संसार में जब भी भीषण नर - संहार हुए हैं , उसके पीछे किसी व्यक्ति या समूह की आसुरी प्रवृति की प्रमुखता रही है l रावण यद्द्पि विद्वान् था , लेकिन उसकी आसुरी प्रवृति के कारण राम - रावण युद्ध हुआ l दुर्योधन में आसुरी प्रवृति थी , जीवन भर छल - छद्द्म और षड्यंत्र करता रहा , और महाभारत के लिए उत्तरदायी था l इसी प्रकार हम इतिहास देखें तो प्रथम और द्वितीय विश्व - युद्ध के भीषण नर - संहार के लिए आसुरी शक्तियां ही जिम्मेदार थीं l
यह एक प्रश्न उपस्थित होता है कि व्यक्ति जन्म से बुरा नहीं होता , फिर ऐसा क्या हो जाता है कि उस पर आसुरी प्रवृति हावी हो जाती है जो उसके माध्यम से संसार में नकारात्मक कार्यों को , जन - सामान्य के उत्पीड़न और एक भीषण नर - संहार को अंजाम देती है l इस प्रश्न का उत्तर हमारे पुराण की कथा में है ------- जब महाराज परीक्षित के काल में कलियुग का आरम्भ हुआ , तो कलियुग उत्पात मचाने , जनता बहुत दुखी होने लगी l तब महाराज परीक्षित ने कलियुग से कहा -- तुम इस तरह जनता को दुखी नहीं कर सकते l
तब कलियुग ने कहा --- ईश्वर के विधान के अनुसार , अब कलियुग का आरम्भ हुआ है तो मुझे तो धरती पर रहना ही है l
राजा ने कहा --- तुम्हारे क्रिया - कलापों से सम्पूर्ण धरती पर त्राहि - त्राहि मच जाएगी इसलिए तुम धरती पर केवल छह स्थानों पर रहो ----- स्वर्ण ( अकूत धन सम्पदा ), झूठ , जुआ , नशा , व्यभिचार , चोरी - हत्या l
उस दिन से कलियुग इन्ही छह स्थानों पर रहने लगा l इन छह स्थानों में सबसे प्रमुख ' स्वर्ण ' है l जिसके पास असीमित धन - सम्पदा है , उसको अहंकार हो जाता है l सारा दोष धन में है , धन के साथ झूठ , नशा , जुआ आदि बुराइयां खींची चली आती हैं l
जिनके पास स्वर्ण अर्थात बहुत धन - सम्पदा है , उन पर कलियुग सवार हो जाता है और उनके माध्यम से वह संसार में नकारात्मक कार्यों को अंजाम देता है l शिक्षा , कला , साहित्य , चिकित्सा , कृषि आदि सभी का स्तर गिर जाता है , इसकी वजह से संसार में तनाव , अपराध , मानसिक विकृतियां , पागलपन , आत्महत्या , रोग , महामारी , बच्चों का उत्पीड़न आदि दिखाई देने लगते हैं l तृष्णा समाप्त नहीं होती , इसलिए और अधिक धन कमाने के लिए वे प्रकृति का शोषण करते हैं , जिससे पूरा पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है , प्राकृतिक आपदाएं आने लगती हैं l
कलियुग के ऐसे भीषण प्रहार से बचने का एकमात्र उपाय यही है कि किसी व्यक्ति विशेष या संस्था - विशेष के पास असीमित धन - संग्रह न होने पाए , उसकी एक सीमा निर्धारित होनी चाहिए ताकि वह अपने धन के दम्भ पर संसार में उत्पात न मचा पाए l
यह सत्य है कि कलियुग किसी को नहीं छोड़ता l स्वयं राजा परीक्षित स्वर्ण मुकुट पहन कर जंगल में शिकार करने गए , तो कलियुग उनके मुकुट में छिपकर बैठ गया l वहां आश्रम में उन्होंने प्यास लगने पर ऋषि से पानी माँगा , ऋषि समाधि में थे l कलियुग के प्रभाव से राजा की बुद्धि भ्रष्ट हो गई , उन्होंने ऋषि के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया l वापिस महल आने पर जब उन्होंने मुकुट उतारकर रखा , तब उन्हें होश आया कि उन्होंने यह क्या अनर्थ कर दिया l लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी , उन्हें ऋषि ने शाप दे दिया था कि उस दिन के सातवें दिन उन्हें तक्षक नाग डस लेगा l
इसी तरह भगवान कृष्ण के धरती से जाने के बाद कलियुग के प्रभाव से ही उनका पूरा यादव वंश आपस में ही लड़ - भिड़कर समाप्त हो गया l
पुराणों की कथाएं हमें शिक्षण देती हैं की समस्या के मूल कारण को समाप्त करना चाहिए l उसके साथ जुड़ी हुई अनेक समस्याएं स्वत: ही हल हो जाएँगी
यह एक प्रश्न उपस्थित होता है कि व्यक्ति जन्म से बुरा नहीं होता , फिर ऐसा क्या हो जाता है कि उस पर आसुरी प्रवृति हावी हो जाती है जो उसके माध्यम से संसार में नकारात्मक कार्यों को , जन - सामान्य के उत्पीड़न और एक भीषण नर - संहार को अंजाम देती है l इस प्रश्न का उत्तर हमारे पुराण की कथा में है ------- जब महाराज परीक्षित के काल में कलियुग का आरम्भ हुआ , तो कलियुग उत्पात मचाने , जनता बहुत दुखी होने लगी l तब महाराज परीक्षित ने कलियुग से कहा -- तुम इस तरह जनता को दुखी नहीं कर सकते l
तब कलियुग ने कहा --- ईश्वर के विधान के अनुसार , अब कलियुग का आरम्भ हुआ है तो मुझे तो धरती पर रहना ही है l
राजा ने कहा --- तुम्हारे क्रिया - कलापों से सम्पूर्ण धरती पर त्राहि - त्राहि मच जाएगी इसलिए तुम धरती पर केवल छह स्थानों पर रहो ----- स्वर्ण ( अकूत धन सम्पदा ), झूठ , जुआ , नशा , व्यभिचार , चोरी - हत्या l
उस दिन से कलियुग इन्ही छह स्थानों पर रहने लगा l इन छह स्थानों में सबसे प्रमुख ' स्वर्ण ' है l जिसके पास असीमित धन - सम्पदा है , उसको अहंकार हो जाता है l सारा दोष धन में है , धन के साथ झूठ , नशा , जुआ आदि बुराइयां खींची चली आती हैं l
जिनके पास स्वर्ण अर्थात बहुत धन - सम्पदा है , उन पर कलियुग सवार हो जाता है और उनके माध्यम से वह संसार में नकारात्मक कार्यों को अंजाम देता है l शिक्षा , कला , साहित्य , चिकित्सा , कृषि आदि सभी का स्तर गिर जाता है , इसकी वजह से संसार में तनाव , अपराध , मानसिक विकृतियां , पागलपन , आत्महत्या , रोग , महामारी , बच्चों का उत्पीड़न आदि दिखाई देने लगते हैं l तृष्णा समाप्त नहीं होती , इसलिए और अधिक धन कमाने के लिए वे प्रकृति का शोषण करते हैं , जिससे पूरा पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है , प्राकृतिक आपदाएं आने लगती हैं l
कलियुग के ऐसे भीषण प्रहार से बचने का एकमात्र उपाय यही है कि किसी व्यक्ति विशेष या संस्था - विशेष के पास असीमित धन - संग्रह न होने पाए , उसकी एक सीमा निर्धारित होनी चाहिए ताकि वह अपने धन के दम्भ पर संसार में उत्पात न मचा पाए l
यह सत्य है कि कलियुग किसी को नहीं छोड़ता l स्वयं राजा परीक्षित स्वर्ण मुकुट पहन कर जंगल में शिकार करने गए , तो कलियुग उनके मुकुट में छिपकर बैठ गया l वहां आश्रम में उन्होंने प्यास लगने पर ऋषि से पानी माँगा , ऋषि समाधि में थे l कलियुग के प्रभाव से राजा की बुद्धि भ्रष्ट हो गई , उन्होंने ऋषि के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया l वापिस महल आने पर जब उन्होंने मुकुट उतारकर रखा , तब उन्हें होश आया कि उन्होंने यह क्या अनर्थ कर दिया l लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी , उन्हें ऋषि ने शाप दे दिया था कि उस दिन के सातवें दिन उन्हें तक्षक नाग डस लेगा l
इसी तरह भगवान कृष्ण के धरती से जाने के बाद कलियुग के प्रभाव से ही उनका पूरा यादव वंश आपस में ही लड़ - भिड़कर समाप्त हो गया l
पुराणों की कथाएं हमें शिक्षण देती हैं की समस्या के मूल कारण को समाप्त करना चाहिए l उसके साथ जुड़ी हुई अनेक समस्याएं स्वत: ही हल हो जाएँगी