6 July 2022

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है ----- " मनोरोग   और  कुछ  नहीं   दबी -कुचली   रौंदी  गई  भावनाएं  मात्र  हैं  l  भाव -संवेदना  का  अभाव   व्यक्ति  के  व्यक्तित्व  को  खंडित  बना  देता  है   और  एक  दर्द  भरा , त्रासदी  युक्त  जीवन  जीते  हुए  उन्हें देखा  जा  सकता  है   l  "  आज  संसार  में   बौद्धिक  विकास  और  भौतिक  सुख सुविधाओं  में  वृद्धि  अपनी  पराकाष्ठा  पर  है    लेकिन  फिर  भी  संसार  में  चारों  तरफ  धूर्तता , मनोरोग , छल -कपट , षड्यंत्र , धोखा  , कलह -क्लेश   ही  दिखाई  पड़ता  है    इसका  कारण  यही  है  कि  मनुष्य  ने  केवल  अपनी  बुद्धि  के  विकास  पर  ध्यान  दिया ,  भावनाओं  की  उपेक्षा  कर  दी   l  वैज्ञानिकों  का  भी  मत  है  कि  सुख -शांति  और  तनाव रहित  जीवन  जीने  के  लिए   मनुष्य  के  बुद्धि  और  ह्रदय  में  संतुलन  अनिवार्य  है   अर्थात  बुद्धि  के  साथ  संवेदनशीलता , दूसरों  के  दरद  को  समझना  भी  अनिवार्य  है   l  ------ एक  जमींदार  था  l  साम , दाम , दंड , भेद   -हर  तरीका  अपनाकर   दूसरों  की  जमीन ,   सम्पत्ति     हड़प  कर     वैभव - विलासिता   का  जीवन   जीता  था   लेकिन  उसे  शांति  न  थी  , मानसिक  रूप  से  बहुत  परेशान   था  l   एक  बार  उसने  विधवा  बुढ़िया  का  खेत खेत  बलपूर्वक  छीन  लिया   l  बुढ़िया  ने  गाँव  के  सभी  लोगों  के  पास   इस  अत्याचार  से  बचाने  की  पुकार  की  ,  पर  किसी  की  हिम्मत   जमींदार  के  सामने  मुंह  खोलने  की  नहीं  हुई  l   दुःखी  बुढ़िया  ने   स्वयं  ही  साहस  समेटा  और  जमींदार  के  पास  यह  कहने  पहुंची   कि  खेत  नहीं  लौटाते   तो  उसमें  से   एक  टोकरी  मिटटी  खोद  लेने  दे ,   ताकि  उसे  कुछ  तो  मिलने  का  संतोष  हो  जाये  l  जमींदार  राजी  हो  गया   और  बुढ़िया  को  साथ  लेकर  खेत  पर  पहुंचा   l  उसने  रोते -धोते  एक  बड़ी  टोकरी  मिटटी  से  भर  ली   और  कहा ---  इसे  उठवाकर    मेरे  सिर  पर  रखवा  दे  l  टोकरी  बहुत  भारी  हो  गई  थी  l  जमींदार  ने   अकड़कर  कहा --- ' बुढ़िया  !  इतनी  सारी  मिटटी  सिर  पर  रखेगी  तो  दब  कर  मर  जाएगी   l  बुढ़िया  ने  उलटकर  पूछा  ----  यदि  इतनी  सी  मिटटी  से  मैं  दब  कर  मर  जाऊँगी  तो    तू  पूरे  खेत  की  मिटटी मिटटी  लेकर  कैसे  जीवित  रहेगा   ? '   जमींदार  सोच  में  पड़  गया  ,  उसके  ह्रदय  के  किसी  कोने  में  संवेदना  जाग  उठी   और  उसने  बुढ़िया  का  खेत  उसे    लौटा  दिया  l   उस  दिन  जमींदार  को  लगा   कि  उसके  सिर  पर  से  कोई  बोझ  उतर  गया ,  मन  हल्का  हो  गया   l   रात  को  चैन  की  नींद  सो  कर  जब  सुबह  आँख  खुली    तब  उसने  जाना  संवेदना  की  कीमत   क्या  होती  है  l