1 October 2017

WISDOM ------ जब जागा आत्मबल ------

   विश्व  के  शक्ति भंडार  में  आत्मबल  सर्वोपरि  है  l   जो  अपने  मानवीय  विकारों  पर  नियंत्रण  रखता  है  ,  अपने  आंतरिक  और   बाह्य    जीवन  पर  शासन  करता  है    वही  आत्मबल  संपन्न  हो  जाता  है  और  तब  उस  पर  दैवी   अनुग्रह    अनायास  बरसता  है -------
       चन्द्रगुप्त  जब  विश्वविजय  की  योजना  सुनकर  सकपकाने  लगा   तो  चाणक्य  ने  कहा ----- "  तुम्हारी  दासीपुत्र  वाली  मनोदशा  को    मैं    जानता    हूँ   l   उससे  ऊपर  उठो   l  चाणक्य  के  वरद  पुत्र   जैसी  भूमिका  निभाओ  l  विजय  प्राप्त  कराने  की  जिम्मेदारी   तुम्हारी  नहीं ,  मेरी  है  l "
                     शिवाजी  जब  अपने  सैन्यबल  को  देखते  हुए  असमंजस  में  थे   कि  इतनी  बड़ी  लड़ाई  कैसे  लड़ी  जा  सकेगी  ,  तो  समर्थ  रामदास  ने  उन्हें  भवानी  के  हाथों   अक्षय  तलवार  दिलाई  थी    और  कहा  था ------- "तुम  छत्रपति  हो  गए ,  पराजय  की  बात  ही  मत  सोचो   l "
                     महाभारत  लड़ने  का  निश्चय  सुनकर  अर्जुन  सकपका  गया   और  कहने  लगा ----- "  मैं  अपने  गुजारे  के  लिए  तो  कुछ  भी  कर  लूँगा  ,  फिर  हे  केशव  !  आप  इस  घोर  युद्ध  में   मुझे  नियोजित  क्यों  कर  रहे  हैं  ? '  इसके  उत्तर  में  भगवान  ने  एक  ही  बात  कही ----    "  इन  कौरवों  को  तो  मैंने  पहले  ही   मार    कर   रख  दिया  है  l   तुझे  यदि  श्रेय  लेना  है    तो  आगे  आ ,  अन्यथा  तेरे  सहयोग  के  बिना  भी   वह  सब  हो  जायेगा ,  जो  होने  वाला  है   l   घाटे  में  तू  ही  रहेगा ---- श्रेय  गँवा  बैठेगा   और  उस  गौरव  से  भी  वंचित  रहेगा   ,  जो  विजेता  और  राजसिंहासन    के  रूप  में  मिला  करता  है   l  "
  अर्जुन  ने  वस्तुस्थिति  समझी   और   कहा कि  आपका  आदेश  मानूंगा   l 
    उच्चस्तरीय  प्रतिभाओं  का  पौरुष  जब  कार्यक्षेत्र  में  उतरता  है    तो  न  केवल  कुछ  व्यक्तियों   को ,  वरन  समूचे  वातावरण  को  ही  उलट - पुलट  कर  रख  देता  है   l