कहते हैं इस धरती पर जब भी कोई प्राणी जन्म लेता है तो विधाता आते हैं और उसके माथे पर उसका भाग्य लिख कर जाते हैं l इन भाग्य की रेखाओं को मिटाना असंभव है l अब वह व्यक्ति अपने पुरुषार्थ से अपने भाग्य को कितना संवार सकता है या अपने आलस से कितना बिगाड़ सकता है , यह एक अलग समस्या है l कलियुग की समस्या कुछ अजीब ही है ----- अब लोगों में ईर्ष्या , द्वेष , लालच , महत्वाकांक्षा इस कदर बढ़ गया है कि वे दूसरे के भाग्य को चुरा लेना , छीन लेना चाहते हैं l तांत्रिक और नकारात्मक शक्तियों की मदद से वे दूसरे के सुख को छीन कर स्वयं भोगना चाहते हैं l अपने धन , शक्ति , अहंकार और ज्ञान के दुरूपयोग से भगवान को चुनौती देते हैं l सर्वशक्तिमान ईश्वर के लेख को मिटाने का दुस्साहस करने का दुष्परिणाम यह होता है कि ऐसे तांत्रिकों और नकारात्मक शक्तियों के साथ काम करने वाले और उनका साथ देने वालों का जीवन असहनीय कष्ट और गहन अंधकार में डूबता जाता है l इसी सत्य को बताने वाला एक प्रसंग है ---------- महर्षि वर्ष तंत्र विद्या के बहुत बड़े ज्ञाता थे l उनके दो शिष्यों --व्याडि और इन्द्रदत्त ने उनसे निवेदन और हठ किया वे यह गूढ़ विद्या उन्हें सिखा दें l महर्षि ने उन्हें बहुत समझाया कि इस विद्या के लिए अपने अंत:करण को शुद्ध बनाना पड़ता है , सद्गुण और सन्मार्ग पर चलने की साधना करनी पड़ती है , अन्यथा दुरूपयोग की संभावना रहती है l लेकिन दोनों शिष्यों के बहुत तर्क और हठ करने पर महर्षि ने सोचा कि कहीं यह विद्या लुप्त न हो जाये और उन शिष्यों के कहने पर कि वे इस विद्या का उपयोग विश्व कल्याण के लिए करेंगे तब महर्षि ने उन्हें अनेक योग , आसन ,प्राणायाम , हठ योग , परकाया प्रवेश , अन्य लोकों में अभिगमन आदि अनेक गूढ़ विद्या सिखा दीं l दोनों शिष्य सब सीखकर इनके बहुत बड़े ज्ञानी बन गए l जब घर चलने का समय हुआ तो शिष्यों ने गुरु से कहा कहा --- 'हम आपको गुरु दक्षिणा में क्या दें ? ' गुरु ने कहा ---- तुम देश , संस्कृति और विश्व कल्याण के लिए कार्य कर इस ज्ञान को सार्थक करो l लेकिन शिष्यों को तो अपने ज्ञान का अहंकार था , उन्होंने गुरु से कोई भौतिक वस्तु मांगने को कहा l शिष्यों की जिद्द पर गुरु ने कहा ---- " ठीक है तुम एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ लाकर दो , जिनसे इस आश्रम का जीर्णोद्धार हो सके l " दोनों शिष्यों में बहुत अहंकार था , परिश्रम और सही दिशा से धन कमाने की बजाय वे कोई तरकीब सोचने लगे , जिससे तुरत -फुरत धन आ जाये l जिस दिन वे ऐसी मंत्रणा कर रहे थे उसी दिन मगध सम्राट नन्द की मृत्यु हो गई l उन दोनों शिष्यों ने वररुचि नामक व्यक्ति को अपना मित्र बनाया और यह तय किया कि इन्द्रदत्त मगध सम्राट नन्द के शरीर में परकाया प्रवेश करे , फिर इन्द्रदत्त के शव की रक्षा व्याडि करे और जब इन्द्रदत्त की आत्मा नन्द के शरीर में पहुँच जाये , तब वररुचि जाकर उनसे एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ मांग लाए जिससे गुरु दक्षिणा चुका दी जाए और अपने लिए भी धन प्राप्त हो जाये l सब व्यवस्था कर ली , फिर जैसे ही इन्द्रदत्त ने अपने शरीर से प्राण निकाल कर नन्द के शरीर में प्रवेश किया , मगध सम्राट नन्द जी उठे , सारी जनता चकित रह गई l इस रहस्य को और कोई तो नहीं जान पाया , पर नन्द का मंत्री शकटारी बहुत बुद्धिमान था , वह सारी स्थिति समझ गया l उसने तत्काल पता लगाकर इन्द्रदत्त के शव का दाह संस्कार करा दिया , व्याडि को बंदी बनाकर कारागृह में डाल दिया l अब इन्द्रदत्त के शरीर का तो दाह हो चुका था इसलिए इन्द्रदत्त नन्द के शरीर में ही रह रह गया और भोग वासनाओं में डूब गया और चन्द्रगुप्त के हाथों मारा गया और व्याडि कारागृह में यातनाओं से मर गया l जो योग विद्या जन कल्याण के उदेश्य से सिखाई गई थी वह अहंकार के कारण अपने साधकों को ही ले डूबी l ------ ये गूढ़ विद्या है l व्यक्ति स्वयं ऐसा ज्ञान प्राप्त कर के या ऐसी विद्या के जानकार की मदद लेकर परिवार , समाज से लुक छिपकर बहुत अनर्थ करता है लेकिन अपनी आत्मा से और ईश्वर की निगाह से बच नहीं पाता l काल के अनुसार निर्धारित समय पर वह अपने किए का घोर दंड पाता है l
31 October 2023
29 October 2023
WISDOM -----
एक जिज्ञासु ने एक विद्वान् से पूछा ------ इस संसार में अब तक इतने महात्मा , साधु -संत और अवतार हो चुके हैं , सबने इस दुनिया को भला बनाने का प्रयास किया , पर किसी के प्रयत्नों का कोई फल नहीं हुआ l संसार जैसे का तैसा पापपूर्ण अभी भी बना हुआ है , इसमें सदा ही बुराइयों की भरमार रहती है l ' जिज्ञासु ने उस व्यक्ति को एक कहानी सुनाई ---- एक गरीब आदमी ने किसी तरह भूत को अपने वश में करने की सिद्धि प्राप्त कर ली l भूत सामने आ गया और बोला ---- महोदय ! मुझसे जो चाहे काम करा लो लेकिन मैं ठाली न बैठूँगा , जब ठाली रहूँगा तो आप पर ही पिल पडूंगा l " अब गरीब आदमी ने उससे महल , नौकर , खजाना , सभी सुख सुविधाएँ एक -एक कर के जुटा लीं l हर कार्य तुरंत कर के उसके सामने खड़ा हो जाता की अब और काम बताओ l वह व्यक्ति परेशान हो गया l एक तांत्रिक की सलाह पर उसने भूत को कुत्ते की पूंछ सीधी करने का काम सौंप दिया l अब भूत जितनी बार भी उस पूंछ को सीधी करता वह फिर टेढ़ी हो जाती l इस तरह उसे उस भूत से छुटकारा मिला l यह कथा सुनाकर विद्वान् ने जिज्ञासु से कहा ---- हमारा मन भी एक प्रकार का भूत है जो हर समय संसार के सुखों के पीछे भागता रहता है l परमात्मा ने संसार में इतनी बुराइयाँ इसलिए छोड़ रखी हैं कि मनुष्य अपने मन को कुत्ते की पूंछ को सीधा करने यानि इन बुराइयों को दूर करने में लगाये l ये बुराइयाँ आत्मउद्धार का अभ्यास करने के लिए हैं l निरंतर अभ्यास कर के मनुष्य अपने मन पर नियंत्रण कर अपने विकारों को दूर कर सकता और अपनी चेतना को परिष्कृत कर सकता है l
WISDOM -----
लघु कथा ---- नि :शस्त्रीकरण ------ एक चिड़ियाघर के जानवरों ने इकट्ठे होकर विचार किया कि नि:शस्त्रीकरण की नीति पर चलना चाहिए l गेंडे ने कहा --- दांत और पंजे सबसे अधिक खतरनाक होते हैं , उन पर प्रतिबन्ध लगाया जाये , सींग तो केवल रक्षा का साधन मात्र है l " भैंसा और हिरन से लेकर कांटो वाली सेई तक ने गेंडे की बात का समर्थन किया l शेर ने दांतों और पंजे को खाने और चलने का साधारण साधन बताते हुए कहा --- " सींग ही निरर्थक वस्तु है , सर्व सम्मति से सींग का प्रयोग ही निषिद्ध करा जाए l " बाघ , चीता और सियार से लेकर वन बिलाव ने इस तर्क की प्रशंसा की l रीछ की बारी आई , तो उसने कहा ---- " सींग और दांत , पंजे यह सभी हानिकारक हैं l जरुरत पड़ने पर आलिंगन करने के मित्रतापूर्ण ढंग पर छूट रखी जानी चाहिए l " जो लोग रीछ की आदत को जानते थे , वे उसकी चालाकी ताड़ गए और मन ही मन बहुत कुढ़े l अपने पक्ष का समर्थन और प्रतिपक्षी का विरोध करने के जोश में बहुत शोर मचने लगा , एक दूसरे पर गुर्राने लगे , यहाँ तक कि टूट पड़ने की बात सोचने लगे l चिड़ियाघर के मालिक ने जब यह शोर सुना तो उसने उन सबको अपने -अपने बाड़े में खदेड़ दिया और कहा ---- " मूर्खों ! तुम भलमनसाहत से अपनी -अपनी मर्यादाओं का पालन करो , तो बिना नि:शस्त्रीकरण के भी काम चल सकता है , सब जानवर शांति से रह सकते हैं l लेकिन तुम में जो शक्तिशाली है वह भी अपने हथियार को सुरक्षित रखकर दूसरे पर प्रतिबन्ध लगाकर उसे अपने आधीन करना चाहता है l l " क्रोध में मालिक ने बाड़े का दरवाजा बंद कर दिया l
28 October 2023
WISDOM -----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " प्रतिद्वंदी को पछाड़ो मत l अपनी महानता का परिचय देकर उसे क्षुद्र बनने दो l जीवन एक अवसर है , जिसे यदि गँवा दिया जाये तो हाथ से सब कुछ चला जाता है और यदि उसका सही उपयोग कर लिया जाये तो प्रगति के चरम शिखर पर पहुंचा जा सकता है l " यदि ईश्वर की कृपा से किसी के पास सद्बुद्धि है , विवेक है तो वह अपने अपमान का बदला लेने के लिए उससे विवाद , झगडा , लड़ाई , युद्ध आदि करने में अपनी ऊर्जा को बर्बाद नहीं करता l वह अपना समय और अपनी ऊर्जा को स्वयं को ऊँचा उठाने में लगाता है जिससे प्रतिद्वंदी स्वत: ही पराजित हो जाता है l ----- एक प्रसंग है ----- मरण शैया पर पड़े पिता ने अपने पुत्र बैजू से कहा ---- ' संगीत के दर्प में तानसेन ने मेरा अपमान किया , तू उससे बदला अवश्य लेना l " अपने पिता की अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए बैजू अँधेरी रात में हाथ में परशु लेकर तानसेन के महल में पहुंचा l उसने दरवाजे की झिरझिरी से झांककर देखा कि देवी सरस्वती की प्रतिमा के आगे बैठ वे अध्ययन कर रहे थे l आशीर्वाद देती हुईं देवी की शांत मुद्रा की प्रतिमा को देखकर बैजू सोचने लगा ---- " ऐसा प्रतिशोध किस काम का जिसमे अपना पतन हो जाये l वह देवी से प्रार्थना करने लगा कि 'माँ मुझे सद्बुद्धि दो l ' अब वह वापस लौट आया और अपनी संगीत साधना के आधार पर प्रतिशोध लेने का विचार करने लगा l अपनी वीणा और वाद्य यंत्रों को लेकर वह दिन -रात साधना में लीन रहता , उसे खाने -पीने की भी सुध नहीं थी l प्रतिशोध की भावना नष्ट हो चुकी थी बैजू की ख्याति फैलने लगी और अकबर के कानों तक पहुंची l l अकबर उसका संगीत सुनने उसकी झोंपड़ी में पहुंचे और उसका संगीत सुनकर मन्त्र -मुग्ध हो गए , उन्होंने तानसेन की ओर देखा , तो तानसेन ने अपनी पराजय को स्वीकार किया और कहा --- " जहाँपनाह ! मैं आपको खुश करने के लिए गाता हूँ और बैजू ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए गाता है l जो अंतर ईश्वर और आप में है , वही अंतर बैजू और मुझ में है l " बैजू का प्रतिशोध सकारात्मक दिशा में पूरा हुआ , उसकी अनवरत साधना के कारण संसार ने उसे बैजू बावरा के नाम से जाना l
27 October 2023
WISDOM ----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " समय परिवर्तनशील है किन्तु किसी भी तरह के समय को परिवर्तित करना हमारे हाथ में नहीं होगा , यह परिवर्तन स्वत: होता है , जिसे हमें स्वीकार करना होता है जिस तरह हम रात्रि को दिन में नहीं बदल सकते , लेकिन विद्युत के माध्यम से बल्ब जलाकर अंधकार को दूर कर सकते हैं , उसी तरह हम जीवन में दुःख , कष्ट , पीड़ा , अपयश , उपेक्षा , तिरस्कार आदि के आने पर इन्हें तुरंत दूर नहीं कर सकते , लेकिन इन परिस्थितियों में ईश्वर का नाम स्मरण करते हुए और शुभ कर्म , तप ( ईमानदारी से कर्तव्य पालन ) कर के हम इनकी पीड़ा को कम कर सकते हैं और लाभान्वित हो सकते हैं l " सुख -दुःख के चक्र के बारे में अकबर -बीरबल का एक प्रसंग है ----- एक बार अपने सभाजनों के सामने सम्राट अकबर ने प्रश्न किया --- " इस संसार में ऐसा क्या है , जिसको जान लेने के बाद सुख में दुःख का अनुभव हो और दुःख में सुख का अनुभव हो ? " उनके इस प्रश्न से सभा में सन्नाटा छ गया , सभी की नजरें बीरबल की ओर थीं l बीरबल भी हाजिरजवाब थे , वे बोले ---- " यह समय भी गुजर जायेगा l " बुद्धिमान बीरबल के इस जवाब से अकबर बहुत प्रसन्न हुए l समय गुजर जाने की बात से सुखी व्यक्ति को दुःख का एहसास और दुःखी व्यक्ति को सुख का एहसास होना स्वाभाविक है l
26 October 2023
WISDOM ---
सुख -शांति से , तनाव रहित जिन्दगी जीने का एक तरीका यह भी है कि हम अपने जीवन में जो भी कठिनाइयाँ , दुःख , अपमान , संघर्ष ---किसी भी तरह की नकारात्मकता को झेल रहे हैं , तो उन सबके बीच कौन सा एक सुख भी है , उसे ढूंढ लें l हर कष्ट में , हर दुःख में कहीं न कहीं एक छोटा सा सुख अवश्य छिपा होता है , हमें उसी को ढूंढना है क्योंकि वही एक आशा की किरण है जो हमें जीवन जीने की हिम्मत और प्रेरणा देती है l जब हर तरफ से नकारात्मकता ने हम पर आक्रमण किया हो , तब उसके बीच सकारात्मकता को खोजना केवल ईश्वर विश्वास से ही संभव है l यदि हमें ईश्वर की सत्ता पर विश्वास है तो उस सकारात्मकता को हम अपने अन्दर महसूस करते हैं और उस आंधी -तूफ़ान के बीच भी अटल रहते हैं हमें यह अटल विश्वास होता है कि अँधेरा मिटेगा , सुबह अवश्य होगी l इसके पीछे एक सत्य यह भी है कि हमारी शांति देखकर अन्य लोग अवश्य तनाव में आ जाएंगे कि इतनी मुसीबतों और नकारात्मकता के बीच यह शांत कैसे है ? एक कथा है ----- एक बार बाबा फरीद रास्ते से गुजर रहे थे l उनके शिष्य भी उनके साथ थे l शिष्य उनका बहुत आदर , सम्मान करते थे l रास्ते पर चलते हुए बाबा फरीद के पाँव में अचानक पत्थर से चोट लग गई और वे जमीन पर गिर पड़े l उनके पैर से खून निकलने लगा l इससे उनके शिष्यों को बड़ी पीड़ा हुई l शिष्यों ने कहा , यह जरुर किसी की शरारत है l कल शाम को जब हम निकले थे , तब यह पत्थर यहाँ पर नहीं था l किसी ने जरुर सोचा होगा कि सुबह यहाँ से निकलेंगे और मस्जिद जाएंगे , इसलिए किसी ने जानबूझकर इस पत्थर को यहाँ पर रख दिया l शिष्यों की इस बात पर बाबा फरीद ने उन्हें समझाया कि तुम सब इन व्यर्थ की बातों में मत पड़ो और वे स्वयं घुटने टेककर खुदा को धन्यवाद देने बैठ गए l अपनी प्रार्थना पूरी करने के बाद उन्होंने कहा ---- " ऐ खुदा ! तेरी बड़ी कृपा है l अपराध तो मेरे ऐसे हैं कि आज मुझे फाँसी मिलती , लेकिन तूने मुझे सिर्फ पत्थर की चोट दी l तेरी करुणा अपार है l "
25 October 2023
WISDOM -----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " बात परिवार की हो , समाज की हो , देश या विश्व की हो सब तरफ झगड़े फैल रहे हैं , सारा विष घुल रहा है जीवन में l इसके पीछे केवल एक कारण है कि भीषण रूप से छीना -झपटी मची हुई है , आधिपत्य करने की होड़ है l " त्रेतायुग में भगवान श्रीराम अपना अधिकार त्यागने के लिए तत्पर थे और भरत अपना सुख त्यागने के लिए तत्पर थे तो कहीं कोई झगड़ा ही नहीं था l झगड़ा तो तब खड़ा होता है जब कोई दुर्योधन कहता है कि मैं पांडवों को पांच गाँव तो क्या सुई की नोक बराबर भी भूमि नहीं दूंगा l कलियुग में वर्तमान में स्थिति और भी भयावह है , अब कुछ देने की तो बात ही नहीं है , अब तो केवल छीनना है l जिसके पास थोड़ी भी ताकत है वह दूसरों का हक छीनता है l अब लोग किसी को सुख -शांति से जीवन जीते नहीं देख सकते l यदि किसी ने अपनी मेहनत से अपने को स्थापित किया है तो आसुरी मानसिकता के लोग उसे मिटाने की जी तोड़ कोशिश करते हैं l नकारात्मक शक्तियां इतनी प्रबल हैं लेकिन विधाता के लेख पर उनका वश नहीं है l विज्ञानं और नकारात्मक शक्तियों का सहारा लेकर अब तो आसुरी प्रवृत्ति के लोग विधाता से भी दो -दो हाथ करने को तैयार हैं l ये असुर ऐसे क्यों होते हैं ? ऋषियों का कहना है --- वे आत्महीनता की ग्रंथि से ग्रस्त रहते हैं l वे अपने अन्दर खालीपन महसूस करते हैं , जिसको वे बाहर पूरा करना चाहते हैं l -------- कहते हैं एक बार तैमूरलंग ने एक राज्य पर आक्रमण किया l तैमूरलंग लंगड़ा था इसलिए उसे तैमूरलंग कहा जाता था l जिस राज्य पर उसने हमला किया वहां का सुल्तान काना था l हमले के बाद सुलह हुई , समझौता हुआ और उसके बाद दोनों मिल बैठकर बातें कर रहे थे l इस अवसर अनेक लोगों को बुलाया गया था , उनमे कुछ फकीर , संत महात्मा भी थे l उस समय तैमूर परिहास की मनोदशा में था , हँसता हुआ सुल्तान से बोला कि मैं लंगड़ा और तुम काने , ये खुदा को भी क्या हो गया है ? लंगड़े -कानों को सुल्तान बनाता रहता है l इतने लोगों का कत्लेआम हुआ , विधवाओं और अनाथ बच्चों और घायलों की चीखें अभी तक वातावरण में थीं , उस पर तैमूर का परिहास ! सभा में उपस्थित एक फकीर ने कहा ---- "हुजूर ! दरअसल लंगड़े -कानों को ही सल्तनत की जरुरत होती है l वे आत्महीनता की ग्रंथि से ग्रस्त रहते हैं l वे अपने अन्दर कुछ कमी महसूस करते हैं , जिसको वे बाहर पूरा करना चाहते हैं l जो अपने में जितना ज्यादा संतुष्ट -संतृप्त होता है वो बाहर की उपलब्धियों की तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखता है l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- सेवा -परोपकार के कार्यों और निष्काम कर्म से जीवन का खालीपन दूर होता है , यह आत्मा की खुराक है इसी से आत्मा को तृप्ति और मन को शांति मिलती है l
24 October 2023
WISDOM -----
विजय दशमी का पर्व इस सत्य की बार -बार गवाही देता है कि हर अत्याचारी , आततायी और कुकर्मी का अंत अवश्य ही होता है l रावण मायावी था , तंत्र विद्या का ज्ञाता और महान तांत्रिक था l उसने अपने अहंकार और दंभ प्रदर्शन के लिए अपनी शक्तियों का दुरूपयोग किया इसलिए उसका अंत करने के लिए स्वयं भगवान श्रीराम को इस धरती पर आना पड़ा l तंत्र विद्या का प्रयोग आदिकाल से ही इस संसार में हो रहा है और ये तांत्रिक अपने इष्ट देवी -देवताओं से शक्ति प्राप्त कर इस विद्या का घोर दुरूपयोग करते हैं l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " सामर्थ्य के संग जब अहंकार जुड़ जाता है , तो विनाश होता है और जब सामर्थ्य के संग संवेदना जुड़ती है तो विकास होता है l " बाबा गोरखनाथ जी के समय का प्रसंग है ----- उस समय तांत्रिक अपनी तंत्र विद्या का दुरूपयोग कर भोले -भाले इनसानों को भटका रहे थे और अपनी तंत्र विद्या के ऐसे जघन्य और वीभत्स प्रयोग कर रहे थे जिससे मानवता कराह उठी थी l इस कारण मानवीय और आध्यात्मिक मूल्यों की रक्षा के लिए बाबा गोरखनाथ जी इन महा भ्रष्ट तांत्रिकों को सबक सिखा रहे थे l इन तांत्रिकों ने स्वयं को बचाने के लिए अपनी आराध्या एवं इष्ट माँ चामुंडा देवी की प्रार्थना की l देवी चामुंडा प्रकट हुईं और क्योंकि तांत्रिक उनके भक्त थे इसलिए उनकी सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए माँ चामुंडा ने बाबा गोरखनाथ जी पर खड्ग उठा लिया l गोरखनाथ जी ने कहा ---- " माता ! प्रत्येक इनसान अपने भाग्य से प्राप्त सुख -दुःख को भोगता है परन्तु ये तांत्रिक अपनी विद्या के बल पर लोगों को निरर्थक कष्ट दे रहे हैं l यह न्यायोचित नहीं है और न ही धर्म है l जो भी ऐसा दुष्कर्म करेगा उसको हम अवश्य दण्डित करेंगे l " लेकिन देवी चामुंडा अपने भक्तों को दिए वचन से बद्ध थीं अत: उन्होंने गोरखनाथ जी के ऊपर भीषण प्रहार किया l बाबा गोरखनाथ महान तपस्वी थे और स्वयं तंत्र विद्या में पारंगत थे और समाज में फैली तंत्र की विकृति को दूर कर शुद्ध सात्विक और लोकोपयोगी तंत्र विद्या की स्थापना करना चाहते थे l इनके गुरु मत्स्येन्द्रनाथ थे जो भगवान शिव के शिष्य थे l चामुंडा देवी के सामने गोरखनाथ जी वज्र के समान खड़े रहे l कहते हैं दोनों महान शक्तियों में तीन वर्षों तक युद्ध चला l तीन वर्ष के कड़े संघर्ष के बाद गोरखनाथ जी ने देवी चामुंडा को कीलित कर लिया और धरती से तांत्रिकों के उपद्रवों को शांत कर दिया l गोरखनाथ जी ने अपनी दिव्य द्रष्टि से देखा कि ये तांत्रिक फिर से अपनी शक्तियों को समेटकर धरती पर उपद्रव करने आयेंगे l उनका यह कथन सत्य है , आज संसार के अधिकांश देशों में तंत्र , ब्लैक मैजिक आदि अनेक तरह की नकारात्मक शक्तियों का प्रयोग होता है l ये शक्तियां पीठ पर वार करती हैं , समाज और कानून की पकड़ से बाहर होने के कारण इनका प्रयोग करने वाले समाज में शरीफ ही बने रहते हैं लेकिन ईश्वर की निगाह से कोई बच नहीं सकता , इनका अंत बहुत बुरा होता है l बाबा गोरखनाथ जी ने जब अपनी दिव्य द्रष्टि से यह देखा तो संसार को आश्वासन दिया कि इस बार इनको दण्डित करने वाला देवदूत आएगा और इनका संहार करेगा l इसी से स्रष्टि में संतुलन आएगा और सतयुगी वातावरण विनिर्मित होगा जिसकी सुगंध हजारों वर्षों वर्षों तक अनुभव की जाती रहेगी l
22 October 2023
WISDOM -----
विधाता ने स्रष्टि की रचना की l पेड़ -पौधे , पशु -पक्षी , वनस्पति की रचना की l मनुष्य की रचना करते समय उन्होंने उसे बुद्धि दी l विधाता ने उसे यह बुद्धि इस विश्वास पर दी कि वह ईश्वर की बनाई इस स्रष्टि को और अधिक सुन्दर बनाएगा l लेकिन संसार के सुख -भोग और विविध आकर्षणों ने मनुष्य को स्वार्थी बना दिया l बुद्धि होने के कारण मनुष्य में अपने ज्ञान का अहंकार तो था ही , अब उस अहंकार ने स्वार्थ और महत्वाकांक्षा से दोस्ती कर ली इसका परिणाम हुआ कि मनुष्य की बुद्धि , दुर्बुद्धि में बदल गई l अब स्थिति इतनी विकट हो गई कि मनुष्य ही मनुष्य से भयभीत है l अब जंगली जानवरों का भय नहीं है l जंगली जानवरों से तो फिर भी सुरक्षा संभव है लेकिन दुर्बुद्धिग्रस्त इस संसार में कब किसका मास्क उतर जाये , उसका असली रूप सामने आ जाये , कोई नहीं जानता l कई बातों में जानवर मनुष्य से ज्यादा समझदार हैं l जानवर इसलिए श्रेष्ठ हैं क्योंकि वे छल -कपट नहीं जानते , किसी को धोखा नहीं देते l वे सिर्फ प्रेम की भाषा जानते हैं और नि;स्वार्थ प्रेम के सामने अपनी हिंसक वृत्ति भी छोड़ देते हैं l एक कथा है ----- जंगल में एक शिकारी के पीछे बाघ पड़ गया l घबराकर शिकारी एक पेड़ पर चढ़ गया l उसी वृक्ष पर एक रीछ भी बैठा था बाघ को पेड़ पर चढ़ना नहीं आता था , वह भूखा था इसलिए पेड़ के नीचे बैठकर वह रीछ या मनुष्य के नीचे उतरने का इंतजार करने लगा l बहुत देर हो गई तब बाघ ने धीरे से रीछ से कहा ---- " यह मनुष्य हम दोनों का शत्रु है l तू इसे धक्का मार l मैं इसे खाकर चला जाऊँगा और तेरा जीवन बच जायेगा l " रीछ ने कहा ---- " नहीं , यह मेरा धर्म नहीं है l इसने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा , और वैसे भी मैं ऐसे गिरे हुए कार्य नहीं करता l " अब बाघ ने शिकारी से कहा --- " वह रीछ को धक्का मार दे तो उसकी जान बच जाएगी l " शिकारी बहुत खुश हुआ और अपनी दुष्प्रवृत्ति के कारण चुपचाप रीछ के पीछे जाकर उसे पीछे से धक्का दे दिया l गिरते -गिरते पेड़ की एक डाल रीछ की पकड़ में आ गई l अब बाघ ने रीछ से कहा ---:देखा , जिस मनुष्य की तूने रक्षा की , वही तुझे मारने को तैयार हो गया l अब तू बदला ले और इसे धक्का मार l : रीछ ने कहा ---- " नहीं ! मैं ऐसे कायरतापूर्ण कार्य नहीं करता l वह भले ही अपने धर्म से विमुख हो गया हो , लेकिन मैं ऐसा नीचता का कार्य नहीं करूँगा l " मनुष्यों में भी अनेक परोपकारी और भावनाशील हैं जिनके जीवन के कुछ सिद्धांत है और वे उन सिद्धांतों के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करते l
20 October 2023
WISDOM -----
जब मनुष्य स्वयं को भगवान मानने लगता है , कर्मफल और पुनर्जन्म को नहीं मानता , ऐसा व्यक्ति हिरण्यकश्यप की तरह अपने -पराये सभी को उत्पीड़ित करता है l छोटे से लेकर बड़े स्तर तक आज संसार में ऐसे लोगों की ही भरमार है l महाभारत की कथा का संसार में प्रचार -प्रसार अवश्य होना चाहिए ताकि संसार कर्मफल को समझे l महाभारत का एक पात्र है ---अश्वत्थामा l जब दुर्योधन युद्ध भूमि में घायल पड़ा था , उसे अफ़सोस था कि वह किसी भी पांडव को विशेष रूप से भीम को पराजित नहीं कर सका तब अश्वत्थामा ने दुर्योधन से कहा वह उसे पांडवों के सिर लाकर उसे देगा l आमने -सामने के युद्ध में तो पांडवों को पराजित करना असंभव था इसलिए रात्रि के समय जब सब पांडव आदि शिविर में सो रहे थे तब उसने शिविर में चुपचाप प्रवेश किया l भगवान श्रीकृष्ण तो अन्तर्यामी थे वह उसके आने के पूर्व ही पांडवों को शिविर से बाहर ले गए , उन्होंने द्रोपदी के पांचों पुत्रों से भी चलने को कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया l अँधेरे की वजह से अश्वत्थामा देख नहीं सका और पांडवों की जगह सोये हुए द्रोपदी के पाँचों पुत्रों के सिर काटकर ले गया l घायल दुर्योधन ने उससे कहा कि वह उसे भीम का सिर दे ताकि वह उसे ही कुचलकर अपना प्रतिशोध ले सके l जब अश्वत्थामा ने उसके हाथ में एक सिर दिया तब दुर्योधन ने देखा कि यह तो बहुत कोमल सिर है , यह भीम का सिर नहीं हो सकता l दुर्योधन ने उन पांचों सिर को हाथ में लेकर देखा , उसे बहुत अफ़सोस हुआ उसने कहा ---' अश्वत्थामा यह तुमने कैसा जघन्य कार्य किया , उफ़ ! ये तो द्रोपदी के पांच पुत्र हैं , बदले की आग में यह क्या कर दिया ! दुर्योधन ने तो पछतावे के साथ अंतिम साँस ली लेकिन प्रकृति ने अश्वत्थामा को क्षमा नहीं किया l भीम ने अश्वत्थामा को पकड़कर भगवान श्रीकृष्ण के सामने प्रस्तुत किया और कहा कि इसे मृत्यु दंड मिलना चाहिए l तब द्रोपदी ने कहा --- जैसे मैं पुत्र वियोग में दुःखी हूँ वैसे ही इसकी माता भी दुःखी होगी , इसे छोड़ दो l तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा --इसने जो जघन्य कर्म किया है , उसे इसकी सजा अवश्य मिलनी चाहिए , उन्होंने भीम से कहा --इसके माथे पर जो मणि है उसे निकाल लो l मणि निकल जाने से उस स्थान पर कभी न भरने वाला घाव हो गया , जिसमें से हमेशा मवाद बहता था बदबू आती थी l हजारों वर्षों तक यह ऐसे ही भटकता रहेगा l पुराने लोग कहा करते थे कि यदि अचानक कहीं तेज बदबू आने लगे तो समझो कि अश्वत्थामा वहां से निकल गया l यह प्रसंग लोगों को जागरूक करने के लिए है कि युद्ध , दंगे और बदले की भावना के कारण बच्चों , महिलाओं और निर्दोष प्राणियों को मत सताओ , सोते हुए , नि:शस्त्र लोगों की हत्या मत करो ! प्रकृति में क्षमा का प्रावधान नहीं है l केवल अपराध करने वाला ही नहीं , उसका साथ देने वाले भी ईश्वर के क्रोध से बच नहीं सकते l
19 October 2023
WISDOM -----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----' लोभ का अर्थ है --- कुछ पाने की लालसा , इस लालसा से प्रवृत्त होकर मनुष्य में कामनाएं , महत्वाकांक्षाएं पनपती हैं और उनके पूरा न होने पर मन में अशांति जन्म लेती है l मन एक भिखारी की तरह है सदा कुछ मांगता ही रहता है l उसे जितना दें , उतनी ही उसकी कामना बढ़ती जाती है l जितना पाने की लालसा या लोभ बढ़ता है , उतनी ही इनसान की दौड़ -धूप बढती है l उतना ही व्यक्ति नए -नए तरीकों से उस वस्तु को पाने का प्रयत्न करता है l एक तरीके से न मिले तो दूसरे तरीकों की तलाश करता है l लालसा जितनी तीव्र होती है --- उतना ही मनुष्य नए -नए विभिन्न तरीकों के कर्मों से उस लालसा को पूरा करने का प्रयत्न करता है l इससे भी जब सारी कामनाएं मन की पूरी नहीं हो पातीं तो मनुष्य विक्षिप्त , अशांत हो जाता है l ' शास्त्रों में ययाति की कथा आती है ---- वह राजा था l उसने सौ वर्ष का जीवन जी लिया तो यम के दूत उसे लेने आ गए l वह उनके आगे हाथ -पैर जोड़ने लगा --- मेरे मन में अनेकों लालसाएं हैं जो अभो पूरी नहीं हुईं , कृपया एक मौका और दें l यमदूत बोले --- " यदि तुम्हे कोई अपनी आयु दे दे , तो तुम उसकी आयु का भोग कर लेना l " ययाति के एक पुत्र ने उसे अपनी आयु दे दी l जब ययाति ने वह आयु भोग ली तो यमदूत दोबारा आए , ययाति फिर उनसे प्रार्थना करने लगा क्योंकि उसकी कामनाएं शेष थीं l फिर किसी ने उसे अपनी आयु दे दी l कहते हैं ऐसा हजार वर्ष तक होता रहा , परन्तु तब भी उसकी कामनाएं शांत नहीं हुईं l अंत में वह विक्षिप्त की तरह हो गया l पुराण की यह कथा कलियुग की एक बहुत बड़ी समस्या की ओर इशारा करती है l कलियुग में मनुष्य की बुद्धि विकृत हो गई है , मानसिक विकार चरम पर हैं , विज्ञानं ने बहुत आगे बढ़कर मनुष्य के मन पर भी कब्ज़ा करने का प्रयत्न किया है l उस युग में ययाति ने अपने पुत्र -पौत्रों से आयु मांगी थी लेकिन इस युग में संसार में एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो आयु मांगकर किसी का एहसान नहीं लेता , वह ऐसे गुप्त तरीकों से शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ लोगों की एनर्जी चुराकर , चूसकर उन्हें खोखला कर देता है और उनकी एनर्जी पर स्वयं भोग-विलास का जीवन जीता है और संभवतः दूसरों को भी इस एनर्जी की सप्लाई करता है इन्हें एनर्जी वैम्पायर ' कहते हैं l ऐसे लोगों से अपनी सुरक्षा करने के लिए ही हमारे धर्म ग्रंथों में नमस्कार करने का प्रावधान है , हाथ मिलाने का नहीं l केवल जागरूक होकर ही ऐसे लोगों से सुरक्षा संभव है l
17 October 2023
WISDOM ------
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- 'जब तक मनुष्य की चेतना परिष्कृत नहीं होती , विचारों का सुधार -परिष्कार नहीं होता तब तक परिस्थितियों में सुधार संभव नहीं है l ' आज हम देखते हैं कि संसार में हर बुराई के उन्मूलन के लिए कानून है , नियम हैं लेकिन बुराई कम नहीं हुई बढ़ती ही जा रही है l भ्रष्टाचार और नशा विरोधी कितने भी कानून बना दो यदि मन में बेईमानी है , नशे की लत है तो व्यक्ति छुपकर यह कार्य करेगा और जब छुपकर कोई कार्य किया जाता है तो उसमे अपराध का प्रतिशत और बढ़ जाता है l इसी तरह बहु विवाह के विरोध में नियम -कानून बन गए लेकिन संयम न होने से व्यभिचार बढ़ गया , शक और वहम की बीमारी बढ़ गई l यह भी सत्य है कि यदि कानून न हो तो जंगल राज से भी भयावह स्थिति हो जाये l जब मनुष्य स्वयं जागरूक होगा , उसका विवेक जागेगा तभी सुधार संभव होगा l सुधर जाने के इंतजार में कहीं देर न हो जाये क्योंकि संसार में शांति के लिए , बच्चों की सुरक्षा उनके स्वस्थ जीवन और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेकों प्रयास किए गए हैं लेकिन ' समरथ को नहीं दोष गोंसाई ' l संसार में युद्ध बढ़ते ही जा रहे हैं , घातक हथियारों के प्रयोग से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है और क्रोध उन पर है जो बच्चे पलट कर वार भी नहीं कर सकते l महाभारत में कथा है --- शिशुपाल ने भगवान श्रीकृष्ण को 100 गालियाँ दीं l भगवान मुस्कराते हुए गिनते रहे और शिशुपाल को सचेत करते रहे ---95 ------98 , 99 शिशुपाल ! रुक जाओ ! लेकिन वह माना नहीं और जैसे ही उसने 101 बार अपशब्द बोला , भगवान श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसका गला काट दिया , वह सब तरफ शरण के लिए भागा भी लेकिन किसी ने उसे शरण नहीं दी l इसी तरह भगवान मानव जाति को समय -समय पर संकेत भेजते हैं कि मानवीय गरिमा के अनुकूल जीवन जिओ, इनसान बनो लेकिन मनुष्य सुधरना ही नहीं चाहता , वह तो स्वयं को भगवान समझने लगा है l आज हर व्यक्ति को अपने अंतर्मन में झाँक कर देखना है कि वह क्या मानवता के विरुद्ध काम कर रहा है और जब उस पर ईश्वरीय प्रकोप होगा तो उसे कहाँ छुपने की जगह मिलेगी ?
14 October 2023
WISDOM ----
श्रीमद भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अपने प्रिय सखा अर्जुन को अपनी विभूतियों का विवरण देते हैं और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को शस्त्र धारण करने वालों में अपना स्वरुप बताते हैं l श्रीराम अति विनम्र , शिष्ट और मर्यादापूर्ण है , वे क्रोधित नहीं होते , उनके मन में न तो हिंसा है , न ईर्ष्या , न शत्रुता , न प्रतिस्पर्धा l वे किसी को दुःख देना नहीं चाहते इसलिए उनके हाथों में शस्त्र विचित्र लगता है l लेकिन भगवान श्रीराम के हाथों में शस्त्र होगा तो उससे विनाश रुकेगा l विध्वंसकारी शस्त्र भी यदि भगवान राम के हाथ में होंगे तो वे सृजन का माध्यम बनेंगे l इसलिए श्रीराम शस्त्रधारी होने पर भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं , वे मर्यादा और लोकहित के शिखर हैं l लेकिन यदि ये ही शस्त्र रावण के हाथों में होंगे तो विनाश तय है क्योंकि उसके भीतर हिंसा , लोभ , लालच , अहंकार आदि अनेक दुर्गुण है l उसका ज्ञान इन दुर्गुणों के नीचे दब गया है l वह अपने शस्त्रों का प्रयोग जब भी करेगा , तो गलत ही करेगा l उसके द्वारा विनाश के सिवाय अन्य कुछ भी संभव नहीं है l कलियुग में शस्त्र और शक्ति के दुरूपयोग के कारण ही आज संसार ऐसी बुरी स्थिति में है l
WISDOM -----
राम -रावण युद्ध समाप्त हुआ l महाबली रावण के अतिरिक्त कुम्भकर्ण की भी मृत्यु हुई l कुम्भकर्ण के पुत्र का नाम मूलकासुर था l जब मूलकासुर बड़ा हुआ तो उसके मन में प्रतिशोध की भावना बलवती हुई l घनघोर तपस्या कर के उसने अपार शक्ति प्राप्त कर ली और यह वरदान प्राप्त किया कि उसकी मृत्यु किसी भी नर के हाथों नहीं होगी l नारी -शक्ति भी होती है यह उसकी कल्पना से परे था l वरदान प्राप्त करने के बाद उसने राक्षसों -असुरों की सेना एकत्रित की और लंका पर चढ़ाई कर दी l लंकापति विभीषण ने अपनी हार प्रत्यक्ष देख भगवान राम से सहायता मांगी , लेकिन मूलकासुर किसी नर के हाथों पराजित नहीं हो सकता था l इस स्थिति में भगवान राम ने माँ सीता से अनुरोध किया l माँ जानकी ने वहां पहुंचकर भगवती का रूप धारण कर मूलकासुर का वध किया l आदिशक्ति के हाथों असुरता का संहार हुआ l
12 October 2023
WISDOM -----
एक अनपढ़ किसान ने अपने गुरु से दीक्षा ली l गुरु ने मन्त्र दिया --- ' ॐ लक्ष्मीपतये नम: l ' किसान ने भक्ति और श्रद्धा के साथ इस मन्त्र को रट कर जप आरम्भ कर दिया , किन्तु अनपढ़ होने के कारण वह मूल मन्त्र भूलकर ' ॐ लछमनये मय: ' जप करने लगा l एक दिन भगवान विष्णु लक्ष्मी जी के साथ वहां से विचरण करते हुए निकले l अशुद्ध जप करते देख लक्ष्मी जी किसान के पास जाकर पूछने लगीं --" तुम किसका जप कर रहे हो l किसान मुंह से शब्द तो रट रहा था , पर ध्यान में उसके भगवान बस रहे थे l उसे लक्ष्मी जी के शब्द सुनाई नहीं पड़े l लक्ष्मी जी के कई बार टोकने से किसान का ध्यान भंग हो गया , खीजकर उसने उत्तर दिया --" तुम्हारे पति का ध्यान कर रहा हूँ l बोलो क्या करोगी ? ' लक्ष्मी जी अपने स्वामी के प्रति उसकी भक्ति से बहुत प्रसन्न हुईं और किसान को धन -धान्य से परिपूर्ण कर दिया l नारद जी ने एक दिन इसी प्रसंग का विवरण देकर भगवान से लक्ष्मी जी की शिकायत की तो भगवान बोले ---- " नारद ! हमारे यहाँ शब्दजाल का उतना महत्त्व नहीं है जितना भावना का है l किसान की भावना निर्दोष थी , फिर उसे लक्ष्मी जी ने वरदान दिया तो क्या हुआ l "
11 October 2023
WISDOM ------
इस संसार में आदिकाल से ही देवताओं और असुरों में , अंधकार और प्रकाश में संघर्ष रहा है l कलियुग में यह स्थिति और भयावह हो गई है l युद्ध , दंगे -फसाद , आतंक , जाति और धर्म के नाम पर झगड़े , प्राकृतिक आपदाएं इस धरती पर बहुत बढ़ गई हैं l समस्या यह है कि ऐसी नकारात्मक परिस्थितियों में हम कैसे शांति और तनाव रहित जीवन जिएं ? नकारात्मकता की बार -बार चर्चा करना व्यर्थ है l संसार में कुछ लोगों का जन्म होता ही इसलिए है कि वे नकारात्मक शक्तियों के साथ काम करते हैं , स्वयं अशांत रहते हैं और संसार में अशांति फैलाते हैं l इनका निपटारा तो भगवान ही कर सकते हैं l हमारे आचार्य ने , ऋषियों ने सुख -शांति से जीने का सबसे सरल एक उपाय बताया है वह है ---- निष्काम कर्म और नि:स्वार्थ प्रेम l श्रीमद् भगवद्गीता में भी यही कहा गया है कि निष्काम कर्म से मन निर्मल होता है l मन यदि निर्मल है , शांत है तो बाहर का शोर हमें नहीं सताता l निष्काम कर्म को यदि हम अपनी दिनचर्या में सम्मिलित कर लें तो सत्कर्मों की यह पूंजी हर मुसीबत से हमारी रक्षा करती है l नि:स्वार्थ प्रेम यदि हमें सीखना है तो भगवान श्रीकृष्ण की यशोदा मैया से सीखें l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- 'त्याग एवं बलिदान ही प्रेम के पर्याय हैं l प्रेम वहीँ ठहरता है जहाँ स्वयं को मिटा देने का जज्बा पैदा होता है l ' जब भगवान श्रीकृष्ण को गोकुल छोड़कर मथुरा के लिए प्रस्थान करना था , उस समय मैया यशोदा का रो -रोकर बुरा हाल था , आँखें रोकर लाल हो गईं थीं l वे मैया से अंतिम विदाई लेने गए और कहा --- " माते ! मैं फिर लौटकर तुम्हारे पास आऊंगा , मुझे फिर से माखन -मिसरी अपने हाथों से खिलाना और जब तक मैं तेरे पास नहीं पहुँच जाऊँगा , अपने प्रिय माखन -मिसरी को हाथ तक नहीं लगाऊंगा l " अपने बाल्यकाल के चौदह वर्ष यशोदा मैया के सघन वात्सल्य में रहकर जब कृष्ण माता देवकी के पास पहुंचे तो इतने वर्षों बाद पुत्र को पाकर देवकी बावली सी हो रहीं थीं l उन्होंने सुन रखा था कि कृष्ण को माखन -मिसरी बहुत पसंद है , उन्होंने माखन -मिसरी से भरा स्वर्ण थाल कृष्ण के सामने रखा , तब कृष्ण ने माथा झुका लिया उनकी आँखों से दो बूंद आँसू टपक गए l देवकी ने कहा ---" पुत्र ! मुझसे क्या अपराध हुआ जो तुम इसे खाने के बदले रो रहे हो l " तब कृष्ण जी ने उनको यशोदा मैया को दिए गए वचन की बात कही l जब भगवान श्री कृष्ण के महाप्रयाण की सूचना देने अर्जुन माता देवकी के पास पहुंचे तब उन्हें यह दु:खद सूचना तो नहीं कह सके , हाँ उस समय देवकी ने यह माखन -मिसरी और यशोदा मैया को उनके दिए वचन की बात कही l देवकी ने कहा --- " अर्जुन ! मेरे मन में यशोदा के प्रति ईर्ष्या का भाव पनप गया था और कृष्ण के प्रति अधिकार का भाव आ गया था l अधिकार के इस भाव में अहंकार की गंध आती है और जहाँ अहंकार होगा , वहां प्रेम नहीं स्वार्थ पनपेगा l इसलिए माखन मिसरी में मेरा प्रेम नहीं , स्वार्थ टपक रहा था l वे कहती हैं ---'यशोदा का प्रेम त्याग से प्रकट हुआ था l इस प्रेम के कारण यशोदा का मातृत्व मेरे से बहुत ऊँचा था l इसी प्रेम के कारण जगत यशोदा को कृष्ण की मैया के रूप में जानता है l
10 October 2023
WISDOM ---
यह मानव जाति का दुर्भाग्य है कि अब लोगों को युद्ध , हिंसा , दंगे , फसाद , अपहरण ------ आदि के बीच भय और तनाव के साथ जीने की आदत बन गई है l इसका कारण स्पष्ट है --अब मनुष्य के लिए उसका स्वार्थ सर्वोपरि है l परिवार , समाज , संस्थाएं , राष्ट्र और सम्पूर्ण संसार में मनुष्य की मन:स्थिति कुछ ऐसी हो गई है कि वह अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए उनकी खुशामद करता है जो सशक्त हैं , दबंग है , चाहे उनके कृत्यों से समाज की कितनी भी हानि क्यों न होती हो l स्थिति इतनी विकट है कि असुरता का साथ सब देते हैं क्योंकि उनसे तात्कालिक स्वार्थ की पूर्ति होती है और सत्य अकेला रह जाता है , यहाँ तक कि सत्य और ईमान की राह पर चलने वालों का लोग बायकाट कर देते हैं l इसका परिणाम यही होगा जो आज हम संसार में देख रहे हैं l एक कथा है ---- राजा कृतवीर्य के पुत्र सहस्त्रार्जुन बहुत वीर और सत्य के पथ पर अडिग रहने वाले महान तपस्वी भी थे l सम्पूर्ण पृथ्वी पर उनकी ख्याति थी l उनसे रावण को बहुत ईर्ष्या होती थी l रावण को बहुत अहंकार था , उसने सहस्त्रार्जुन पर आक्रमण किया कि उसके विशाल साम्राज्य पर अधिकार कर ले l युद्ध में रावण बुरी तरह पराजित हुआ और उसे बंदी बना लिया गया l सहस्त्रार्जुन ने उसे बंदीगृह में सम्मान से रखा , यह सम्मान रावण के अहंकार को चुभता था l स्वयं महर्षि पुलस्त्य रावण को बंदीगृह से मुक्त कराने गए l सहस्त्रार्जुन ने रावण को महर्षि पुलस्त्य के बराबर राजदरबार में स्थान दिया और रावण से कहा ----- " रावण ! मैं तुम्हारी विद्वता का कायल हूँ परन्तु तुम्हारे नीच कर्म पर मुझे दया आती है l रावण ! ध्यान रखना दुराचारी चाहे कितना बलवान , शक्तिवान क्यों न हो , एक दिन उसका दर्दनाक अंत होना सुनिश्चित है l पुण्य के क्षीण हो जाने पर सारा दंभ गुब्बारे की हवा की तरह निकल जाता है और बच जाता है शक्ति के बल पर किया गया घोर पाप l रावण ! तुम यह सब किसके लिए कर रहे हो ? यहाँ कोई अजेय नहीं है , काल किसी को क्षमा नहीं करता l मैं तुम्हे मुक्त नहीं कर रहा , मैं तुम्हे काल के हवाले कर रहा हूँ l मर्यादा और सत्य की कोई अवतारी सत्ता तुम्हारा विनाश करेगी l ध्यान रखना , शक्ति नहीं , सत्य ही विजित होता है l
9 October 2023
WISDOM ----
महाभारत के लिए कहा जाता है -- न भूतो न भविष्यति ' ऐसा युद्ध न कभी हुआ न होगा l वह युद्ध था अधर्म , अनीति और अत्याचार का अंत कर धर्म और शांति की स्थापना के लिए l युद्ध में दोनों ही पक्ष के योद्धा ने वीरता से युद्ध किया , युद्ध के नाम पर महिलाओं और बच्चों पर कोई अत्याचार नहीं हुआ l युद्ध में जो वीरगति प्राप्त हुए उन्हें स्वर्ग मिला l लेकिन इस कलियुगी दिमाग के युद्ध लोगों की पिशाचवृत्ति को जगा देते हैं l युद्ध और दंगों के नाम पर जो कृत्य करते हैं , ऐसे नर पिशाचों को देखकर तो सही का पिशाच भी शरमा जाए l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- क्रोध से मनुष्य की भावनाएं विकृत हो जाती हैं l वैर से वैर कभी शांत नहीं होता l अवैर से ही वैर शांत होता है l ' मैल से मैल साफ़ नहीं होता उसके लिए स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है l एक कथा है जो इस सत्य को स्पष्ट करती है कि यदि विवेक नहीं जागता तो क्रोध और बदला लेने का दुर्गुण जन्म -जन्मान्तर तक चलता रहता है , किसी भी योनि में जन्म हो बदला शांत नहीं होता ------कौशाम्बी के राजा शूरसेन वन विहार को निकले l वन में एक पक्षी वृक्ष पर अत्यंत कर्कश स्वर में बोलने लगा , राजा ने इसे अपशकुन माना और उसे एक बाण मारा , पक्षी नीचे गिर गया l घायल पक्षी को तड़फता देख राजा का ह्रदय पश्चाताप करने लगा , अहंकार के कारण यह गलती हो गई l कुछ आगे बड़े तो एक मुनि ध्यान कर रहे थे उन्होंने राजा को दया -धर्म का उपदेश दिया l पक्षी को मारने का पश्चाताप और इस उपदेश का राजा पर इतना असर हुआ कि राज्य का परित्याग कर प्रव्रज्या ग्रहण कर ली l कौशाम्बी नरेश शूरसेन अब महामुनि कौशल्य बन गए l तीव्र तपस्या के कारण उन्हें ' तेजोलेश्या ' ( क्रोध से जिसे देखें वह जलकर राख बन जाये ) की प्राप्ति हो गई l वह पक्षी मरकर भील बना l एक बार महामुनि कौशल्य किसी वन से जा रहे थे , मार्ग में वह भील मिला l मुनि को देखते ही उसे पूर्व जन्म की याद आ गई और वह मुनि को लाठी से पीटने लगा l मुनि बहुत देर तक तो सहते रहे l वे सोच रहे थे कि मैंने तो इसका कोई नुकसान नहीं किया फिर भी यह मार रहा है , वे मुनि धर्म भूल गए और क्रोध में आकर तेजोलेश्या उस पर छोड़ दी l उसी क्षण वह भील जल गया और फिर उसी वन में सिंह के रूप में पैदा हुआ l महामुनि कौशल्य फिर उस वन से गुजरे तो उन्हें देखते ही सिंह उन पर टूट पड़ा l अपने बचाव के लिए मुनि ने उस पर तेजोलेश्या छोड़ दी , वह भी झुलसकर राख हो गया l उस पक्षी की आत्मा ने क्रमशः भील , सिंह , हाथी , सांड , और सर्प योनि में जन्म लिया और हर बार उसने पूर्व जन्म के वैर के कारण मुनि पर आक्रमण किया और मुनि ने उसे तेजोलेश्या से भस्म कर दिया l सर्प के बाद वह ब्राह्मण के घर जन्मा , पढ़ -लिख कर विद्वान् बन गया l मुनि उस गाँव में प्रवचन देने आए तो वह उनसे बहुत चिढ़ता था , उनको अपमानित करता , भरी सभा में निंदा करता , कटु वचन कहता l मुनि की सहनशीलता समाप्त हो गई , उन्होंने तेजोलेश्या छोड़कर उसे भी भरी सभा में भस्म कर दिया l मरते समय उसने ईश्वर को याद किया तो अगले जन्म में वह वाराणसी नगरी में ' महाबाहु नामक राजा बना l एक दिन राजा महाबाहु झरोखे से नगर का निरीक्षण कर रहे थे कि उन्होंने राजपथ से मुनि को जाते हुए देखा l मुनि को देखते ही उन्हें पूर्व जन्म की याद आ गई कि कैसे उसने पिछले छह जन्मों में बदला लेने के लिए मुनि पर आक्रमण किया और मुनि ने उसे तेजोलेश्य से भस्म कर दिया l राजा महाबाहु का विवेक जाग्रत हो गया , वे समझ गए कि यह सब उसके क्रोध और मुनि के ज्ञान के अहंकार के कारण हुआ l राजा ने मुनि को बुलवाया , उनकी वंदना की और सब बताया कि उसे इस तरह बदले की भावना रखने का पश्चाताप है l मुनि को भी अपने दुष्कृत्य का पश्चाताप हो रहा था l दोनों ने मिलकर संकल्प लेकर अपने ह्रदय को निर्मल बनाया और जन्म -जन्म की वैर परंपरा को समाप्त किया l
WISDOM -----
आज का समय कुछ ऐसा है कि परिवार, समाज , संस्थाएं , राष्ट्र और सम्पूर्ण संसार में कलह , दंगे -फसाद , झगड़े और युद्ध की स्थिति है l इसके मूल में प्रमुख दो ही कारण हैं ---1. विवेक न होना 2. अहंकार और उससे उत्पन्न बदले की भावना l यह बदले की भावना पीढ़ी -दर -पीढ़ी चलती रहती है l यदि इस पीढ़ी में किसी भाई ने छल -कपट से दूसरे भाई की संपत्ति हड़पी और धोखे से उसे मरवा दिया तो यदि हम उसकी पिछले दो तीन पीढ़ियों के बारे में पता करेंगे तो उन पीढ़ियों में भी ऐसी ही घटना अवश्य हुई होगी l l बदले की भावना यदि समाप्त न हो तो ऐसा पैटर्न हजार , पांच सौ साल तो क्या युगों तक चलता ही रहता है l विभिन्न देशों में जो युद्ध होते हैं वे इसी बदले की भावना और अहंकार के कारण है ----' तुमने वर्षों पहले ऐसा किया था इसलिए अब हम भी नहीं छोड़ेंगे ' जबकि जिसने किया और जिसके साथ हुआ वे सब इस संसार से जा चुके हैं लेकिन बदले की भावना जो संस्कारों में भरी है वह उफान मारती है और ऐसे कुत्सित संस्कारों से भरा व्यक्ति और व्यक्ति समूह युगों पहले किए गए अपराधों को बार -बार दोहराते हैं l अपने विकास , अपनी समृद्धि को अपने ही हाथों नष्ट करते हैं l यदि मनुष्य का विवेक जाग जाए तो अपनी ऊर्जा ओर अपने साधनों को दूसरों से बदला लेने के स्थान पर अपने सुरक्षा कवच को मजबूत करने में खर्च करे l हम दूसरे को तो नहीं सुधार सकते लेकिन अपना सुरक्षा कवच मजबूत बना सकते हैं l परिवार हो या राष्ट्र हो केवल भौतिक साधनों से सुरक्षा कवच मजबूत नहीं होता , उसकी मजबूती के लिए जरुरी है श्रेष्ठ चरित्र , नैतिक मूल्यों पर आधरित जीवन जीने से उत्पन्न आत्मविश्वास l यदि ऐसा आत्मबल है तो दुश्मन का हर वार विफल हो जायेगा , स्वयं दैवी शक्तियां उसकी रक्षा करेंगी l पांडव केवल पांच थे , कौरवों के पास विशाल सेना थी लेकिन वे पांडवों का कुछ नहीं बिगाड़ सके l उन पर नारायण अस्त्र का भी प्रहार किया गया लेकिन पांडवों की नम्रता और सत्य और न्याय पर उनके आचरण के कारण वह भी झुककर वापस चला गया l आज संसार के लिए जरुरी है कि अरबों की संपत्ति मारक हथियारों , बम आदि पर खर्च करने के बजाय श्रेष्ठ मनुष्यों के निर्माण पर धन व्यय करे l आज संसार बारूद के ढेर पर है और बदले की भावना से ग्रस्त विकृत मानसिकता स्वयं के साथ दूसरों को भी नष्ट कर देती है l
7 October 2023
WISDOM ----
इस संसार में आसुरी शक्तियां भी हैं और देवत्व भी है l ईश्वर ने हमें चुनाव की स्वतंत्रता दी है , हम दोनों में से जिसे चाहे चुन लें l जैसी राह होगी वैसा ही परिणाम सामने आएगा l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " असुरता मायावी खेल खेलती है l असुर छल -बल का प्रयोग करते हैं l ये अपने जाल में उलझाने के लिए बड़ा ही मोहक एवं आकर्षक द्रश्य प्रस्तुत करते हैं l ये व्यक्ति की कमजोरियों को उभारते हैं l लोभ , मोह , काम, वासना आदि का द्रश्य दिखाकर ये अपने जाल में फंसा लेते हैं , फिर उसका तब तक उपयोग करते हैं , जब तक वह पूरी तरह निचुड़ न जाए l अंत में उसे मारकर फेंक देते हैं l यह असुरता का क्रियाकलाप है l इसके विपरीत देवता किसी का उपयोग करते हैं तो उसको उसके सतोगुणी रूप में वापस लौटाते हैं l देवत्व का पक्षधर कभी घाटे में नहीं रहता l सभी रूपों में उसे लाभ ही मिलता है l ' असुर अपने तप से बहुत धन -वैभव और शक्ति प्राप्त कर लेते हैं , जिसका उन्हें अहंकार होता है l l आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' वक्त किसी का नहीं होता , परन्तु अहंकारी वक्त को थाम लेने का दंभ भरता है परन्तु जग जाहिर है कि रावण , कंस , जरासंध जैसे शक्तिशाली राक्षस भी उसे थाम नहीं पाए , काल चक्र के घूमते पहियों में पिस गए l किसी कालखंड में उदित पुण्यों के प्रभाव से अनीति और अत्याचार करने पर भी कुछ नहीं होता , इससे उन्हें ऐसा लगता है कि हमने काल पर नियंत्रण कर लिया परन्तु जब पुण्यों का प्रभाव चुक जाता है तब वक्त के थपेड़ों से वह भी बच नहीं पाता l अत: बुद्धिमानी इसी में है कि वक्त की सही पहचान करते हुए आसुरी शक्तियों के हाथ की कठपुतली न बनकर देवताओं का यंत्र बन जाना चाहिए l
6 October 2023
WISDOM -------
काम , क्रोध , लोभ , मोह मन की ऐसी कमजोरियां हैं जिनसे मनुष्य तो क्या ऋषि , मुनि , देवता कोई नहीं बचे l जो इन पर विजय पाने का अहंकार करते हैं वे ईश्वर द्वारा ली जाने वाली परीक्षाओं में असफल हो जाते हैं , अहंकार व्यर्थ है l इन पर विजय पाना भी ईश्वरीय कृपा से ही संभव है l पुराण की एक कथा है -------- वेदव्यास के शिष्य थे जैमिनी l जैमिनी को अपनी तप साधना पर और वेदांत के ज्ञान पर अहंकार था l मैं ही ब्रह्म हूँ , उस पर तर्क करते l उन्हें अहंकार हो गया कि उन्होंने मन की इन कमजोरियों को जीत लिया है l गुरु ने अपने शिष्य को सही राह पर लाना ठीक समझा जिससे यह अहंकार का भूत उतर जाये l जैमिनी जंगल में कुटिया बनाकर रहते थे l एक अँधेरी रत , तेज आँधी आई , वर्षा हो रही थी l जैमिनी कुछ लिख रहे थे , अचानक एक सुन्दर युवती आई और बोली --- " आप महापुरुष है , यहाँ डर कैसा l आज्ञा हो तो कुटिया में शरण ले लें l " जैमिनी के अहं को पोषण मिला , बोले -- हाँ , विश्राम कर लो , दरवाजा अन्दर से बंद कर लो l " कुछ समय बीता , युवती की उपस्थिति से मन कुछ विचलित हुआ , दरवाजा खटखटा कर उसका हाल पूछा तो अन्दर से आवाज आई ---हम ठीक हैं l लेकिन मन कुछ ऐसा बैचैन हुआ कि फूस की छत का खपरैल हटाकर अन्दर कूदे तो अन्दर देखा महर्षि वेदव्यास आसन पर बैठे मुस्करा रहे हैं l जैमिनी बहुत शर्मिंदा हुए और गुरु के चरणों में गिर गए l गुरु ने समझाया ---- ' देह रहते आसक्ति का त्याग विरलों से ही संभव है l अहंकार नहीं करो l ' जैमिनी को सही शिक्षण मिला l
5 October 2023
WISDOM -----
गुरु नानक देव जी के जीवन का प्रसंग है --- एक बार वे भ्रमण के दौरान जगन्नाथ पुरी जा रहे थे l वे पैदल भ्रमण करते हुए लोगों से मिलते , उनकी समस्याएं सुनते और उन्हें पीड़ा से मुक्ति दिलाने के उपाय के बताने के साथ मधुर -मंगलमय जीवन जीने की प्रेरणा देते l मार्ग में उनका सामना डाकुओं से हुआ l गुरु नानक जी के चेहरे का तेज और उनकी शांति देखकर डाकुओं ने उन्हें मालदार आदमी समझा और कहा --- ' तुम्हारे पास जो भी हीरे -मोती , सोना -चांदी है वह सब निकाल निकालकर हमें दे दो , नहीं तो हम अभी तुम्हारी हत्या कर देंगे l " गुरु नानक जी मानव मन के मर्मज्ञ थे , उन्होंने डाकुओं से कहा --- " मेरी अंतिम इच्छा यह है कि जब तुम मुझे मार दो तब मेरे शव का अंतिम संस्कार अवश्य करना l इसलिए पहले आग जलाने का प्रबंध कर लो l " यह सुनकर डाकू चकित हुए लेकिन फिर सरदार अपने दो डाकुओं के साथ लकड़ी लेने चल दिया और शेष डाकू नानक जी को घेरे रहे l l सरदार ने दूर धुंआ उड़ता देखा तो वह अपने दोनों साथियों के साथ वहां गया तो देखा गाँव के लोग एक शव का अंतिम संस्कार कर रहे हैं l कुछ लोग वहीँ खड़े बात कर रहे थे , एक व्यक्ति कह रहा था ---- " अच्छा हुआ दुष्ट , पापी , शैतान , हत्यारा मर गया , वरना यदि यह जीवित होता तो न जाने कितने और लोगों को दुःख देता , उन्हें सताता , अत्याचार करता , पीड़ा देता l " दूसरा व्यक्ति कह रहा था ---- " ऐसा अधर्मी , पापी दुष्ट , इन्सान के रूप में हैवान है शैतान है , इसका जीवन धिक्कार है ! " डाकुओं ने जब मृतक के विषय में ऐसी बातें सुनी तो उन्हें अपने दुष्कृत्य याद आने लगे , उनकी आत्मा उन्हें कचोटने लगी , बहुत पश्चाताप करने लगे l वे सोचने लगे कि जिसको हमने पकड़ के रखा है वह कोई असाधारण व्यक्ति है जिसने हमें अपनी गलतियों का एहसास कराने लकड़ियाँ लाने भेजा है l वे दौड़ते हुए आए और गुरु नानक देव के चरणों में गिर पड़े और कहने लगे --- ' आपके बताये मार्ग पर जाकर हमने जो देखा , सुना , उससे हमें हमारे बुरे कर्मों का एहसास हुआ , हमने अपने जीवन में न जाने कितने पापकर्म किए , आब आप ही हमें बताएं कि हम क्या करें जो इस पाप की जिन्दगी से छुटकारा मिले l ' गुरु नानक देव ने कहा ----- ' जो बीत गया उसे बदलना असंभव है , लेकिन अब तुम संभल जाओ और परोपकार में लग जाओ l लेकिन यह याद रखना सबको अपने कर्मों का हिसाब अवश्य देना पड़ता है l तुम्हारी वजह से किसी दुःखी इन्सान की आँखों से निकले हर एक आँसू का हिसाब तो एक =न -एक दिन देना ही होगा l हाँ , लेकिन यदि तुम दूसरों का भला करोगे , परोपकार करोगे तो तुम्हारे मन की मलिनता मिट सकती है , बुरे पापकर्म करने से जो आत्मग्लानि हुई है वह मिट सकती है और आत्म संतोष प्राप्त हो सकता है l तुम्हारे जीवन में सुख -शांति आ सकती है l " गुरु नानक जी का यह उपदेश सुनकर डाकुओं ने पापकर्म करना छोड़ दिया , उनकी जिन्दगी सदा के लिए बदल गई l
4 October 2023
WISDOM ------
एक संत जंगल में झोंपड़ी बनाकर रहते थे l वे राह से गुजरने वाले पथिकों की सेवा करते और भूखों को भोजन कराया करते थे l एक दिन एक बूढ़ा व्यक्ति उस राह से गुजरा l उन्होंने हमेशा की तरह उसे विश्राम करने को स्थान दिया और फिर खाने की थाली उसके आगे रख दी l बूढ़े व्यक्ति ने बिना प्रभु स्मरण किए भोजन प्रारम्भ कर दिया l जब संत ने उन्हें याद दिलाया तो वे बोले ---- " मैं किसी भगवान को नहीं मानता l " यह सुनकर संत को क्रोध आ गया और उन्होंने बूढ़े व्यक्ति के सामने से थाली खींचकर उसे भूखा ही विदा कर दिया l उस रात उन्हें स्वप्न में भगवान के दर्शन हुए l भगवान बोले ---- " पुत्र ! उस वृद्ध व्यक्ति के साथ तुमने जो दुर्व्यवहार किया , उससे मुझे बहुत दुःख हुआ l " संत ने आश्चर्य से पूछा --- " प्रभु ! मैंने तो ऐसा इसलिए किया था कि उसने आपके लिए अपशब्दों का प्रयोग किया l " भगवान बोले ----- " उसने मुझे नहीं माना तो भी मैंने उसे आज तक उसे भूखा नहीं सोने दिया और तुम उसे एक दिन का भी भोजन न करा सके l " यह सुनकर संत की आँखों में अश्रु आ गए और स्वप्न टूटने के साथ संत को समझ आ गया कि देने वाला तो ईश्वर है , हम तो केवल एक माध्यम हैं l हम सब ईश्वर की संतान हैं और ईश्वर अपनी सभी संतानों से प्रेम करते हैं l हम मनुष्य ही सांसारिक मतभेदों और विवादों में उलझकर उस निस्स्वार्थ प्रेम को समझ नहीं पाते l