विभिन्न क्षेत्रों में मानवता की सेवा को प्रोत्साहित करने वाले नोबुल पुरस्कारों के जनक अल्फ्रेड नोबुल जन्म के समय से ही बहुत दुबले थे और उनका भार भी बच्चों के औसत वजन से कम
था । स्नायुविक दुर्बलता इस कदर थी कि मौसम जरा भी शुष्क होता तो गर्मी का शिकार हो जाते और वातावरण में जरा भी नमी आती तो सर्दी, ज्वर आदि हो जाते । स्वास्थ्य की द्रष्टि से कमजोर होने के कारण वे प्राय: माँ के समीप ही रहते थे । माँ उन्हें बाइबिल और अन्य पुस्तकों से प्रेरक कहानियां सुनाया करती थीं और यह प्रेरणा दिया करती थीं कि तुम कमजोर हो तो क्या हुआ, आगे चलकर एक महान व्यक्ति बनोगे और सारा संसार तुम्हारा नाम श्रद्धा और सम्मान के साथ लेगा । अल्फ्रेड नोबुल सामान्य से अधिक संवेदनशील और भावुक थे । अपने परिश्रम, उद्दोगशीलता और मितव्ययता से उन्होने अपार सम्पति जमा की, लेकिन उन्हें सम्पति का कोई अहंकार नहीं था, उनकी मान्यता थी कि सम्पति आज है, कल नहीं । उसके रहते मनुष्य को अपनी मानवता नहीं भुला देनी चाहिए ।
जब उनसे पूछा गया कि आप जीवन भर विस्फोटक पदार्थ तैयार करते रहे और अब अंतिम दिनों में विश्वशांति की बात कैसे याद आई ? तब उन्होंने कहा था--- " वस्तुतः कोई भी विस्फोटक पदार्थ खतरनाक नहीं है यदि उसका प्रयोग उपयुक्त दिशा में किया जाये । मैंने जीवन में कभी यह विचार ही नहीं किया कि इन पदार्थों से मनुष्य एक दूसरे का सर्वनाश करेंगे । "
वे उदार और विनम्र थे, जो भी जरूरतमंद उनके पास सहायता की याचना लेकर पहुँचता वे उसे खाली हाथ न जाने देते । उन्हें प्रतिष्ठा का अभिमान नहीं था ।
था । स्नायुविक दुर्बलता इस कदर थी कि मौसम जरा भी शुष्क होता तो गर्मी का शिकार हो जाते और वातावरण में जरा भी नमी आती तो सर्दी, ज्वर आदि हो जाते । स्वास्थ्य की द्रष्टि से कमजोर होने के कारण वे प्राय: माँ के समीप ही रहते थे । माँ उन्हें बाइबिल और अन्य पुस्तकों से प्रेरक कहानियां सुनाया करती थीं और यह प्रेरणा दिया करती थीं कि तुम कमजोर हो तो क्या हुआ, आगे चलकर एक महान व्यक्ति बनोगे और सारा संसार तुम्हारा नाम श्रद्धा और सम्मान के साथ लेगा । अल्फ्रेड नोबुल सामान्य से अधिक संवेदनशील और भावुक थे । अपने परिश्रम, उद्दोगशीलता और मितव्ययता से उन्होने अपार सम्पति जमा की, लेकिन उन्हें सम्पति का कोई अहंकार नहीं था, उनकी मान्यता थी कि सम्पति आज है, कल नहीं । उसके रहते मनुष्य को अपनी मानवता नहीं भुला देनी चाहिए ।
जब उनसे पूछा गया कि आप जीवन भर विस्फोटक पदार्थ तैयार करते रहे और अब अंतिम दिनों में विश्वशांति की बात कैसे याद आई ? तब उन्होंने कहा था--- " वस्तुतः कोई भी विस्फोटक पदार्थ खतरनाक नहीं है यदि उसका प्रयोग उपयुक्त दिशा में किया जाये । मैंने जीवन में कभी यह विचार ही नहीं किया कि इन पदार्थों से मनुष्य एक दूसरे का सर्वनाश करेंगे । "
वे उदार और विनम्र थे, जो भी जरूरतमंद उनके पास सहायता की याचना लेकर पहुँचता वे उसे खाली हाथ न जाने देते । उन्हें प्रतिष्ठा का अभिमान नहीं था ।