पुराण में कथा है ----- नारद जी गोलोक धाम गए वहां उन्होंने भगवान कृष्ण से मथुरा में कंस के अत्याचार की अंतहीन कथा का बयान किया , उन्होंने कहा ---- " कंस की क्रूरता एवं नृशंसता का कोई ओर - छोर नहीं है l वह इन दिनों अपनी शक्ति , सत्ता एवं धन से और भी मदांध हो गया है l वह किसी की नहीं सुन रहा है l वह किसी की नहीं सुन रहा है l हे नारायण ! कंस तो खड्ग उठाकर देवकी - वसुदेव का सर्वनाश करने चल पड़ा है l अब क्या होगा प्रभु ! " भगवान कहते हैं --- " इस सृष्टि के विधान में कभी भी निर्दोष को सजा नहीं मिलती , बेक़सूरवार कभी भी दंड का भागीदार नहीं होता l कंस के हाथों माता देवकी और पिता वसुदेव का अंत नहीं लिखा है l उनका इतना भोग नहीं बनता कि उनको कंस के हाथों प्राण गंवाने पड़े l लेकिन उनका कुछ भोग है जिसके परिणामस्वरूप कंस उनको सता रहा है l इस सृष्टि में काल और कर्म से बड़ा कोई नहीं है , कंस भी नहीं l काल और कर्म के अनुसार ही भोग का विधान बनता है l अच्छा और बुरा दोनों ही काल के द्वारा संचालित होते हैं l कंस को काल दण्डित करेगा l जब काल दण्डित करता है तो फिर उसे कोई बचा नहीं सकता है l "