4 September 2018

WISDOM ----- मन को सशक्त बनाकर प्रतिकूलताओं में भी हम अपना अस्तित्व बनाये रख सकते हैं और स्वस्थ बने रह सकते हैं

पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने   लिखा  है     ---- " मन  मुख्य   है     और  शरीर  गौण  l  मन   की    समझदारी  से  ही  शरीर  की  अस्त व्यस्तता  दूर  हो  सकती  है  l     शरीर  के  परिपुष्ट  होने  से   मनोविकार  दूर   नहीं  किये  जा  सकते  l  शरीर की  सामर्थ्य  तुच्छ  है  ,   मन की  महान   l   मन  का  शासन शरीर  पर  ही  नहीं ,  जीवन  के  प्रत्येक  क्षेत्र  पर  है  l  "
पुस्तकीय  ज्ञान ,  भाषण ,  सेमिनार  आदि   की  अपनी  उपयोगिता  है   लेकिन   यह  बहिरंग  की  शिक्षा  है  ,  इससे मन  की  शक्ति  को  नहीं  बढाया  जा  सकता   l  भगवान  गीता  में  कहते  हैं  कि  अपने  मनोबल  को  बढ़ाने के  लिए  मनुष्य  को  स्वयं  ही  प्रयास  करना  होगा  l  अपनी  आदतों , कामना , वासना ,  ईर्ष्या , द्वेष  आदि  विकार ,  जो  मनुष्य  को  पतन  की  और  ले  जाते  हैं  ,  इन्ही  विकारों  से  स्वयं  को  बचाना  होगा  l  
         जिनका  भोगवादी  चिंतन  हैं  वे  कहते  हैं ---- परिस्थितियां  ठीक  कर  दो ,  मन  स्वत:  ही  ठीक  हो  जायेगा  l  यदि  ऐसा  होता  तो  वे  देश  जहाँ  सारी  भौतिक  सुख  सुविधाएँ  हैं  ,  अनुकूल  वातावरण  है ,  स्वच्छता  है ,  वहां  लोगों  का  मन  इतना  अशांत  क्यों  है  ?  इतने  मनोरोग ,  डिप्रेशन  के  रोगी  क्यों  बढ़  रहे  हैं   ?      चाहे  कितने  भी  अनुकूल  साधन  हमें  जुटाकर  दे  दो  ,  लेकिन  यदि   हमारी  मन:  स्थिति  कमजोर  है   तो  इनसे  कुछ  भी  लाभ  न  होगा  l    ये  सब  सुख सुविधाएँ  कमजोर  मन: स्थिति  के  लोगों  को  अपयश  और  वासनात्मक  जीवन  की  और  धकेल  देंगी   l 
 हमारा  मन  ही  हमारा  मित्र  है  ,  अपने  आपको  नीचे  नहीं  गिरने  देना  चाहिए  l