10 August 2021

WISDOM ------

  कहते  हैं  प्रार्थना  में ,  भगवान  के  नाम  स्मरण  में  बहुत  शक्ति  है    l   इससे  ईश्वर  प्रसन्न  होते  हैं    लेकिन  मनुष्य  को  मिलता  वही  है  जैसी  उसकी  प्रवृति  होती  है     l   कलियुग  का  एक  लक्षण  है   कि   लोग  केवल  दिखावे  के  लिए  भगवान  का  नाम  लेते  हैं  ,  उनके  आचरण  पवित्र  नहीं  है   l  ईश्वर  हमारे  अंतर्मन , हमारी  भावनाओं  को  समझते  हैं   और  उसी  के  अनुरूप  परिणाम  मिलता  है  l   ईश्वर  का  नाम  लेने  से  वे  सुनते  अवश्य  हैं  ,  लेकिन  भावनाएं  कलुषित  होने  के  कारण   प्रकृति  में  यही  सन्देश  जाता  है  कि   इन  लोगों  को   झगड़ा , तनाव   आदि  नकारात्मकता  ही  पसंद  है   इसलिए   प्रकृति  मनुष्य  की  पसंद  के  अनुसार   उसे  तनाव ,  बीमारी , महामारी  , आपदा   जैसे  सामूहिक  दंड  देती  है  l   हमें  भक्ति  साधना  नारद जी  से  सीखनी  चाहिए   जो  सच्चे  भक्त  होते  हैं  उन्हें  भगवान  पतन  के  गर्त  में  गिरने  से  बचाते   हैं  l                                             एक  कथा  है  -------  एक  बार  नारद जी  को  कामवासना  पर  विजय  पाने  का  अहंकार  हो  गया   था  l   उन्होंने  उसे  भगवान  विष्णु  के  सामने  भी  अभिमान  सहित प्रकट  कर  दिया    l  अहंकार  पतन  का  कारण  होता  है  इसलिए  भगवान  ने  सोचा  कि   भक्त  के  मन  में  अहंकार  नहीं  होना  चाहिए  l   भगवान  ने  माया    रची  ----  नारद जी  ने  देखा  कि   एक  बहुत  सुरम्य  और  बड़े  नगर  के  राजा  की   अति  सुन्दर   विश्वमोहिनी  पुत्री  का  स्वयंवर  है   l  उसे  देखकर  नारद जी  के  मन  में  यह  इच्छा  बलवती  हो  गई  कि   वे  उस  कन्या  से  विवाह  कर  लें   l     वे  सोचने  लगे   कि   कन्या  तो  इतनी  सुन्दर  है  और  उनका  रूप   ?  वो  उनके  गले  में  वरमाला  कैसे  डालेगी   ?     नारद  जी  तो  सच्चे  भक्त  थे  वे  विष्णु  भगवान  के  पास  गए  ,    अपनी  इच्छा  बताई    और  कहा  कि   कुछ  समय  के  लिए  वो  अपना  सुन्दर  रूप  उन्हें  दे  दें ,  जिससे  उनका  विवाह  उस  राजकन्या  से  हो  जाये   l  भगवान  तो  बहुत  दयालु  होते  हैं  , उनने  कहा  --- ' तथास्तु  '  l   अब  नारद   जी  बड़े  - बड़े  क़दमों  से  अति  प्रसन्न  होकर   स्वयंवर  भूमि  पहुंचे    l   सब  लोग  नारद जी  की  शक्ल  देखकर   मुस्करा  रहे  थे  ,  भगवान  ने  उन्हें  बन्दर  का  रूप  दे  दिया  था  l   राजकन्या  ने  भी  उनका  बन्दर  सा  मुख  देखकर  मुँह    फेर  लिया   और  मनुष्य  के  वेश  में  आए   भगवान  विष्णु  के  गले  में  जयमाला    डाल   दी  l  नारद जी  को  सबके  व्यवहार  पर  आश्चर्य  हुआ   कि   उनके  सुन्दर  रूप  पर  भी  लोग   ऐसे   हँस  रहे  हैं  ,  उन्होंने  पानी  में  अपनी  शक्ल   बन्दर  जैसी  देखी   तो  उन्हें  भगवान  पर  बहुत  क्रोध  आया   और  उन्होंने  भगवान  को  श्राप  दे  डाला  l  अब  भगवान  ने  अपनी  माया  समेट   ली  l   अब  वहां  न  महल  था , न  राजकन्या   l  नारद जी  की  आँखें  खुली  की  खुली  रह  गईं ,  उन्होंने  भगवान  से  क्षमायाचना  की   और  पूछा  कि   आपने  मुझे  बन्दर  का  रूप  क्यों  दे  दिया  ,   मना  कर  देते  l  भगवान  ने  कहा --- कामवासना  पर  विजय  संभव  नहीं  है  ,  लेकिन  तुम्हे  अहंकार  हो  गया  था  ,  उसे  मिटाने   के  लिए  ही  यह  माया  रची  l   भगवान  अपने  भक्त  की  केवल  बाहरी  शत्रु  से  ही  नहीं  आंतरिक  शत्रुओं  से  भी  रक्षा  करते  हैं  l   कोई  व्याकुल  रोगी  वैद्य  से  कुपथ्य  मांगे   तो   वैद्य  उसके  जीवन  की  रक्षा  के  लिए  उसे  कुपथ्य  कभी  नहीं  देगा  l '