24 February 2020

WISDOM ----- शब्दों की शक्ति

   घटना  उन  दिनों  की  है  जब  एक  नवयुवक  स्वामी  दयानन्द जी  के  पास  पहुंचा  l   उस  समय  स्वामीजी  नाम स्मरण  के   संदर्भ   में  जन   समुदाय  के  समक्ष  भक्तियोग  का  उपदेश  दे  रहे  थे  l   तार्किक , शंकालु  और  अहंकारी   युवक  को   यह  सब  कुछ  अच्छा  नहीं  लगा  l  प्रवचन  के  बीच  में  ही  प्रतिवाद  करते  हुए  वह  बोल  उठा  -- "स्वामीजी , भक्ति  और  भगवन  क्या  होते  है  ?  नाम स्मरण  से  होने  वाला  फायदा  क्या  है ?   यह  शब्दों  का  ही  जाल - जंजाल  मात्र  है  l   इससे  किसी  को  कुछ  मिलने  वाला  नहीं  है  l  "
 स्वामीजी  चाहते  तो  अपना  उपदेश  जारी  रख  सकते  थे  , किन्तु  उन्हें  उस  जिज्ञासु  की  शंका  का  समाधान  करना  था  ,  अत:  वे  बड़े  जोश - खरोश  के  साथ  बोले  --- " पागल  कहीं  का  , जाने  क्या  बक  रहा  है  ?  जानता    भी  नहीं  और  मानता   भी  नहीं  l  अहंकार  इतना  बढ़ा - चढ़ा  है  जैसे  कोई  प्रकांड  पंडित  हो  l  " 
  स्वामीजी  के  इन  अपशब्दों  को  सुनकर  वह  युवक  तिलमिला  उठा   और  कहने  लगा ---- " आप  एक  संन्यासी  की  भांति  लगते  हैं  ,  फिर  भी  आपको  बोलने - चालने   का  सही  ढंग  नहीं  आया  है  l  "
  अब  स्वामीजी  बड़े  सहज  और  शांत  स्वर  में  बोले --- " अरे  भाई  ! आपको  क्या  हो  गया  ?  दो  चार  शब्द  ही  तो  निकले  हैं  l   इससे  क्या  आपको  कोई  विशेष  चोट  पहुंची  ?  यह  कोरे  शब्द  ही  तो  हैं  ,  पत्थर  तो  नहीं  ,  जिनसे  चोट  लगती  और  हड्डी  टूट  जाती  l   आप  स्वयं  भी  तो  कह  रहे  थे  कि   भक्ति  और  भगवान्  शब्द  आडम्बर  के  अतिरिक्त  और  कुछ  नहीं  हैं  l  जब  शब्दों  से  कुछ  बनता - बिगड़ता  नहीं   तो  फिर  आप  इतना  आगबबूला  क्यों  होते  जा  रहे  हैं  ?  "  स्वामी  दयानन्द  जी  ने  युवक  को  समझते  हुए  कहा --- ' परिशोधित - परिष्कृत  होने  पर  शब्द  अमृत  बन  सकते  हैं    और  विकृत  होने  पर  विष  का  काम  कर  डालते  हैं  l  बुरे  शब्दों  की  चोट  ने  जिस  प्रकार  आपको  मर्माहत  कर  घायल  कर  दिया  , ठीक  उसी  प्रकार  भगवान   के  पवित्र  नाम स्मरण  से  व्यक्ति  के  सद्गुण  विकसित  होते  हैं   और  भक्तिरस  से  सरावोर  होने  पर  दुःख - दरद   के  घाव  शीघ्र  भर  जाते  हैं   l   संतप्त  मन  शीतल  और  शांत  बनता  है  l "
 स्वामीजी  के  इस  उपदेश  का  उस  नवयुवक  पर  इतना  गहरा  प्रभाव  पड़ा  कि   वह  श्रद्धा सिक्त  होकर  उनके  पाँव  पर  गिर  पड़ा   और  बोलै --- " गुरुदेव  आपके  कथन  से  मेरी  शंका  पूरी  तरह  मिट  गई   और  वस्तुस्थिति  समझ  में  आ  गई  कि   मंत्रजप , स्तोत्रपाठ , नाम स्मरण  आदि  भाषा  का  विषय  नहीं  है   वरन  व्यक्ति  के  अंतराल   की  भाव - संवेदनाओं   को  जगाने  वाली  अलौकिक  शक्ति  सामर्थ्य  है  ,  जिसके  फलस्वरूप   अहंकार   एवं    अन्य   विकारों  को  विसर्जित   होने  में  जरा  भी  देर  नहीं  लगती   l  "