संत एकनाथ का निरासक्त जीवन एक लोक - शिक्षक का जीवन था l एकनाथ जी ने दादा - दादी के निधन के बाद ब्राह्मणों को आमंत्रित किया , ताकि उन्हें भोजन कराया जा सके l वहां नजदीक से कुछ हरिजन निकल रहे थे l भोजन की सुगंध से एक बोल उठा ----- " क्या यह हमारे भाग्य में नहीं है ? " दूसरा बोल उठा --- " यह कहाँ हमें मिलेगा ! यह तो ब्राह्मण देवता खायेंगे l "
एकनाथ बाहर आये और सभी हरिजनों से बोले ---- " पूरे टोले को परिवार सहित यहाँ ले आओ l पहले तुम लोग भोजन करोगे l " सभी भोजन कर एकनाथ की जय - जयकार कर के चले गए l
ब्राह्मणों को पता चला तो वे क्षुब्ध हो उठे और उन्होंने कहा कि यह हमारा घोर अपमान है l सभी यह कहकर चले गए ---- " अब कोई ब्राह्मण तुम्हारे यहाँ नहीं आएगा l " एकनाथ की पत्नी निराश हो गईं, पर वे बोले ---- " मैं स्वयं पितृ पूर्वजों का आह्वान करूँगा l " उपस्थित सभी पड़ोसियों ने देखा कि उनके प्रपितामह , पितामह और पिता सूर्यनारायण प्रत्यक्ष आये और उन्होंने श्राद्ध - अन्न ग्रहण किया l सभी ब्राह्मणों को पता चला तो वे आकर एकनाथ के चरणों में गिर गए l एकनाथ ने तत्कालीन समाज में सुधार की कई प्रवृतियां आरम्भ कीं l
एकनाथ बाहर आये और सभी हरिजनों से बोले ---- " पूरे टोले को परिवार सहित यहाँ ले आओ l पहले तुम लोग भोजन करोगे l " सभी भोजन कर एकनाथ की जय - जयकार कर के चले गए l
ब्राह्मणों को पता चला तो वे क्षुब्ध हो उठे और उन्होंने कहा कि यह हमारा घोर अपमान है l सभी यह कहकर चले गए ---- " अब कोई ब्राह्मण तुम्हारे यहाँ नहीं आएगा l " एकनाथ की पत्नी निराश हो गईं, पर वे बोले ---- " मैं स्वयं पितृ पूर्वजों का आह्वान करूँगा l " उपस्थित सभी पड़ोसियों ने देखा कि उनके प्रपितामह , पितामह और पिता सूर्यनारायण प्रत्यक्ष आये और उन्होंने श्राद्ध - अन्न ग्रहण किया l सभी ब्राह्मणों को पता चला तो वे आकर एकनाथ के चरणों में गिर गए l एकनाथ ने तत्कालीन समाज में सुधार की कई प्रवृतियां आरम्भ कीं l