11 March 2020

WISDOM ------

   लियो  टालस्टाय  ने  अपनी  कृति  ' समाज  निर्माण ' में  लिखा  है --- ' समाज  सुधार  के  लिए   निश्चय  ही  संसार  में   संतों   और  महामानवों  का  समय - समय  पर  जन्म  होता  रहता  है  ,  पर  वे  भी  व्यक्तियों  द्वारा   इस  दिशा  में   प्रयास - पुरुषार्थ  के  अभाव   में   ज्यादा  कुछ  नहीं  कर  पाते   l   हाँ  , यदि  लोगों  ने  पराक्रम  करना  स्वीकार  कर   प्रयत्न  पूर्वक    एक  कदम  आगे  बढ़ना  अंगीकार   कर   लिया  है  ,  तो  यह  संभव  है  कि   महापुरुष  अपने  आत्मबल  द्वारा   पीछे  से  धक्का  देकर   उन्हें  दो  कदम  और  आगे  बढ़ा  दें  ,  किन्तु  इसका  शुभारम्भ   उन्हें  स्वयं  से  करना  होगा ,  यह  दायित्व  उन्हें  स्वयं  निबाहना  होगा  ,  तभी  ऐसा  संभव  है  l '   वे  आगे  लिखते  हैं --- ' संतों  का  उपदेश   सुनकर   कोई  संत  नहीं  बन  सकता   l   जब  संत  को  अपने  भीतर  पैदा  करेगा  ,  तभी  वह  सज्जन  कहला  सकेगा   l  '
  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- ' वर्तमान  समय  में  टालस्टाय  की  यह  बात  अक्षरश;  लागु  होती  है  l  लोग  यह  समझकर  हाथ  पर  हाथ  धरे   बैठे  हैं  कि   कोई  समर्थ  अवतार  इस  पृथ्वी  पर  आएगा    और  जादू  की  छड़ी  घुमाकर  इस  संसार  को  बदल  कर  रख   देगा  l   यह  हमारा  भ्रम  है  l   यदि  किसी  ऐसी  समर्थ  सत्ता  का  अवतरण  हुआ  भी  ,  तो  यंत्र  हमें  ही  बनना  पड़ेगा  ,  पुरुषार्थ  हमें  ही  करना  पड़ेगा  ,  तभी  समग्र  परिवर्तन  संभव  हो  सकेगा  l  l