राम और रावण के बीच युद्ध की तैयारियाँ जोर-शोर से चल रहीं थीं | विभीषण रावण द्वारा अपमानित होकर निकाले जा चुके थे और वे भगवान राम को सहयोग कर रहे थे | उनके मन में एक प्रश्न उभरा कि रावण की सेना में तो एक से बढ़कर एक बलशाली योद्धा हैं, उसके पास असंख्य रथ हैं और भगवान राम तो बिना किसी रथ के हैं तो पैदल रहकर वे कैसे रावण को हरा पाएँगे | उनके प्रश्न पूछने पर भगवान मुस्कराए और बोले ------
" धर्मयुद्ध लकड़ी के रथ से नहीं, बल्कि धर्म के रथ से जीता जाता है | धर्म का रथ शौर्य और धैर्य, दो पहियों पर चलता है, विवेक का बल, संयम और परोपकार उस रथ के घोड़े हैं और कृपा, क्षमा और समता उन घोड़ों को बांधने वाली रस्सियाँ हैं | इस धर्मरूपी रथ पर जो सवार होता है उसे कोई हरा नहीं सकता है | " यह सुनकर विभीषण श्रद्धा से नत-मस्तक हो गये |
" धर्मयुद्ध लकड़ी के रथ से नहीं, बल्कि धर्म के रथ से जीता जाता है | धर्म का रथ शौर्य और धैर्य, दो पहियों पर चलता है, विवेक का बल, संयम और परोपकार उस रथ के घोड़े हैं और कृपा, क्षमा और समता उन घोड़ों को बांधने वाली रस्सियाँ हैं | इस धर्मरूपी रथ पर जो सवार होता है उसे कोई हरा नहीं सकता है | " यह सुनकर विभीषण श्रद्धा से नत-मस्तक हो गये |