6 June 2021

WISDOM ----- कर्मफल

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----- " गलती  तो  देवताओं  की  भी  क्षम्य  नहीं  है   l  मनुष्य  को  तो  उसका  अनिवार्य  फल  भोगना  ही  पड़ता  है   l   दुष्कर्म  के  लिए  पश्चाताप  तो  करना  ही  पड़ता  है  l  यह  न  समझा  जाये  कि   एकांत  में  किया  गया  अपराध  किसी  ने  देखा  नहीं   l   नियन्ता   की  दृष्टि  सर्वव्यापी  है   उससे  कोई  बच  नहीं  सकता   l  "       पुराण  की    एक  कथा  है  ---------  एक  बार   आठों  वसु  सपत्नीक   पृथ्वीलोक  पर  भ्रमण  करने  गए   l   वहां  वे  महर्षि  वशिष्ठ  के  आश्रम  में  पहुंचे  l  वहां  अलौकिक  शांति  थी   l   भ्रमण  करते  हुए  वसु   प्रभास  और  उसकी  पत्नी   महर्षि  के    आश्रम  के  उस  स्थान  पर  पहुंचे  जहाँ   कामधेनु  गाय  बंधी  थी   l   प्रभास  की  पत्नी  का  मन   उसे  देखकर  व्याकुल  हो  गया   उसने  प्रभास  से  कहा --- ' मुझे  इस  गाय  में  आसक्ति  हो  गई   है   इसलिए  इसे  अपने  साथ  ले  चलें   l '  प्रभास  ने  कहा --- " देवी !  औरों  की  प्यारी  वस्तु   को  देखकर  लोभ  करना   और  उसे  अनाधिकार   पाने  की  चेष्टा   करना  पाप  है  ,  उस  पाप  के  फल  से   मनुष्य  तो  क्या  हम  देवता  भी  नहीं  बच   सकते   l   बुराई  पर  चलने  के  लिए  विवश  मत  करो   अन्यथा  कर्मभोग  का  दंड    हमें  भी  भुगतना  पड़ेगा   l  "  पर  वे  न  मानीं   l   प्रभास  ने  फिर  समझाया ---- " चोरी  और  छल  से  प्राप्त   वस्तु    को   परोपकार  में  भी  लगाने  से    पुण्य  फल  नहीं  होता    अनीति   से  प्राप्त  वस्तु   के  द्वारा  किए   हुए  दान   और  धर्म  से  शांति  नहीं  मिलती  l   इसलिए  तुम्हे  यह  जिद  छोड़  देनी  चाहिए  l  "  वसु पत्नी    समझाने   से  भी  नहीं  मानी  ल l   प्रभास  को  गाय  चुरानी  ही  पड़ी  l  जब  महर्षि  वशिष्ठ  आश्रम  लौटे  तो  गाय  को  न  देखकर  उन्होंने  पूछताछ  की  ,  किसी  ने  कुछ  नहीं  बताया  तब  उन्होंने  अपनी  दिव्य  दृष्टि   से  देखा  तो  उन्हें  वसुओं  की  करतूत  मालूम  हुई   l   उनकी   इस  करतूत  पर  ऋषि  को  क्रोध  आ  गया  ,  उन्होंने  शाप  दे  दिया  ---- " सभी  वसु  देव  शरीर  त्यागकर  पृथ्वी  पर  जन्म  लें  l  "   इन  आठों  वसु  ने  महाराज  शांतनु  और  गंगा  के  आठ  पुत्रों  के  रूप  में  जन्म  लिया   l   सात  की  तो  तत्काल  मृत्यु  हुई   परन्तु  आठवें  वसु  प्रभास  को  पितामह  के  रूप  में  जीवित  रहना  पड़ा   और  अंत  में  छः   माह  शरशय्या  पर  लेटे    रहना  पड़ा    l   कर्मफल  से  कोई  नहीं  बचा  है   l