1 March 2018

आचरण से समाज सुधार ----- संत एकनाथ

  संत  एकनाथ  का  निरासक्त  जीवन  एक  लोक - शिक्षक  का  जीवन  था  l  एकनाथ जी  ने  दादा - दादी के  निधन  के  बाद  ब्राह्मणों  को  आमंत्रित  किया ,  ताकि  उन्हें  भोजन  कराया  जा  सके  l  वहां  नजदीक  से  कुछ   हरिजन  निकल  रहे  थे  l  भोजन  की  सुगंध  से  एक  बोल  उठा ----- " क्या  यह  हमारे  भाग्य  में  नहीं  है  ? " दूसरा  बोल  उठा --- " यह  कहाँ  हमें  मिलेगा  ! यह  तो  ब्राह्मण  देवता  खायेंगे  l "
  एकनाथ  बाहर  आये  और  सभी  हरिजनों  से  बोले ---- " पूरे  टोले  को  परिवार  सहित  यहाँ  ले  आओ  l  पहले  तुम  लोग  भोजन  करोगे  l  "  सभी  भोजन  कर  एकनाथ  की  जय - जयकार  कर  के  चले  गए  l 
 ब्राह्मणों  को  पता  चला  तो  वे  क्षुब्ध  हो  उठे   और  उन्होंने  कहा  कि  यह  हमारा  घोर  अपमान  है  l  सभी  यह  कहकर  चले  गए  ---- " अब  कोई  ब्राह्मण  तुम्हारे  यहाँ  नहीं  आएगा  l " एकनाथ  की  पत्नी  निराश  हो  गईं,  पर  वे  बोले  ---- " मैं  स्वयं  पितृ  पूर्वजों  का  आह्वान  करूँगा  l "  उपस्थित  सभी  पड़ोसियों  ने  देखा  कि  उनके  प्रपितामह , पितामह  और  पिता  सूर्यनारायण  प्रत्यक्ष  आये  और  उन्होंने  श्राद्ध - अन्न  ग्रहण  किया  l  सभी  ब्राह्मणों  को  पता  चला  तो  वे  आकर  एकनाथ  के  चरणों  में  गिर  गए  l  एकनाथ  ने   तत्कालीन  समाज  में  सुधार  की  कई  प्रवृतियां  आरम्भ  कीं l