2 April 2020

WISDOM ---- जिंदगी की सार्थकता

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्यजी  का  कहना  है ---- ' जिंदगी  की  सार्थकता  को  यदि  खोजना  है   तो  वह  दूसरों  की  भलाई  करने  में  है  l  संसार  में  उसी  परिश्रम  को  सार्थक  कहा  गया  है  , जो  दूसरों  के  लिए  किया  जाता  है  l  वही   मेहनत    सफल  कहलाती  है  जिससे  दूसरों  का  भला  होता  है   l 
 रूस   के  महान  साहित्यकार  टॉलस्टॉय   का  कथन  है ----' जो   दूसरों  के  लिए  कुछ  नहीं  करता ,  वह  कभी  सुखी  नहीं  रह  पाता  l  अपना  पेट  तो  छोटी  सी  चींटी  भी  भर  लेती  है  l  दूसरों  का  पेट  भरो  और  उन  पेटों  को  भरो  ,  जो  खाली   हैं  , जिनमे  क्षुधा ( भूख )  की  आग  दहक   रही  है  l  जो  अपने  लिए  नहीं , दूजे  के  लिए   कुछ  करता  है  , वही  सच्चा  इनसान   है  l '
  आचार्य श्री  लिखते  हैं --- ' दूसरों  के  लिए  किये  गए   इस  तरह  के  परिश्रम  में  यदि  निष्कामता  का  भाव  हो ,  जनहित  का  भाव  हो  , तो  ऐसा  कर्म   आध्यात्मिक  कर्म  बन  जाता  है  ,  जिसका  फल  अनंत  गुना   मधुर  एवं   व्यापक  होता  है  l  '
  मनुष्य  जीवन  की    किसी  भी  अवस्था  में  और  किसी  भी  स्थिति  में  परोपकार  किया  जा  सकता  है  l   बस  इसके  लिए  संवेदनशील  और  उदार  भावनाएं   चाहिए   l --------    प्राचीन  समय  में  एक  बूढ़ा  बेसहारा   आदमी   भिक्षा  मांगकर  अपना  जीवन  निर्वाह  करता  था  l  वह  सवेरे  से  रात  तक  भटकता  और  अधिक  से  अधिक  भिक्षा  प्राप्त  करने  का  प्रयास  करता  l
  वृद्ध  की  दिनचर्या  का  एक  हिस्सा  यह  भी  था  कि   वह  सवेरे  सोकर  उठता  ,  सबसे  पहले  शुद्ध  होकर  मंदिर  जाता  ,  वहां  पूजा  कर  के   भीख  मांगने  निकल  जाता  l   अपनी  कुटिया  से   मुख्य  मार्ग  की   ओर  जाते  समय   वह  अनाज  के  दानों  से  मुट्ठियां  भर  लेता   और  जहाँ  पक्षियों  को  देखता  ,  वहां  दाने  बिखेर  देता  l   दोपहर  को  जब  खाना  खाने  बैठता   तो  आधे  से  अधिक  खाना  लोगों  में  बाँट  देता  l  उसे  अपना  पेट  भरने  की  इतनी  अधिक  चिंता  नहीं  होती  ,  जितनी  दूसरे  भूखे  लोगों  की  होती  l   जिस  दिन  वह  अधिक  परमार्थ  करता  ,  उस  रात  उसे  बड़ी  गहरी  नींद  आती   और  वह  निश्चिंतता पूर्वक  सो  जाता  l  

WISDOM -----

बच्चे  बहुत  शरारत  करते  हैं  तो  माँ  क्या  करे  ?  कई  बच्चे  बहुत  चंचल  होते  हैं , बहुत  शरारत  करते  हैं   तो  कभी  माँ  उन्हें  डराती   है --' बाहर ' जोगी  बाबा ' पकड़  लेगा  ,  अंग्रेज  माताएं   अपने  शरारती  बच्चों  को   टीपू  आया  कहकर  चुप  कराती  थीं  l   इतने  पर  भी  बच्चे  नहीं  मानते  तो  माँ  उन्हें  कमरे  में  बंद  कर  देती  है  l  भगवान   कृष्ण   की  बाल  - लीला  में  हम  पढ़ते  हैं  कि   उनकी  शरारतों  से  तंग  आकर  यशोदा  मैया  ने  उन्हें  रस्सी  से  बाँध  दिया  था  l
  माँ  भी  क्या  करे  , घर - गृहस्थी  की बहुत  जिम्मेदारी  है  , वह  भी  कुछ  समय  शांति  से  जीना  चाहती  है  l     प्रकृति  हमारी  माँ  है    ,  उसकी  संतान  ने  अपनी  तृष्णा  व  स्वार्थ  के  लिए  प्रकृति  का  बहुत  शोषण  किया   , सम्पूर्ण  पर्यावरण  को  प्रदूषित  कर  दिया  l   प्रकृति  माँ  ने  तंग  आकर  सब  बच्चों  को  घर  में  बंद  कर  दिया   l    संतानों  की  कारगुजारियों  से  उसकी  सेहत  जो  ख़राब  हो  गई  है  उसकी  क्षतिपूर्ति  हो  सके  l   प्रकृति  माँ  का  ध्यान  रखना  बहुत  जरुरी  है  l