21 November 2022

WISDOM ----

पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  के  एक  लेख  का  अंश ----- आचार्य जी  लिखते  हैं ---- "सुविचारों -सद्विचारों  के  खो  जाने  से   अपराधों  की  प्रकृति  बेतरह  बढ़  रही  है  l  अनपढ़  लोग  इन्हें  फूहड़  ढंग  से  करते  हैं   और  चतुर  लोग  इन्हें  चालाकी  का  रंग  चढ़ाकर  करते  हैं  l  खाने -पीने  की  चीजों  में  मिलावट , कम  तोलना , उठाईगिरी  जैसे  धंधे  निचले  लोग  करते  हैं  l  ऊँचे  लोग  इसमें  लाभ  कम  और  बदनामी  अधिक  देखते  हैं  ,  इसलिए  वे  ऐसे  जाल  बुनते  हैं  , जिसमे  एक  साथ  ढेरों  शिकार  पकड़े  जा  सकें  l  एक -एक  मछली  पकड़ने  के  लिए   धूप  में  बाँस  की  बंसी  पकड़े  रहना   उन्हें   मूर्खता  पूर्ण  लगता  है   l  वे  बड़े  हैं  , इसलिए  बड़ा  लाभ  कमाने  के  लिए  बड़ी  दुरभिसंधि  रचते  हैं  l  आज  के  दौर  में  अपराध  एक  फैशन  है  , जिसे  अपनाकर  कोई  लज्जित  नहीं  होता  है     बल्कि  अपनी  उद्दंडता  की  , चतुरता  की  प्रशंसा  पाने  की  आशा  रखता  है  l  जो  अपराध  न  कर  सके  वह  बुद्धू , प्रतिगामी , डरपोक आदि  न  जाने  क्या -क्या नाम  धराता  है  l  लोग  उसे  ' प्रैक्टिकल  '  होने  की  सीख  भी  देते  हैं  l ------- आज  बड़े  आदमी  बढ़  रहे  हैं  और  महामानव  अद्रश्य  होते  जा  रहे  हैं  l  अब  ऐसे  व्यक्तियों  को  ढूंढ  पाना  मुश्किल  है   जिन्हें  सच्चे  अर्थों  में  मनुष्य  कहा  जा  सके  l  आकृति  से  तो  मनुष्य  सभी  हैं  ,  पर  प्रकृति  से  मनुष्य  कहीं  नहीं   दिखाई  देते  हैं  l  धूर्त , दुष्ट , विलासी  और  अपराधी  प्रवृत्ति  के  लोग  जिस  समाज  में  भी  होंगे  , उसकी  स्थिति  कितनी  दयनीय  हो  सकती  हैं  , इसे  आज  हम  प्रत्यक्ष  देख  सकते  हैं  l  विज्ञानं  ने  हमें  अगणित  उपलब्धियां  दिन  लेकिन  चेतना  से  स्तर  पर  हम  आज  भी   पशु  हैं   l "  आचार्य जी  लिखते  हैं---' सत्साहित्य  के  अध्ययन     और  विचारों  में   परिवर्तन , सकारात्मक सोच  से  ही  सुधार  संभव  है  l '