30 October 2021

WISDOM

     असुरता  को  मिटाने  के  लिए  अध्यात्म  की  , दैवी  शक्तियों  की  आवश्यकता  है  l   व्यक्ति  का  जन्म  चाहे  किसी  भी  वंश  में  हो  ,  वह  अपनी  दूषित  प्रवृतियों  के  कारण  असुर  कहलाता  है   l  रावण  ऋषि  का  पुत्र  था   लेकिन  उसकी  प्रवृतियां  दूषित  थीं   इसलिए  वह  असुर  कहलाया   l   इस   असुरता  का  अंत  भगवान   राम  ने  किया  l   उसी  कुल  में  पैदा  हुआ  रावण  का  भाई  विभीषण   रावण  के  बिलकुल  विपरीत   था  , अत्याचारी  नहीं  था  ,  उसे  भगवान  राम  ने  शरण  दी  l     महाभारत  का  एक  पात्र  है  --घटोत्कच   l  पांडव  पक्ष  का  था  भीम  और  हिडिम्बा  का  पुत्र  था   l  वह  आसुरी ,  मायावी   तरीके  से  युद्ध  करना  जानता  था  ,  रात्रि  में  उसकी  ये  शक्तियां  और  प्रखर  हो  जाती  थीं  l   उसकी  असुरता  का  अंत  कर्ण  ने  उस  दैवी  शक्ति  से  किया  जो  देवराज  इंद्र  ने  उसे  दी  थी  l   उस  युग  की  मायावी  शक्तियों  का  ही  एक  रूप  कलियुग  में   तंत्र ,  जादू - टोना  ------ आदि  है  l    ऐसा  करने   - कराने  वाले   आसानी  से  पकड़े  नहीं  जाते   इसलिए      अनेक   लोग  ईर्ष्या -द्वेष , स्वार्थ   आदि  अनेक  कारणों  से  इन  नकारात्मक  शक्तियों  का  प्रयोग  करते   हैं  l    संसार  में  कायरता   बढ़  जाने  के  कारण   लोग  पीठ  पीछे  ,  छुपकर  वार  करते  हैं   l    यही  असुरता  है   l   असुरता   का अंत  हमेशा  ही  भयानक  होता  है   l     ये   असुरी  शक्तियां   व्यक्तियों  के  जीवन   को    तो  अनेक   समस्याओं  से   ग्रस्त  कर  देती  हैं  ,  इनसे  पर्यावरण    में  नकारात्मक      तत्व    बढ़  जाते  हैं  l    अशांति , तनाव  ,  लाइलाज  बीमारियाँ     इसी   का घातक  परिणाम  है   l    इस  नकारात्मकता  को  पराजित  करने  के  लिए   भी  दैवी  शक्तियों   की आवश्यकता  है   l