4 December 2023

WISDOM -----

   यक्ष  ने  युधिष्ठिर  से  पूछा  ---- ' इस  संसार  का  सबसे  बड़ा  आश्चर्य  क्या  है  ? '  युधिष्ठिर  ने  उत्तर  दिया  ---  ' हर  रोज  आँखों  के  सामने  कितने  ही  प्राणियों  को  मृत्यु  के  मुख  में  जाते   देखकर  भी   शेष   मनुष्य  यही  सोचते  हैं  कि  वे  अमर  हैं  , यही  सबसे  बड़ा  आश्चर्य  है  l   "                                                                                मृत्यु  तो  सब  की  निश्चित  है   लेकिन   सांसारिक  आकर्षण  इतना  तीव्र  है  , कामना , वासना , तृष्णा , स्वाद , भय  , भोग -विलास  , इन  सब  में  मनुष्य  इतना  बंधा  हुआ  है  कि  वह  मृत्यु  को  भुला देता  है  l  एक  महत्वपूर्ण  बात  यह  भी  है   कि  यदि  मृत्यु  को  याद  रखा  जाए  तो  हर  कदम  फूंक -फूंक  कर  रखना  होगा  ,  जो  सबसे  कठिन  कार्य  है  l  इसलिए  मनुष्य   मृत्यु  का  विस्मरण कर  बेहोशी  का  जीवन  जीता  है  l    एक  लघु  कथा   है -------------- एक  पेड़  पर   दो  बाज  रहते  थे  l  एक  दिन  दोनों  शिकार  पकड़कर  लौटे  तो  एक  की   चोंच  में  चूहा  था   और  दूसरे  की  चोंच  में  सांप   और  अभी  जीवित  थे  l    दोनों  बाज  शाम  को  मिल  बैठकर  खाते  थे   l  अपना  शिकार  लेकर  जब  दोनों  पेड़  पर  बैठे  , उस  समय  सांप  और  चूहा  जीवित  थे  l  सांप  स्वयं  तो  मृत्यु  के   मुख  में  था  लेकिन  चूहे  को  देखकर  वह  अपनी  मृत्यु  भूल  गया ,  और  चूहे  को  खाने  के  लिए  उसकी  जीभ  लपलपाने  लगी  l   इधर  चूहा  मृत्यु  शैया  पर  पड़ा  था  , बाज  की  चोंच  से  घायल    अंतिम  साँस  गिन  रहा  था    लेकिन   अपनी  जान  बचाने  के  लिए  बाज  के  ही  पैरों  में   छुपने  की  कोशिश  करने  लगा  l   यही  हाल  मनुष्य  का  है  l 

WISDOM -----

   लघु  कथा ---- खडाऊं  पहन  कर  पंडित जी  मंदिर  की  ओर  चले  l  कदम  बढ़ने  के  साथ  खडाऊं  से  भी  खट -खट  का  स्वर  निकल  रहा  था  l  पंडित जी  को  यह  आवाज  पसंद  न  आई  l  वह  एक  स्थान  पर  खड़े  होकर   खडाऊं  से  पूछने  लगे ----" अच्छा  यह  तो  बताओ  कि  पैरों  के  नीचे  इतनी  दबी  रहने  पर  भी   तुम्हारे  स्वर  में  कोई  अंतर  क्यों  नहीं  आया  ? "   खडाऊं  ने   पैरों  के  नीचे   दबे -दबे  ही   पंडित जी  की  जिज्ञासा  शांत  करते  हुए   कहा ---- "  मैं  तो  जीने  की  इच्छुक  हूँ  पंडित जी  ,  इस  संसार  में  ऐसे  लोगों  की  कमी  नहीं   जो  दूसरों  के  दबाव  में  आकर   अपना  स्वर  मंद  कर  लेते  हैं  ,  उन्हें  तो  जीवित  अवस्था  में  भी  मैं   मरा  हुआ  मानती  हूँ   l "