22 April 2018

WISDOM ------- हमारी कथनी और करनी में एकरूपता होनी चाहिए

 ' जो  हम  कहते  हैं   वह  अमल  में  भी  होना  चाहिए   l  '
  हिन्दी  साहित्य   के  महान  कवि  अयोध्या सिंह  उपाध्याय  ' हरिऔध जी '  का  जन्म   1865  में  एक  जमीदार  परिवार  में  हुआ  था  l  जमींदारी  और   पंडिताई   उनका  पैतृक  धंधा  था  l     उन्होंने  मिडिल  स्कूल  की  परीक्षा  पास  कर  ली  l 
   एक  दिन  उन्होंने  अपने  जमीदार  पिता  से   किसी  किसान  को  पिटते  देखा  l  उस  समय  तो  वे  कुछ  नहीं  बोले   l  समय  मिलने  पर  पूछा ---- ' क्या  पिताजी  इस  दुनिया  में  यह  सब  चलता  है  l   आप  तो  कथाओं  में  लोगों  से  कहा  करते  हैं  कि  किसी  निरपराध  प्राणी  को   कष्ट  नहीं  देना  चाहिए  l '
  अपने  किये  पर   पुत्र  को  टीका - टिपण्णी  करते  देख  पिता  को  क्रोध  आ  गया  ,  वे  बोले --- " तू  जानता  है  कि  उसने  कोई  अपराध  किया  है   या  नहीं  किया  है  l  "
पुत्र  ने  कहा ---- " मेरी  जानकारी  में  तो  नहीं  है  l  क्या  आप  बताने  का  कष्ट  करेंगे  l  "
  पिता  उन्हें  जमींदारी  सिखाना  चाहते  थे ,  अत:  कुछ  शांत  होकर  बोले  ---- "  सारी  फसल  तो  बेचकर  खा  गया  और  लगान  के  नाम  पर   वह  कह  रहा  था  कि  कुछ  हुआ  ही  नहीं  l "
  अयोध्या सिंह  जी  बोले ---- " इस  साल  तो  पानी  नहीं  बरसा  l यह  बात तो  हम  लोग  भी  जानते  हैं  l  फसल  कहाँ  से  पैदा  हुई  होगी  l  "
  पिता  बोले --- " मिडिल  पास  कर  ली  तो  खुद  को  मुझसे  ज्यादा  समझदार  मानने  लगा  है  l  मैं  जो  कह  रहा  हूँ   क्या  वह  तेरे  लिए  झूठ  है  l  "  यह  कहकर  वे  बेटे  की  और  लपके  l 
   इस  घटना  ने  उन्हें  धर्म क्षेत्र  में  फैले  हुए  आडम्बर  का  बोध  कराया   l  लोगों  को  दया , प्रेम  का  उपदेश  देकर   अपने  स्वार्थ  के  लिए  स्वयं  उनके  साथ  मारपीट  करना   तो  गलत  है  l  जो  हम  कहते  हैं  उस  पर  अमल  भी  होना  चाहिए  l  
   अपने  भावी  जीवन  के  बारे  में  वे   सोच  रहे  थे    कि  जमींदारी  का  धन्धा  और  पंडिताई  ये  दोनों  काम  नहीं  बन  सकते   l  कृषक  की  विवशता  को  समझकर भी   उसे  उपेक्षित  करते  हुए  अमानवीय  अत्याचार   करना  उन्हें  गौरव अनुकूल  नहीं  लगा  l  जमींदारी  करते  हुए  पंडिताई  दूभर  है  l   अब  वे  स्वतंत्र  रूप  से  अपनी  जीविका  चलाने लगे   l  भारतेन्दु  जी  के   संपर्क  में  आकर  उन्हें  सार्थक  साहित्य    सृजन   की  प्रेरणा  मिली  l   समाज  में  व्याप्त  कुरीतियों ,  मर्यादाहीन  ब्राह्मण - पंडितों ,  बाल विवाह ,  वृद्ध  विवाह  जैसे   विषयों  पर  उन्होंने  अपनी  कवितायेँ  लिखीं   l