14 February 2020

WISDOM ---- लोकसेवा की ताकत

  पुराण  की  एक  कथा  है ----  भगवान   श्रीराम  के  पूर्वजों  में  से  एक  थे -- राजा  चक्कवेण  l   वे  बड़े  प्रतापी  राजा  थे   और  उनकी  प्रजा  भी  बड़ी  सुखी - समृद्ध  थी  ,  परन्तु  वे  स्वयं  एक  झोंपड़ी  में  रहते  थे  l   राज - काज  से  जो  समय  मिलता   उसमे  वे   अपने  जीविकोपार्जन  के  लिए  खेती  कर  लेते  l   उनकी  धर्मपत्नी  भी   बड़ी  सादगी  से  रहतीं  l   जब  कभी  किसी  काम  से  बाहर  जातीं ,  तो  नगर  की  धनाढ्य  स्त्रियां  उन्हें  टोकतीं  कि   आप  हमारी  महारानी  हैं,  परन्तु  आपके  शरीर  पर  कोई  आभूषण  नहीं  है  l   महाराज  अपनी  मर्यादा  में  ऐसा  नहीं  करते  हैं   तो  आप  हमें  आदेश  दें  , तो  हम  आपके  लिए  आभूषण  बनवा  दें  l   नगर  की  स्त्रियों  के  बार - बार  कहने  से  प्रभावित  होकर  महारानी  ने   आभूषणों  की  बात  महाराज  चक्कवेण   से  कह  दी  l
  महाराज  यह  सुनकर  चिंता  में  पड़   गए  ,  उन्होंने  कहा  महारानी  आभूषणों  के  लायक   तो  हमारी  स्थिति  नहीं  है  ,  फिर  भी  तुमने  जीवन  में  पहली  बार   मुझसे  कुछ  माँगा  है  ,  तो  कुछ  तो  करना  ही  होगा  l   उसके  बाद   महाराज  ने  अपने  प्रधानमंत्री  को  बुलाया   और  कहा --- " हम  अपने  सुख  के  लिए  राज्य  की  जनता  से  अधिक  कर  वसूल  नहीं  सकते  l   तुम  ऐसा  करो  कि लंका  के  राजा  रावण  से  कर  वसूल  करो l   उसने  स्वर्ण  की  बहुत  जमाखोरी  की  है  ,  इसलिए  उसी  से  तुम  स्वर्ण   ले  आओ  l  "  मंत्री  राजा  की  बात  मानकर  लंका  गया  l    वहां जाकर  उसने   रावण  से  कहा --- " हमारे  महाराज  चक्कवेण   ने  तुमसे  कर  लेने  के  लिए  भेजा  है  l   दम्भी  रावण  यह  सुनकर  बहुत  हँसा   और  बोलै   तुम्हारे  भिखारी  राजा   की  यह  मजाल  कि   रावण  से  कर  वसूल  करने  की  सोचे  l "
  रावण  की  यह  बात  सुनकर  प्रधानमंत्री  ने  कहा --- " रावण  तुम  अभी  हमारे  महाराज  के  प्रभाव  से  अपरिचित  हो   इसलिए  तुम्हे  कुछ  नमूना  दिखा  ही  देते  हैं  l   ऐसा  कहते  हुए  उसने  कहा --- "  यदि  हमारे  महाराज  चक्कवेण   सच्चे  लोकसेवी  और  तपस्वी  हैं   तो  लंका  का  उत्तरी  और  दक्षिणी  हिस्सा  ध्वस्त  हो  जाये  l "  प्रधानमंत्री  के  ऐसा  कहते  ही  सोने  की  लंका  ढहने  लगी  l   न  कोई  सेना  और  न  कोई  मन्त्र शक्ति  ,  सिर्फ  सच्ची  लोकसेवा  के  साथ   तप  और  त्याग  का  ऐसा  प्रभाव  l   रावण  इसे  देखकर  चमत्कृत  भी  हुआ  और  प्रभावित  भी   l    उसने बहुत  सारा  स्वर्ण  प्रधानमंत्री  को  देकर  विदा  कर  दिया  l    प्रधानमंत्री  ने  वापस  घर  पहुंचकर  यह  घटना  अपने  महाराज व  महारानी  को  सुना  दी  l
     प्रधानमंत्री  द्वारा  यह  घटना  सुनने  के  बाद   महाराज  चक्कवेण   ने  महारानी  से  कहा --- ' महारानी  !  सच  आपके  सामने  है  l   अब  आप  चाहें  तो  आभूषण  पहन  लें , लेकिन  आपके  आभूषण  पहनते  ही   मेरी  सच्ची  लोकसेवा  और  तपस्या  का  यह  प्रभाव  नष्ट  हो  जायेगा  l  "  यह  विचित्र , किन्तु  सत्य  सुनकर  महारानी  को  यथार्थ  समझ  में  आ  गया ,  उन्होंने  आभूषण  पहनने  से  स्पष्ट  इनकार   कर  दिया  l  इस  पर  महाराज  ने  कहा ---- " महारानी ,  तप - त्याग , सादगी , सदाचार  ही  लोकसेवी  की  सच्ची  सम्पति  है  l  "  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  का  कहना  था --- " लोकसेवा  की  सफलता  इस  बात  पर  निर्भर  करती  है  कि   उसके  लोकसेवी   आम  जनता  की  जिंदगी  से  कितना  जुड़े  हैं  l   गरीब  जनता  से  दूर  ऐशोआराम  में  रहने  पर   उनकी  आँखों  पर  पट्टी  चढ़  जाती  है    और  वे  जनता   की  दुःख , तकलीफों  को  देखना  बंद  कर  देते  हैं   l   फिर  धीरे - धीरे  लोकसेवा  व्यवसाय  बन  जाती  है    और  लोकतंत्र  भ्रष्टतंत्र  बन  जाता  है  l  "