एक बार एक गरीब आदमी हजरत इब्राहीम के पास पहुंचा और कुछ आर्थिक सहायता मांगने लगा | हजरत ने कहा -"तुम्हारे पास यदि कुछ सामान हो तो मेरे पास ले आओ | "गरीब आदमी के पास तश्तरी ,लोटा और दो कम्बल थे | हजरत ने एक कंबल छोड़कर सब सामान नीलाम कर दिया ,नीलाम में प्राप्त दो दरहम उसे देते हुए कहा -"एक दरहम का आटा और एक दरहम की कुल्हाड़ी खरीद लो | आटे से पेट भरो और कुल्हाड़ी से लकड़ी काटकर बाजार में बेचो | "गरीब आदमी ने यही किया ,पंद्रह दिन बाद वह लौट कर हजरत के पास आया तो उसके पास बचत के दस दरहम थे | हजरत ने कहा -"समझदारी का मार्ग यही है कि यदि मनुष्य समर्थ हो तो आवश्यक सहायता अपनी ही बाजुओं से मांगे |
26 March 2013
AMBITION
महत्वाकांक्षा की धुरी पर घूमने वाला जीवन वृत ही नरक है | महत्वाकांक्षाओं का ज्वर जीवन को विषाक्त कर देता है | जो इस ज्वर से पीड़ित हैं ,शांति का संगीत और आत्मा का आनंद भला उनके भाग्य में कहां ?व्यक्ति जब तक स्वयं की वास्तविकता से दूर भागता है ,तब तक वह किसी न किसी रूप में महत्वाकांक्षा के ज्वर से ग्रसित होता रहता है | स्वयं से दूर भागने की आकांक्षा में वह स्वयं जैसा है ,उसे ढकता है और भूलता है |
महत्वाकांक्षा यों तोप्रगति के लिये अत्यंत आवश्यक है ,पर वह अनियंत्रित होने पर दुःख -शोक का कारण बनती है |इन दिनों महत्वाकांक्षा इतनी बढ़ी -चढ़ी है कि मनुष्य अधिकाधिक दौलत जुटा लेने ,यश कमा लेने और वाहवाही लूटने की उधेड़बुन में ही हर घड़ी उलझा दिखाई पड़ता है यदि व्यक्ति आधुनिकता के साथ आध्यात्मिकता का समावेश करता चले ,आवश्यकता से अधिक की आकांक्षा और स्तर से ज्यादा की चाह में प्रवृत न रहे ,तो मूड के ख़राब होने जैसी किसी भी कठिनाई से वह बचा रहेगा आत्मज्ञान से ,स्वयं को जानने ,उसमे जीने और जागने के प्रयास से ही महत्वाकांक्षा के रोग से मुक्ति संभव है |
महत्वाकांक्षा यों तोप्रगति के लिये अत्यंत आवश्यक है ,पर वह अनियंत्रित होने पर दुःख -शोक का कारण बनती है |इन दिनों महत्वाकांक्षा इतनी बढ़ी -चढ़ी है कि मनुष्य अधिकाधिक दौलत जुटा लेने ,यश कमा लेने और वाहवाही लूटने की उधेड़बुन में ही हर घड़ी उलझा दिखाई पड़ता है यदि व्यक्ति आधुनिकता के साथ आध्यात्मिकता का समावेश करता चले ,आवश्यकता से अधिक की आकांक्षा और स्तर से ज्यादा की चाह में प्रवृत न रहे ,तो मूड के ख़राब होने जैसी किसी भी कठिनाई से वह बचा रहेगा आत्मज्ञान से ,स्वयं को जानने ,उसमे जीने और जागने के प्रयास से ही महत्वाकांक्षा के रोग से मुक्ति संभव है |
सम्राट वृष मातंग शील -साधुता में श्रेष्ठ थे ,पर उन्हें क्रोध बहुत जल्दी आता था | एक बार उनकी परिचारिका ने उनकी सेवा -परिचर्या करने से इनकार कर दिया ,बोली -"आपके शरीर से दुर्गन्ध आती है | सम्राट क्षण भर को क्रोध से उबल पड़े ,तभी उन्हें अपने आचार्य के ये वचन याद आ गये --"प्रशंसा और निंदा को समभाव से ग्र
हण करने वाला व्यक्ति ही सच्चा योगी होता है | "अत:वे क्रोध को पी गये |
वैद्य से दुर्गन्ध का कारण पूछा -,शरीर की परीक्षा हुई | पता चला उनके दांत में भयंकर रोग हो गया है | यदि एक -दो दिन में चिकित्सा नहीं हुई तो वह असाध्य हो जायेगा | चिकित्सा हो गई ,वे स्वस्थ और दुर्गन्ध रहित हो गये | बड़ों की सीख याद रखने वाला अनर्थ से बच जाता है |
हण करने वाला व्यक्ति ही सच्चा योगी होता है | "अत:वे क्रोध को पी गये |
वैद्य से दुर्गन्ध का कारण पूछा -,शरीर की परीक्षा हुई | पता चला उनके दांत में भयंकर रोग हो गया है | यदि एक -दो दिन में चिकित्सा नहीं हुई तो वह असाध्य हो जायेगा | चिकित्सा हो गई ,वे स्वस्थ और दुर्गन्ध रहित हो गये | बड़ों की सीख याद रखने वाला अनर्थ से बच जाता है |
Subscribe to:
Posts (Atom)