27 June 2013

WIT

'दुनिया क्या कहेगी ? इस प्रश्न को ध्यान में रखने का नाम कौशल है |  भगवान क्या कहेंगे ? इस प्रश्न को आगे रखकर चलने का नाम कर्तव्य है | '
एक विद्वान अपने कुत्ते के साथ भ्रमण को निकले | सामने से एक व्यक्ति आ रहा था ,जो उनकी विद्वता से जलता -कुढ़ता था | उसने उनको अपमानित करने की द्रष्टि से उनसे पूछा -"आप दोनों महानुभावों में श्रेष्ठ कौन है ?"
             विद्वान् बिना बुरा मानते हुए बोले -"मित्र !यदि मैं इस सुर दुर्लभ मानवीय काया का सदुपयोग करते हुए श्रेष्ठ कर्म करूं ,तो मैं श्रेष्ठ हुआ और यदि मैं अपने सच्चे स्वरुप का ध्यान न रखते हुए जानवरों जैसे कर्म करूं ,दूसरों के साथ दुर्व्यवहार करूं तो मुझसे और मुझ जैसे अनेक नर -पशुओं से कहीं ज्यादा ये कुत्ता श्रेष्ठ है |     प्रश्न करने वाले व्यक्ति का सिर ,यह उत्तर सुनकर लज्जा से झुक गया |

    'सम्मान की पूंजी देने पर मिलती है ,बाँटने पर बढ़ती है और बटोरने पर समाप्त हो जाती है | '

AITREY UPNISHAD

उपनिषद में प्रसंग आता है कि जब परमात्मा ने पंचभूतों से पुरुष आकृति का निर्माण कर तैयार कर दिया ,तब देवों ने पूछा कि हमारे योग्य स्थान बताएँ ,जहाँ हम इस पावन काया में निवास कर सकें | मानव शरीर के विभिन्न स्थलों का दिव्य रूप दिखाकर देवों से जब  परमात्मा ने कहा -"अपने योग्य आश्रय स्थानों में तुम प्रवेश कर लो | "तब सभी देव प्रसन्न होकर मानवीय काया में स्थान -स्थान पर प्रतिष्ठित हो गये ---
  अग्नि वाणी होकर मुख में ,  वायु प्राण होकर नासिका छिद्र में
 सूर्य प्रकाश बनकर नेत्रों में   ,दिशाएँ श्रोत्रेंद्रिय बनकर कानों में ,
औषधियाँ और वनस्पति रोमों के रूप में त्वचा पर ,  चंद्रमा मन के रूप में ,
मृत्यु अपान होकर नाभि में तथा जल देवता वीर्य बनकर जननेंद्रिय में प्रतिष्ठित हुए |--  ऐतरेय उपनिषद
 यह कथानक बताता है की मानव शरीर एक देवालय है | हमें उसे प्रदूषित नहीं करना चाहिए |