19 January 2019

WISDOM ------ जो ईश्वर से भय खाता है उसे दूसरा भय नहीं सताता

 वैराग्य   शतक  में  भतृहरि  ने  लिखा  है ----- भोग  में  रोग  का  भय  है ,   सामाजिक  स्थिति ( सत्ता ) में  गिरने  का  भय  है,  धन  में  खोने  का , चोरी  होने  का  भय  है ,  मान - सम्मान  में  अपमान  होने  का  भय  है   सत्ता  में शत्रुओं  का  भय  है ,   सौन्दर्य  में  बुढ़ापे  का  भय  है   और  शरीर  में   मृत्यु  का  भय  है  l  इस  तरह  संसार  में  सब  कुछ  भय  से  युक्त  है   l  
  अध्यात्म्वेताओं  के  अनुसार    भय  के  मूल  में    वासना - कामना ,  तृष्णा  और  अहंता  होती  है   l  इन्ही  के  कारण  व्यक्ति   पापकर्म  करता  है , अनैतिक  जीवन  जीता  है  l  यही  कारण  है  कि  चोर , डाकू ,  व्यभिचारी, अत्याचारी ,   आतंकी,   भ्रष्टाचारी ,  अपराधी   कभी  चैन  से  निश्चिन्त  नहीं  बैठ   पाते  l  उन्हें  हमेशा  भय  रहता  है  कि  उनकी  करतूत  की  पोल  न  खुल   जाये  l 
  ईश्वर  की  शरण  और  सत्कर्मों  की  राह  समस्त    भय  के   समूल  नाश  का   राजमार्ग  है   l