14 June 2021

WISDOM ------

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- ' बाहर  की  दुनिया  में  शांति  नहीं  है  ,  वस्तुओं  में  , सुख - सुविधाओं  में  ,  संतान  में  कहीं   भी  व्यक्ति  को  शांति  नहीं  है  l   रावण  के  पास  सोने  की  लंका  थी  , महान  विद्वान्  था  , उसके  एक  लाख  पूत  और  सवा    लाख    नाती  थे    लेकिन  फिर  भी  उसे  सुख - शांति  नहीं  थी  l ------            एक  बहुत  धनवान  व्यक्ति  था  ,  लेकिन  वृद्धावस्था  में  उसे  बीमारियों  ने  घेर  लिया   l   उसने  सुना  था   कि   वीतराग  शुकदेव जी  के  मुंह  से   राजा  परीक्षित  ने   भागवत   पुराण  की  कथा  सुनकर  मुक्ति  प्राप्त  की  थी   l   उसके  मन  में  भी   भागवत   के  प्रति  श्रद्धा  जाग  उठी   और  अपनी  मुक्ति  के  लिए   किसी  ब्राह्मण  से  कथा  सुनने  की    व्यवस्था  करने  की  बात  सोची   l   एक  बड़े  प्रख्यात  पंडित जी  मिले   l   धनवान  यजमान  मिले  तो  पंडित जी  ने  एक  चाल  चली   और  बोले  ----- "  घोर  कलियुग  है   l   पांच  बार  कथा   सुननी     होगी   तभी  कल्याण  होगा   l  "  एडवांस  दान - दक्षिणा  लेकर   पांच  भागवत   सप्ताह  तय  हुए   l  धनी   व्यक्ति  ने  सभी  में  भागीदारी  की   l   पहली    में  मन  लगा   लेकिन  बाकी   किसी  तरह  से  कटीं   l   कुछ  भी  नहीं  हुआ   l   सेठ  का  मन  बहुत  अशांत  था  l   एक  संत  से  मुलाकात  हुई  तो  उसने  अपनी  जिज्ञासा   रखी  कि   पांच  परायण   हुए  फिर  भी  कल्याण  क्यों  नहीं  हुआ   ?  मन  को  शांति  क्यों  नहीं  मिली   ?  '    संत  बोले  ---- परीक्षित   पूर्णत:  विरक्त  भाव  से  , श्रद्धा  से  कथा  सुन  रहे  थे   l   उनके  मन  में  किसी  प्रकार  की  इच्छा  का  भाव  नहीं  था   क  और    निर्लिप्त   भाव  से  शुकदेव  जी   कथा  सुना  रहे  थे   l  तुम्हारी  कथा  में  दोनों  ही  नहीं  थे   l   इसलिए  कथा  का  लाभ  नहीं  मिलता   l