई फसल घोड़ों के सामने पड़ी है l उन्होंने सैनिकों को बुरी तरह फटकारा l
ये सैनिक मल्हारराव होल्कर के थे जो स्वयं को बाजीराव से वरिष्ठ तथा ऊँचा समझते थे l उन्होंने बाजीराव को अपने सैनिकों को फटकार लगाते देखा तो उनसे सहन नहीं हुआ , इसे उन्होंने अपना अपमान समझा और पास ही पड़ा एक बड़ा सा पत्थर बाजीराव पर दे मारा l निशाना चूक गया लेकिन पत्थर सर से रगड़ खाता हुआ निकला इस कारण उनके माथे से खून बहने लगा l
सेनानायक जब शिविर में वापस लौटे तो अधिकारियों के साथ बैठक की --- स्पष्टत: दोष मल्हारराव का था l सैनिकों को दण्डित किया गया और मल्हारराव के संबंध में निर्णय लिया कि वे बाजीराव से क्षमा मांगे l मल्हारराव ने इसे सामूहिक अपमान समझा l उस समय तो उन्होंने क्षमा मांग ली , पर मन में यह गांठ बाँध ली कि इस अपमान का बदला बाजीराव से अवश्य लेना है l उसके मन में प्रतिशोध की आग जल रही थी , जिसे वह बाजीराव को मार कर बुझाना चाहता था l
एक दिन जब बाजीराव टहलने जा रहे थे तो मल्हारराव ने मौका देखकर तलवार निकाल ली और बाजीराव को रोकते हुए कहा ---" आज मैं अपने अपमान का बदला ले कर रहूँगा l"
बाजीराव के पास भी तलवार थी , वे मल्हारराव की अपेक्षा शक्तिशाली भी थे , चाहते तो उहा से दंड दे सकते थे पे उन्होंने मल्हारराव के पास पहुंचकर कहा ---- " मल्हारराव ! तुम वीर हो और हम सब एक लक्ष्य को लेकर निकले हैं l सोचो हम लड़ेंगे तो इससे हम लोगों में फूट पड़ेगी l मुझे मार कर ही तुम शान्त हो सकते हो तो मार डालो पर मराठा जाति के लक्ष्य मार्ग में फूट के कांटे मत डालो l " इस दूरदर्शिता पर मल्हारराव पिघल उठा l उसने एकांत में बाजीराव से सच्ची क्षमा मांगी इस प्रकार दूरदर्शिता से आपसी बैर का नाश हुआ l